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Chitrak / चित्रक – Plumbago zeylanica Comparative Review

Chitrak White flower
वैज्ञानिक नाम : Plumbago zeylanica
कुल नाम : Plumbaginaceae

अंग्रेजी नाम – Leadwort
पर्याय – दहन, अग्नि, ब्याल, काल्मूल
बंगाली – चीता
मराठी – चित्रमूल
पंजाबी – चित्रा
तेलगु – चित्र मूलमु

Comparative review name :-
Nameभाव प्रकाशDhanvantriमदनपालराज कैदेवचंदु
चित्रक******
अनलनामा*
पाठी****
व्याल*****
ऊष्ण*
दहन*****
पाठीन**
अग्निक*
ज्योतिष्क**
वल्लरी*
वहि*
पाली**
कटु**
शिखी*
कृष्णारूण*
अनल****
द्वीपी*
चित्रभानु*
पावक***
अग्नि**
शादूल*
चित्रपाली*
शिखे*
कृशानु*
पालक*
वन्हि*
शबल**
शूर*
वध्मि*
शिंखी*
ज्योति**
ज्वाल**
द्वीपिसञ्ज*
शठ*
अरूण*
हुताश*
टुतभुक्*
द्विपी*
शिखाग्नि*
ज्वलन*
अग्रिमाली*
बह्मिनामा*
हुतभुम्*
अरुण*
हवि*
Classical Mentions :-

Bhavparkash :- हरितयादि वर्ग
Dhanvantri :- शलपुष्पादि वर्ग
Madanpal :- शुण्ठयादि वर्ग
Raj :- पिप्पल्यादि वर्ग
Kaideev :- ओष्धि वर्ग
Chandu :- मदनादि गण

बाह्य स्वरूप :

चित्रक (Chitrak) 3-6 फुट ऊंचा झादिनुमा, बहुवर्षायु और सदाबहार पौधा है।
कांड- बहुत छोटा, भूमि के ऊपर से ही कई कोमल पतली-पतली चिकने हरे रंग की शाखाएं निकलती है।
पत्ते- अभिमुख लटवाकार या आयत लटवाकार 3 इंच लंबे और 1इंच तक चौड़े अग्रभाग तीक्ष्ण, बहुत फलदार तथा हरे रंग के;
पुष्प- 4-12 इंच लंबे, शाखा युक्त, दंड पर लंबी नलिका वाले श्वेत वर्ण निर्गंध गुच्छों में लगे हुए;
फल- लंबे, गोल और एक बीजीय;
जशु- अंगुली जितनी मोटी बाहर से कृष्णाभ, अरुण और भीतर से श्वेता;
छाल- छाल पर छोटे – छोटे उभार होते हैं जो उपमूलों के अवशेष है।
जड़- मोड़ने पर टूट जाती है।

Flowering Season : सितम्बर – नवंबर
Chemical constituents :-

Plumbagin, glucose, sucrose, and enzymes- protease and invertase.

Chitrak flower
Chitrak
गुण – धर्म :-

स्वाद=कटु, तीक्ष्ण
त्रिदोष हर -उष्ण होने से वात शामक; तिक्त, कटु और उष्ण होने से दीपन, पाचन, छर्दी निग्रहण, ग्राही, अर्शोघ्न, कृमिघ्न है।
यह आमपाचन है तथा महास्त्रोत में मल को निकालकर बाद में स्तंभन करता है। तिक्त होने से यह; स्तन्यशोधक, रक्तशोधक, शोथहर, और कटु पौष्टिक है। यह कफघ्न, ज्वरघ्न और विषम ज्वर प्रतिबन्धक है। रुक्ष होने से यह लेखन है।

Comparative review gunn :-
Gunnभाव प्रकाशDhanvantriमदनपालराज कैदेवचंदु
कटुरस*
लघु****
रुक्ष***
उष्ण*****
त्रिदोषशामक**
वातकफनाशक***
तीक्ष्ण*
कटु विपाक****
कटु तिक्त*
कफपित्तनाशक*
चित्रक (Chitrak) केसे त्रिदोष शामक है?

उष्ण होने से वात शामक
तिक्त होने से पित्त शामक
कटु होने से कफ शामक ( कैदेव)

