औटाये हुआ जल :-
धीरे – धीरे औटाते हुए फेन रहित एवं निर्मल होने पर उसे क्वाथित या औटाया हुआ समक्षे । यह दोषों को दूर करने वाला, लघु, पाचक, वात – कफ ज्वर संबंधित ज्वर रोगी के हितकर होता है। ( भावप्रकाश संहिता )
यह अग्नि दीपक, जमे हुए कफ को खण्ड- खण्ड करने वाला, वात पित्त का अनुलोमन करने वाला है, स्त्रोत को मृदु करने वाला है। ( सुश्रुत संहिता )
वात कफ ज्वर नाशक, कफ नाशक, तृष्णा, स्त्रोत शोधन, वात, पित्त, कफ, स्वेद, मल, मूत्र का सारक होता है । ( अष्टांग ह्रदय )
औटकर शीतल किया गया जल :-
दाह, अतिसार, पित्त, रक्त विकार, मूर्च्छा, मद, विष विकार, मूत्र कृचा,पांडु, तृष्णा, वमन, परिश्रम, मद्यपान से उत्पन्न रोग, केवल पित्त व सन्निपात रोग में उपयोगी।
ठंडा करने की विधि के अनुसार गुण में परिवर्तन :-
- जो ओटाया हुए जल ढका रहे ओर भाप के बिना निकले खुद शीतल होजय वह त्रिदोष शामक, रूक्षता न लाने वाला, सर्दी न करने वाला, कृमि, तृषाना, ज्वर, लघु होता है।
- जो जल एक पात्र से दूसरे पात्र में डालकर शीत किया गाय हो वह विष्टम्भ करने वाला है।
- पंखे के नीचे ठंडा किया गया जल गुरु और देर से पचने वाला होता है।
उष्णोदक जल :-
औटाते हुए ½ जल रह जाए व धीरे-धीरे फेन रहित हो उसे उष्णोदक कहते हैं। यह ज्वर, कास, कफ, श्वास, पित्त, वात, आम, मेद नाशक, पाचक, सदा पथ्य होता है।
ऋतु भेद से उष्णोदक :-
- ग्रीष्म – ¾ बच जाए या ⅛ उड़ जाए
- शरद – ¾ बच जाए या ¼ उड़ जाए
- वर्षा – ⅛ उड़ जाए या ½ उड़ जाए
- हेमंत, शिशिर, वर्षा, वसंत ½ उड़ जाए ( ज्जयत, भाव प्रकाश )
दोष भेद से :-
- ¼ उड़ जाए – पित्त नाशक
- ½ उड़ जाए – वात नाशक
- ¾ उड़ जाए – कफ नाशक, संग्रही, अग्नि दीपक, लघु
समय भेद से :-
रात्रि में उष्णोदक :- कफ का भेेेेदन करने वाला, वायु का अपकर्षण या शांत करने वाला होता है, अन्न पाचन करवाता है, अजीर्ण का नाश करने वाला है।
** रात्रि में गर्म ही पीना चाहिए क्योंकि यह अग्नि दीपक, लघु, सवाछ, बस्ती शोधक, पार्श्व पीड़ा, पिनस, अफरा, हिचकी, वात कफ नाशक, तृष्णा, श्वास, शूल, नव ज्वर, वमन विरेचन के पश्चात उपयोगी।
अवस्था भेद से :-
- दिन में ओटाया हुए जल को रात में पीने में गुरु होता है उसी प्रकार से रात वाला दिन में।
- बांसी ओटाया हुए जल – अग्नि निकल जाने से त्रिदोष कारक, गुरु, अम्ल वीपक, विष्टम कारक, सम्पूर्ण रोगों में निंदित होता है।
- फिर से गर्म करने से – विष के समान, त्याग कर देना चाहिए।
मात्रा भेद से :-
¼ जब बच जाता है तोह व कंठ के लिए हितकर होता है, दीपक, पाचक, लघु, श्वास, कास, हिचकी, गैस, नव ज्वर, आम, कफ नाशक, वात हर, पार्श्व शूल, गुल्म, अग्नि मंद, पीनास में उपयोगी।
आरोग्याम्बु :-
औटाते हुए जब ¼ जल उड़ जाए तो उसे आरोग्याम्बु कहते हैं।यह सदा पथ्य, कास, श्वास, कफ, ज्वर, ग्राही, अग्नि दीपक, पाचक, लघु, अफरा, पांडु, शूल, अर्श, गुल्म, शोथ, उदर रोग।
अंशूदक :-
सूर्य की किरणों व चन्द्र की किरणे जिस जल पर बराबर पड़ती है। यह सनिग्घ, त्रिदोष शामक, सर्दी न करने वाला, निर्दोष आकाश के जल के समान, बल कारक, रसायन, मेध्य, शीतल, लघु, अमृत के समान गुण कारी।
पचने का समय :-
- शीत जल – 1 प्रहर
- औटाया हुआ शीत किया जल – ½ प्रहर
- कुछ उष्ण औटाया हुआ जल – ¼ प्रहर
9 replies on “Ushan Jal ke Gun / उष्ण जल के गुण”
[…] ज्वर में उष्ण जल की उपयोगिता :- […]
[…] warm water throughout the […]
[…] के बुरादे का क्वाथ बनाकर इनके साथ दें / गरम जल से दे।यदि विशेष लाभ नहीं हो तो उसके […]
[…] व अनुपान- 2-4 गोली प्रातः सायं गर्म जल अथवा दुुग्ध से […]
[…] व अनुपान- 2-4 गोली प्रातः सायं गर्म जल अथवा दुग्ध के साथ […]
[…] तौर पर उष्णोदक के साथ प्रयोग […]
[…] प्रतिदिन सुबह एक गिलास दूध से या उष्ण जल से […]
[…] दशमूल क्वाथ अथवा रास्नादि क्वाथ अथवा गर्म जल के साथ […]
[…] गोली सुबह-शाम दुग्ध अथवा गरम जल के […]