तष्णादाहज्वरश्वासरक्तपित्तक्षतक्षयान्। वातपित्तमुदावर्त स्वरभेदं मदात्ययम् ।। १२५ ।।
तिक्तास्यतामास्यशोषं कासं चाशु व्यपोहति। मट्टीका वाणी वृष्या मधुरा स्निग्ध शीतला ||
फल | रस/गुण/कर्म |
1.मुनक्का | प्यास, दाह, ज्वर, श्वास, रक्तपित्त, उर क्षत, राजयक्ष्मा, वातविकार, पित्तविकार, दावत, स्वरभेद, मदात्यय, मुख का तीता होना, मुख का सूखना और खाँसी को शीघ्र दूर करता है।बबण, वीर्यवर्धक, रस में मधुर, स्निग्ध और शीतवीर्य होता है॥मधुर बृंहणं वृष्यं खर्जूर गुरु शीतलम् । क्षयेऽभिघाते दाहे च वातपित्ते च तद्धितम् ।। |
2.खजूर | रस में मधुर, बृहण, वीर्यवर्धक, भारी तथा शीतवीर्य है। राजयक्ष्मा में, चोट लगने पर, दह और वात एवं पित्त से होने वाले रोगों में हितकर है , तर्पणं बृहण फल्गु गुरु विष्टम्भि शीतलम् । परूषक मधुकं च वातपित्त च शस्यते । |
3.फल्गु (अंजीर) | शरीर को संतृप्त करने वाला, बृंहण, गुरु, दुर्जर और शीतवीर्य होता है। फालसा और महुआ-ये दोनों वातज एवं पित्तज रोगों में हितकर हैं, मधुरं बृंहणं बल्यमाम्रातं तर्पणं गुरु। सस्नेहं श्लेष्मलं शीतं वृष्यं विष्टभ्य जीर्यति । |
4.फालसा | वातज एवं पित्तज रोगों में हितकर हैं, मधुरं बृंहणं बल्यमाम्रातं तर्पणं गुरु। सस्नेहं श्लेष्मलं शीतं वृष्यं विष्टभ्य जीर्यति । |
5.महुआ | वातज एवं पित्तज रोगों में हितकर हैं, मधुरं बृंहणं बल्यमाम्रातं तर्पणं गुरु। सस्नेहं श्लेष्मलं शीतं वृष्यं विष्टभ्य जीर्यति । |
6.आपदा | मधुर रस वाला, बृंहण, बलवर्धक, गुरु, किञ्चित् स्निग्ध और कफवर्धक होता है। वीर्यवर्धक और विष्टम्भ के साथ पचता है । |
7.पका राइफल | पका फल शरीर को स्थूल बनाने वाला, स्निग्ध भी बलवर्धक और मधुर रस का होता है। |
8.नारियल | पका फल शरीर को स्थूल बनाने वाला, स्निग्ध भी बलवर्धक और मधुर रस का होता है। |
9.कमरख | रस में मधुर, अम्ल तथा कषाय, कब्ज करने वाला, भारी, शीतवीर्य, कफ एवं को बढ़ाने वाला, ग्रह और मुख को शुद्ध करने वाला होता है। |
10.खट्टे फल-पट्टी फालसा, खट्टा मुनक्का, सट्टी बेर, खट्टा आलूबुखारा, खट्टी छोटी बेर और बटा बड़हल का फल- | ये सभी पित्त और कफ के कुपित करने वाले होते हैं।। |
11.आलूबुखारा, खट्टी छोटी बेर | यह पका होने पर अधिक उष्ण नहीं होता है। यह गुरु तथा खाने में प्राय: मधुर और रिवर होता है। बृहण और शीघ्रपाकी है, अल्पांश में दोषों को बढ़ाता है। |
12.पारावत ( निम्बू की जाति का फल-विशेष ) | यह मधुर और अम्ल भेद से दो तरह का होता है। |
13. मधुर पारावत | मधुर पारावत-मधुर रस वाला, शीतवीर्य और भारी होता है। |
14.अम्ल पारावत | उष्णवीर्य, अरुचिनाशक और भस्मक रोग को दूर करता है। |
15.नाशपाती | रस में कपास एवं मधुर, बलवर्धक, गुरुपाकी और शीतवीर्य होता है। कन्वा कैथवष्टरोगकारक, विषनाशक, ग्राही और वातवर्धक होता है। |
16.नाशपाती(पका के) | मधुर, अम्ल एवं कषाय रस युक्त होने से और सगनित होने से कविवर्धक, दोषों का नष्ट करने वाला, विषनाशक, ग्राही और भारी होता है । |
17. पका बेल | दुष्पाच्य, दापों का वर्धक और दुर्गंधीयुक्त अपानवायू का निःसारक होता है। |
18.कच्चा बेल | उष्णवीर्य, तीन, अग्रिप्रदीपक और कफ व वात विकार नाशक है । |
19. कच्चा और पका आम | वायु नामक एवं मास, शुक्र तथा बलपद है,रुण किन्तु अपत्य आम पित्तवर्धक |