औषधीय प्रयोग :-
  • नक्सीर=चित्रक(Chitak) के 2 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ चाटने से नक्सीर बंद होता है।
  • स्वर भेद=अजमोदा, हल्दी, आंवला, यवक्षार, चित्रक (Chitrak) के चूर्ण को मधु तथा घृत के साथ चाटने से स्वर भेद दूर होता है। मात्रा – 1-2 ग्राम तक दिन में 3 बार देनी चाहिए।
  • अग्निवर्धक=सैंधव लवण, हरड़, पिप्पली, इन्हें सम्भाग में मिश्रित कर गरम जल के साथ सेवन करने से अग्नि प्रदिप्त होती है। इसके सेवन से घी, मांस और नए चावल का ओदन क्षणमात्र में पच जाता है। मात्रा 1-2 ग्राम तक प्रात सांय।
  • अरूचि, अग्निमांद्य और अजीर्ण=चित्रक (Chitrak) ताजी जड़ के 2-5 ग्राम चूर्ण को सम्भाग वायविडंग और नागरमोथा के साथ सुबह शाम भोजन से पाचन शक्ति की व्यवस्था ठीक होकर नियमित भूख लगने लगती है।
  • संग्रहणी=चित्रक के क्वाथ और कल्क से सिद्ध किए घी का 5-10 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम भोजन उपरान्त सेवन करने से संग्रहणी मिटती है।
  • तिल्ली=घृतकुमारी के 10-20 ग्राम गुदे पर चित्रक की छाल के 1-2 ग्राम चूर्ण को बुरक कर सुबह शाम खिलाने से तिल्ली की सूजन मिटती है।
  • प्लीहा=चित्रक मूल, हल्दी, अर्क का पका हुआ पत्ता, धातकी के फूल के चूर्ण इनमें से किसी एक को गुड़ के साथ दिन में 3 बार 1-2 ग्राम तक खाने से प्लीहा रोग नष्ट हो जाता है।
• अर्श =
  1. चित्रक के मूल त्वक के 2 ग्राम चूर्ण को तक्र के साथ सुबह शाम भोजन से पहले पीने से बवासीर में लाभ होता है।
  2. इसकी जड़ को पीसकर मिट्टी के बर्तन में लेपकर, इसमें दही जमा कर, फिर उसी बर्तन में बिलोकर उस छाछ को पीने से अर्श मिटता है।
  • सुख प्रसव=10 ग्राम चित्रक के जड़ के चूर्ण को 2 चम्मच मधु के साथ स्त्री को चटाने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।
• वात रोग =
  • चित्रक की जड़, इन्द्र जौं, काली पहाड़ की जड़, कटुकी, अतिस और हरड़ ये सब चीजें समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर 3 ग्राम तक की मात्रा में सुबह शाम लेने से सब प्रकार के वात रोग मिटते है।
  • संधिवात=चित्रक मूल, आंवला, हरड़, पीपल, रेबंद चीनी और सेंधा नमक इन चीजों को समान भाग लेकर चूर्ण बनाकर 4-5 ग्राम तक की मात्रा में प्रतिदिन सोते समय गरम पानी के साथ लेने से पुराना संधिवात, वायु के रोग ओर आंतों के रोग मिटते हैं।
  • गठिया=लाल चित्रक मूल त्वक को तेल में मिलाकर मर्दन से पक्षाघात और गठिया मिटता है।
• ज्वर =
  1. चित्रक की जड़ के चूर्ण को त्रिकटु के साथ 2-5 ग्राम की मात्रा में देने से अच्छा लाभ होता है।
  2. जब रक्ताभिसरण क्रिया मंद हो जाती है और रोगी अन्न नहीं खाता, उस समय चित्रक मूल क टुकड़े को चबाने से अच्छा लाभ होता है।
• चर्मरोग =
  • चित्रक(Chitrak) की छाल को दूध या जल के साथ पीसकर कोढ़ और त्वचा के दूसरे रोगों में लेप करना चाहिए अथवा इन्हीं चीजों के साथ पीसकर पुल्टिस बनाकर तब तक बन्धा रखना चाहिए जब तक कि छाला न उठ जाए। इस छाले के आराम होने पर श्वेत कुष्ठ के दाग़ मिट जाते हैं।
  • खुजली=लाल चित्रक के दूध का लेप करने से खुजली मिटती है।
  • कुष्ठ=लाल चित्रक की सूखी जड़ की छाल के 2-5 ग्राम चूर्ण के सुबह शाम प्रयोग से उपदंश और कुष्ठ मिटता है।
  • पूतिव्रण=जिन घावों से पीप बेहता हो, उनका मुंह बन्द करने के लिए चित्रक छाल को जल में पीसकर लेप करना चाहिए।
  • चूहे का विष=इसकी छाल के चूर्ण को तेल में पकाकर तलुए पर मलने से विष उतर जाता है।
# विशेष – इसका प्रयोग अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए, योग्य और निर्धारित मात्रा में ही इसका सेवन हितकारी है।
Comparitive review karm :-
Karmभाव प्रकाशDhanvantriमदनपालराज कैदेवचंदु
अग्निवर्धक***
पाचक**
ग्रहणी*****
कुष्ठ****
शोथ****
अर्श*****
कृमि*****
कास**
ग्राही***
कफ शोफ़*
वात विकार**
उदर रोग***
क्षय*
पांडु*
कफ विकार*
कंडू*
शॉफ़*
रसायन*
रोचक*
आम पाचक*

चित्रकः कटुकः पाके वह्निकृत् पांचो लघुः।।
रुक्षोष्णो ग्रहणी कुष्ठशोथार्शः कृमिकासनुत्।
वात श्लेष्महरो ग्राही वातघ्नः श्लेष्मपित्तहृत्।।
(भाव प्रकाश)

आरग्वधमदनगोप घोण्टाकण्टकीकुटजपाठापाटलाम्।    (सुश्रुत)

पिप्पलीभूताचव्यचित्रकश्रृंगवेरमरिचहस्ति।।    (सुश्रुत)

After reading this post, read Kapas.

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