Ever wondered how yoga started? Who was first the person to perform yoga? Was the same as it is currently or it changed with time? Most of you would had heard about Sage Patanjali and Shiva that shiva imparted knowledge to him! But did he impart it to anyone else too?? So to answer all these questions we will letting you know about History of Yoga. This post is written in hindi as well as in english.
Shiva :- The Father of Yoga
भगवान शिव को आदि योगी व योगीश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ होता है प्रथम योगी अर्थात् :- योग का शुरवात करने वाला व उसका ईश्वर यही कारण है कि भगवान शिव को सदा ध्यान में दर्शाया जाता है।यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव को 84 लाख आसनों से अधिक का अभ्यास था। इसके अलावा आजकल भगवान शिव को फादर ऑफ योगा भी कहा जाता है, इन्हे प्रथम सिद्ध भी कहा है। आयुर्वेद मत अनुसार :-
आरोग्यं भास्करादिच्छेद्वनमिच्छेद्धुताशनात्।
ज्ञानं महेश्वरादिच्छेन्मुक्तिमिच्छेञ्जनार्दनात्।।
सूर्य देवता से आरोग्य, अग्नि से धन की, शंकर जी से ज्ञान की, विष्णु जी से मोक्ष की इच्छा करे।
Lord shiva is known as Adi Yogi and Yogishavar that means first Yogi or starter or yoga. It’s always deplicted that shiva is performing meditation. It is also said that Shiva had practiced more then 84 lakh Aasana, he is also known as First Sidha, Father of Yoga. Even Shiva samhita mentions about Yoga.
Parvati – First Student of Shiva
Shastras say that Lord Shiva first imparted his knowledge on Yoga and meditation to his wife Parvati. It is only after this that the cosmic joining of Lord Shiva and Goddess Parvati happened. On the night of their union Shiva and Parvati started the dance of mystic love. It is described as “ujyate anena iti yogah” which means One that joins is yoga.
On the night when Lord Shiva for the first time shared the secrets of Yoga to his wife, he became the Adi Guru of Yoga. He taught Goddess Parvati 84 Asanas of Yoga which belong to the Vedic parampara. These 84 Asanas have the power to give the person the best of the Rajyoga. Now, what Rajyoga is? Basically, these Yogic positions eradicate the doshas in a person’s life and confer their most auspicious results. This enables the person to remain healthy, wealthy, happy and successful.
The eternal love Shiva had for Parvati was so strong that he never wanted to share these Yogic secrets with anyone else except her. However, Goddess Parvati being the symbol of care and affection could not take the sufferings of the people and wanted to share this miraculous secret with them. She believed that the introduction of Vedic Yoga in a proper manner will rectify many miseries of the world. Lord Shiva was quite reluctant about this act of spreading the knowledge. He thought that the mankind does not have the understanding to respect these cosmic powers. But, with her loving approach Parvati persuaded the God for the same
पार्वती :-
शास्त्रों का कहना है कि भगवान शिव ने सबसे पहले योग और ध्यान का ज्ञान अपनी पत्नी पार्वती को दिया। इसके बाद ही भगवान शिव और देवी पार्वती की लौकिक मुलाकात हुई। उनके मिलन की रात को शिव और पार्वती ने रहस्यवादी प्रेम का नृत्य शुरू किया। इसे “उजाते अनेना इति योगा” के रूप में वर्णित किया गया है।
जिस रात भगवान शिव ने पहली बार योग के रहस्यों को अपनी पत्नी से साझा किया, वह योग के आदि गुरु बन गए। उन्होंने पार्वती को योग के 84 आसन सिखाए जो वैदिक परम्परा से संबंधित हैं। ये 84 आसन व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ राजयोग देने की शक्ति रखते हैं। अब, राजयोग क्या है? मूल रूप से, ये योगिक पद व्यक्ति के जीवन में दोषों को मिटाते हैं और उनके सबसे शुभ परिणामों को प्रदान करते हैं। यह व्यक्ति को स्वस्थ, धनी, खुश और सफल रहने में सक्षम बनाता है।
पार्वती के प्रति शिव का अनंत प्रेम इतना प्रबल था कि वह इन योगिक रहस्यों को अपने अलावा किसी और के साथ साझा नहीं करना चाहते थे। हालांकि, देवी पार्वती देखभाल और स्नेह का प्रतीक होने के कारण लोगों के कष्टों को नहीं झेल सकती थीं और इस चमत्कारिक रहस्य को उनके साथ साझा करना चाहती थीं। उनका मानना था कि वैदिक योग की उचित तरीके से शुरुआत करने से दुनिया के कई दुखों को दूर किया जाएगा।
भगवान शिव ज्ञान फैलाने के इस कृत्य को लेकर काफी अनिच्छुक थे। उसने सोचा कि मानव जाति के पास इन ब्रह्मांडीय शक्तियों का सम्मान करने के लिए समझ नहीं है। लेकिन, पार्वती ने अपने प्रेमपूर्ण दृष्टिकोण से भगवान को उसी के लिए राजी कर लिया।
Sapt Rishies and Yoga :-
As Shiva is always engoshed in practicing Yoga/Dance or meditation, he is calm and always happy with same. Devatas were jealous and thought What does shiva has we don’t we need to learn the same. With the same conquest Rishies approched Shiva to teach them.
