Categories
Padarth Vigyan evam History of Ayurveda Tricks

Darshan Nirupan ( दर्शन निरूपण ) with Trick to Learn

दर्शन शब्द की उत्पत्ति :-

दृश् धातु में ल्युट् प्रत्यय लगाने पर ‘दर्शन‘ (Darshan) शब्द बनता है।

शब्दअर्थ
दृश्देखना
ल्युट्भाव, कारण
दर्शनदेखने की क्रिया या भाव
दृष्टादेखने वाला
आयुर्वेद में ‘दृष्टा’ आत्मा को कहा है, क्योंकि वह ही साक्षी रूप में सब कार्य को देखता है।

जैसे दृष्टा होते हुए भी बिना शीशे (Mirror/Reflecting surface) के होते हुए दृष्टा देख नहीं पाता, उसी प्रकार दर्शन के बिना पूर्ण रूप से खुद को देखना संभव नहीं है। योग का उद्देश्य ही यही है- अंत में आत्मा के दर्शन करना।

दर्शनों की उत्पत्ति :-

दर्शनों (Darshan) की उत्पत्ति वेदों से होती है व वेद कालीन है।

‘वेद’ का अर्थ होता है ज्ञान, ये ही दार्शनिक विषयों के स्त्रोत है। ऋग्वेद से दर्शनों की उत्पत्ति प्रतीत होती है।

वैदिक काल में :-

  • एकत्ववाद – वेदांत
  • द्वैतवाद – सांख्य, योग
  • त्रैतवाद – वैशेषिक‌, न्याय, मीमांसा

उपनिष्द् काल में :-

  • अध्यात्मवाद

आज के काल में

  • पाश्रात्य

भेद :-

Darshan nirupan

Trick to Learn :-

वेद व्यास और न्याय के ज्ञाता गौतम एक विशेष प्रकार की चीज/ वस्तु कर्ण में धारण कर अधिक संख्या में मुनियों के साथ पतंजलि योगपीठ में जैमिनी द्वारा खाए गए मांस की निन्दा करी।

दर्शनरचयिता
वेद व्यासवेदांतवेद व्यास
न्याय के ज्ञाता गौतमन्यायगौतम
विशेष प्रकार की वस्तु कर्ण वैशेषिककणाद
संख्या में मुनियोंसांख्यकपिल मुनि
पतंजलि योगपीठयोगपतंजलि
जैमिनी द्वारा खाए गए मांसजैमिनीमीमांसा

आस्तिक दर्शन :-

अस्ति परलोक इत्येवं मत्स्य स आस्तिक।। अर्थात् परलोक है, ऐसी जिसकी बुद्धि है, वह आस्तिक। इन्हें षड्दर्शन भी कहते है।

दर्शनप्रमाणपदार्थतत्व
न्याय4 ( प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तोपदेश, उपमान1616
वैशेषिक2 ( प्रत्यक्ष,‌ अनुमान )60
सांख्य3 ( प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तोपदेश)25
योग5 ( प्रत्यक्ष, स्मृति, निद्रा, विकल्प, विपयर्य )
मीमांसा4 ( प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तोपदेश, उपमान2
वेदांत1

वेदांत दर्शन :-

शब्दअर्थ
वेदज्ञान, सविशेष ज्ञान, चिंतन
आंतप्रवाह, अंत होना
वेदांतज्ञान का प्रवाह होना, चिंतन का अंत होना
पर्याय:- उत्तर मीमांसा दर्शन

इसके रचयिता भगवान वेदव्यास जी हैं। यह वेदों के ज्ञान कांड पर आधारित दर्शन है, इसमें नेति नेति शब्द, लक्षणों से सत चित आंनद आदि स्वरूप बोधक लक्षणों को बताया जाता है। इनके द्वारा श्रुति को अंतिम प्रमाण माना जाता है।

मीमांसा दर्शन :-

इसके रचयिता जैमिनी हैं, यह दर्शन वेदों के कर्म कांड पर आधारित है। इसमें यज्ञ आदि कर्मों में विशेष तत्व उत्पत्ति की कल्पना की जाती है। इनका कहना है कि धर्म की वृद्धि होने पर ही उत्कृष्ट स्थिति की प्राप्ति होती है। यह हमेशा कर्म करने के पक्ष में है व संन्यास का प्रतिपक्षी है।

