हर आचार्य की संहिता की अपनी विशेषता होती है आचार्य चरक की चरक संहिता में विष की चिकित्सा के लिए 24 उपकर्मो का वर्णन है परन्तु वहां हमें कोई मंत्र प्राप्त नहीं होता वही जब हम इसके लिए हारीत संहिता का आंकलन करते है तब हमे यहां 4 मंत्र प्राप्त होते वो भी विभिन्न उपयोग व कार्य के लिए, भगवान आत्रेय ने सभी शिष्यों को एक समान दीक्षा दी थी परन्तु चरक संहिता में न मिलके का कारण समय में लुप्त हो सकता है। आज हम अपनी पोस्ट में विष तंत्र नामक अध्याय के बारे में बताएंगे।
यहां गोर करने वाली बात है आचार्य ने आयुर्वेद के 8 अंगो में अगद तंत्र व विष तंत्र दोनों अलग अलग अंग बताए है व दोनों के अलग अलग लक्षण भी बताए है, परंतु विष तंत्र की जो परिभाषा बताई गई है वह आजकल के अगद तंत्र से मिलती है।
गुदामयवस्तिरुजं शमनं वस्तिरूहकम् ।आस्थापना अगदं नाम एव च ॥१७॥
गुदा के रोग एवं बस्तिरोग को शान्त करने वाली, निरूह बस्ति, आस्थापन बस्ति और अनुवासन बस्ति-ये सब अगद तंत्र के नाम से जाने जाते हैं।
सर्पवृश्चिकलूतानां विषोपशमनी तु या।सा क्रिया विषतन्त्रञ्च नाम प्रोक्तं मनीषिभिः ॥१८॥
साँप, बिच्छू और मकड़ी के विष को शान्त करने वाली क्रिया को मनीषियों द्वारा विष तन्त्र के नाम से कहा गया है।
विष संख्या :-
8 स्थावर, 8 जांगम ( यह संख्या बाकी आचार्यों से भिन्न है )
स्थावार विष | समानता |
श्रृङ्गिक | काला |
वतस्नाभ | पीला |
श्रृंड्गवेरक | सोठ के समान |
दारक | हरीत वर्ण |
कालकूट | मधु केए वर्ण का |
शड्ख | अतीस के समान |
सत्सुकांदुक | पीला |
हालाहल | काला |
जंगम विष |
दर्विकर |
सर्प |
राजिमंत |
गंडूस |
वृश्चिक |
खंड बिंदुक |
अलर्क |
चूहा |
विष की चिकित्सा के लिए आचार्य हारीत सर्व प्रथम वमन के लिए बोला है उसके बाद में मुख व कर्ण में मंत्र से अभिमंत्रित करके जल की बूंद की लिए बोला हे।
मुख सिंचन मंत्र :-
ॐ हर हर नीलकण्ठ! अमृतं प्लावय प्लावय हुङ्कारेण विषं ग्रस ग्रस क्लीङ्कारेण हर हर ह्रौंकारेण अमृतं प्लावय प्लावय हर हर नास्ति विष उच्छिरे उच्छिरे ॥
कर्ण जाप मंत्र :-
ॐ नमो हर हर नीलग्रीवश्वेताङ्गसङ्गजटाग्रमण्डितखण्डेन्दुस्फूर्त मन्त्ररूपाय विषमुपसंहर उपसंहर हर हर हर नास्ति विष विष विष उच्छिरे उच्छिरे उच्छिरे। इति कर्णेजपमन्त्रेण वारंवारं तालुमुखं सिञ्चच्छीतवारिणा ।।
विष नाशक योग :-
- चोलाई की जड़ गर्म पानी के साथ पीसकर पीने से वमन होकर विष नाश होता है व शरीर में लघुता उत्पन्न होती है।
- खेर की जड़, नीम का फल गर्म जल के साथ पीसकर पीना
- कुरेया की छाल, अश्वगंधा गर्म जल के साथ
- हल्दी, नींबू का रस, कांजी के साथ पिलाने से विष उतर जाता है
विष की साध्य – आसाध्य भेद :-
स्थान | साध्य विचार |
मर्म स्थान | आसाध्य |
त्वचा व रक्त | साध्य |
मांस | क्रिच साध्य |
धातुओं में प्राप्त | आसाध्य |
आसाध्य विष के लक्षण :-
सिर में अत्यन्त पीड़ा, हृदय में पीड़ा, नाक से रक्तस्राव, नेत्र से आशु निकले, जिह्वा जड़ होजाए, रोम बिखर जाए, शरीर पीला पड जाए, मस्तक स्थिर न हो। इनकी चिकित्सा नहीं करनी चाहिए।
विष बंधन मंत्र :-
ॐ नमो भगवते सुग्रीवाय सकलविषोपद्रवशमनाय उग्रकाल कूटविष कवलिने विषं बन्ध बन्ध हर हर भगवतोनीलकण्ठस्याज्ञा। ॐ नमो हर हर विषं संहर संहर अमृतं प्लावय प्लावय नासि अरेरे विष नीलपर्वतं गच्छ गच्छ नास्ति विषम्। ॐ हाहा ऊचिरे ऊचिरे ऊचिरे। अनेन मन्त्रेण मुखमुदकेन त्रासयेत्। ॐ नमोऽरेरे हंस अमृतं पश्य पश्य॥
मुख पर जल की बूंदे डाले मंत्र पढ़ने के बाद इससे बंदन होता है।
विष जड़ने का मंत्र :-
ॐ नमो भगवते सिरसिशिखराय अमृतधाराधौतसकलविग्रहाय अमृत कुम्भपरितोऽमृतं प्लावय प्लावय स्वाहा॥३२॥
जंघम विष के लिए लेप :-
- लौह चूर्ण, बच, कूठ, सेंधव, पीपली, हरिद्रा – काटे हुए स्थान पर लेप
- ब्रह्मी, हलदी, त्रिकटु, अजवायन, नीम की छाल के लेप से सर्प विष का नाश होता है।
- कचुर, चिरायता, त्रिकटु, बच, इंद्रायण, नीम, हरितकी, दोनों हल्दी से विष की पीड़ा का अंत होता है।