जनपद विध्वंश के विषय पर आचार्य चरक ने विमान स्थान के दूसरे अध्याय में बहुत अच्छी प्रकार से व्याख्या की है परन्तु आचार्य भेल ने सूत्र सूत्र स्थान पर वर्णन किया है एक ओर चीज़ जो चरक से बिल्कुल अलग है यह है कि याहा पर भगवान पुनर्वसु ने पांचाल देश में होने वाली महामारी से पहले का वर्णन मिलता है परन्तु आचार्य भेल के इस अध्याय में आचार्य आम तौर पर होने वाली ओर किस प्रदेश में केसी महामारी होती है उसके विषय में बताते है वह एक ओर बात गोर करने वाली है महामारी के विषय में भगवान पुनर्वसु के किसी भी शिष्य ने प्रश्न नहीं किया अपितु गुर्दालुभेकि नामक ऋषि ने पूछा और फिर भगवान आत्रेय ने उत्तर दिए। आज हम इसी अध्याय के बारे में आपको बाटेंगे।
अध्याय की शुरुवात में गुर्दालुभेकि नामक ऋषि ने पूछा कोनसी कोनसी जनपद में किन किन रोग की अधिकता होती है??
जनपद | कारण | रोग |
प्राच्य प्रदेश ( east India ) | नित्य मत्स्य अन्न सेवन | कफ – पित्त रोग, श्लीपद, गलगण्ड |
दक्षिण भारत | नदी व समुद्र में उत्पन्न मशली सेवन | कुष्ठ रोग |
कांभोज | मसूर, जोह, गेहूं, तिल की छाल अधिक सेवन | अर्श रोग |
पश्चिम क्षेत्र | मांस, मदिरा व स्त्री का अधिक सेवन, अधिक श्रम करना | रज्यक्षमा |
बलख, अफगानिस्तान आदि | अभिस्यंदी, मांस आदि से युक्त तीक्ष्ण अन्न पान, पर्वत व तराई के समीप रहने वाले लोग | जुखाम, कफ रोगों से पीड़ित |
ऋतु के अनुसार महामारी :-
जब ऋतु विपर्य्या के कारण वर्षा ऋतु में वर्षा नहीं होती किंतु हेमंत में खूब वर्षा होती है तो महामारी हमेशा फैलती है।
** This seems logical in today’s Corona’s epidemic too.
महामारी की चिकित्सा :-
महामारी फैलने पर व्यक्ति को बचने के लिए मित भोजी, धृतिमान होकर रहना चाहिए। मंत्रो व औषधि सेवन के साथ दान करने से महमारी से बच सकता है।
शरद में होने वाला ज्वर :-
सूर्य की धूप के वर्षा ऋतु के उपरांत अचानक तीव्र हो जाने से पित्त प्रकुपित हो जाता है।
विभिन्न योनि में होने वाले ज्वर के नाम :-
योनि | नाम |
गाय | चारण |
श्वपदो | इन्द्र जाल |
मछली व पक्षी | प्रमीलक |
धान्यो | चित्रक |
मूलो व फलो | देव |
हाथी | पाक |
घोड़े | उत्कर्णक |
असत्म्य गंध जन्य रोग :-
इसके कारण जुखाम होता है परन्तु कभी कभी बतालिका नाम के फोड़े मनुष्य को हाथ, कंठ, कर्णमूल, हृदय आदि पर उत्पन्न हो जाते है। उन्हें तुरंत शांत करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि यह मृत्यु कारक हो सकती है, यह रोग पित्त कफ के प्रकोप के साथ रक्त को मूर्छित करके उत्पन्न होती है।