सांख्य दर्शन :-

इसके रचयिता कपिल मुनि है, यह दर्शन द्वैत का प्रतिपादन करता है। पुरुष व प्रकृति को मूल तत्व मानते है व उससे सृष्टि की उत्पत्ति मानते है। इसके साथ साथ में अवयक्त आदि 25 तत्वों को मानता है।

पुरुषचेतन
प्रकृतिजड़

योग दर्शन :-

इसके रचयिता महर्षि पतंजलि हैं ( कुछ जाने पतंजलि व महर्षि चरक को एक ही मानते है), इस दर्शन को सेश्वरसांख्य दर्शन भी कहा जाता है क्योंकि चिंतन प्रणाली सांख्य दर्शन (Saankya Darshan) के समान है। वेदांत दर्शन भी योग क्रिया को स्वीकार करता है परन्तु वह पतंजलि योग सूत्रों के द्वैतवाद को नहीं मानता।

न्याय दर्शन :-

इसके रचयिता गौतम ऋषि है, इस दर्शन को आन्वीक्षिकी, तर्कविद्या, वादविद्या आदि नामों से जाना जाता है क्योंकि यह दर्शन युक्तिसंगत तर्क को प्रधानता देता है। इनका मानना है शब्द व विचार में अस्त वियस्ट रहने से सही निर्णय नहीं हो सकता इसलिए युक्त से प्रयूत तर्क व उपलब्धि को मानता है।

वैशेषिक दर्शन :-

इसके रचयिता महर्षि कणाद है, इस दर्शन को औलुक्य दर्शन भी कहते है। यह ईश्वर जीव व प्रकृति को आधार मानता है, यह भी कहता है कि प्रत्येक वस्तु स्वम में पूर्ण इकाई है। इसमें देश काल व संस्कार की विशेषता के कारण इसे वैशेषिक दर्शन कहते है।

नास्तिक दर्शन :-

नास्ति परलोक इत्येवं मत यस्य स नास्तिक।। अर्थात् परलोक नहीं है, ऐसी जिसकी बुद्धि है, वह नास्तिक है।

जैन दर्शन :-

यह दर्शन (Darshan) 24 तीर्थंड्कार को मानते हैं, वह उनमें से 24 वे तीर्थंड्कार वर्धमान महावीर है जो कि इस दर्शन के रचयिता है। यह दर्शन प्रत्यक्ष के साथ साथ अनुमान प्रमाण को मानते है। यह ईश्वर के स्थान पर तीर्थंड्कार को मानते है। और 6 द्रव्यो को मनाते है जो कि इस प्रकार है :-

  • धर्म
  • अधर्म
  • आकाश
  • काल
  • जीव
  • पुदगल

यह मोक्ष के लिए 3 उपाय कहते है:-

  • सम्यक ज्ञान
  • सम्यक चरित्र
  • सम्यक दर्शन

चार्वाक दर्शन :-

इस दर्शन के रचयिता चार्वाक/ बृहस्पति जी है। यह बस प्रत्यक्ष को मानते है और साथ ही ने आप्त उपदेश आदि प्रमाणों को भ्रम मूलक मानता है। आकाश को भॊटिव तत्व भी नहीं मानता है। यह कहता है जो आंखों से नहीं देख सकते व नहीं होता, आज जो है उसे ही सही से जीना है मरने के बाद में क्या होगा किसी ने देखा नहीं तो उसे नहीं मान सकते। यह कर्म को ही मोक्ष मानते है।

आज कल बहुत सारे जाने इस विचार का समर्थन करते है।

बौद्ध दर्शन :-

इस दर्शन (Darshan) के रच्यता गौतम बुद्ध है, यह कहता है सभी वस्तुएं शनिक है, प्रत्यक्ष व अनुमान दो प्रमाणों को मानते है और यह 4 पदार्थो को मानता है:-

  • काल
  • आकाश
  • जीव
  • पुदगल

Leave a Reply