Shiva mocked the Rishies and said for a person like you human would require millions of year to be taught ( here comes the mention for 84lakh+ aasana). So shiva said that I can’t teach you, after hearing this from shiva the sages prepare day by day daily and days to month pass and then finally year and in Dakshinayana, Purnima Shiva agreed to teach Sages after being satisfied from their preparation.
The day shiva agreed to become Guru of 7 Sages is known as Guru Purnima. This is why this day was of Purnima.
Gain of Knowlege and becoming Sidha :-
It is believed that this teaching of the 7 Rishis happened on the banks of Kanti Sarovar, near Kedarnath. Shiva imparted knowledge of 7 different parts of yoga one to each sage. After that each sage run his own branch. This lead to more sidhas and also showed that human can achieve another level of superpower with his efforts
सप्त ऋषि :-
भगवान शिव हमेशा ध्यान व नृत्य में मग्न दिखाए जाते है जिस कारण व हमेशा शांत व खुश दिखते है यह देख कर देवता व ऋषियों को लगा कि भगवान शिव के पास कुछ ऐसा है जो उनके पास नहीं है और होना चाहिए इसी लिए वे भगवान शिव के पास ज्ञान के लिए अनुरोध किया। परन्तु भगवान शिव ने कहा तुम्हे यह सब सीखने में लाखो साल लग जाएंगे और इसलिए में यह तुम्हे सीखा नहीं सकता।
यह वाख्यांत होते ही ऋषि तेयारी में जुट गए और तेयारी करते करते दिन दिन करते महीने फिर साल बीतने लगे, उनका निष्य देखकर भगवान शिव ने उन्हें सीखने के फैसला किया और दक्षिणायन की पूर्णिमा के दिन उनका गुरु बनाना स्वीकार किया, जिस कारण वह दिन गुरु पूर्णिमा के रूप में बनाया जाता है।
यह माना जाता है कि कांति सरोवर के किनारे, केदारनाथ में भगवान शिव ने सप्त ऋषि को ज्ञान दिया व सिद्ध बनाया, परंतु यह बात गोर करने वाली है कि शिव ने सभी को अलग अलग भाग का ज्ञान दिया और जिसे लेकर उन्होंने अपनी पद्यती शुरू की और लोग कल्याण किया और दर्शाया की इंसान अपने विश्वास से कुछ भी सीख सकता है।
Krishna – Yogeshwar
Lord Krishna is known as Yogeshwar that means God of yogis or ultimate goal of Yogis, history behind Saying this resides during the war of Mahabharata, Shree Krishna pledged that he won’t lift any weapon during war. When the same was heared by Bhisma Pitamah then he too Pledged that he would create a situation in which Shree Krishna will have to lift weapon. So during the war Bhisma Pitamah was being unstoppable and to keep pledge of his devotee lord Krishna lift uo the weapon and made his devotee win. Also bhagwat Geeta mentions about Bhakti Yoga etc in detail which lead to this.
भगवान कृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है जिसका अर्थ होता है योगियों का ईश्वर, इसके कहने के पीछे का रहस्य कुछ इस प्रकार है कि महाभारत के युद्ध ने भगवान कृष्ण ने प्रण लिया था कि वो हत्यार नहीं उठाएंगे और जब भीष्म पितामह को इस बात का पता चला तो उन्होंने भी प्रण लिया कि में भी आपको हात्यार उठाने पर मजबूर कर दूंगा, इसके बाद में भीष्म पितामह युद्ध में इस प्रकार गर्जना की कोई उन्हें रोक नहीं पा रहा था, और यह देख कर व भक्त के प्रण का मान रखने के लिए भगवान कृष्ण ने शास्त्र उठाया, इस कारण वह योगेश्वर कहलाए, और भागवत गीता में भक्ति आदि योगों के बारे में विस्तार से वर्णन है।
Patanjali – Father of Modern Yoga
Once upon a time Lord shiva was performing his dance and Lord Vishnu was engoshed in watching dance while sitting on Adishesha, soon Vishnu started to vibrate in Rhythm with dance, weight of vishnu started to increase and increased to a point where Adishesha was at the point of collapse and as soon as dance ended, weight returned back to normal which lead to asking of Adishesha about reason for this happening. Lord Vishnu lead to explain about Yoga and lead to eagerness in learning. Then lord Vishnu predicted that soon Lord shiva will allow him to write commentary on Vayakaran as well as teach the same.
एक बार भगवान शिव नृत्य कर रहे थे और भगवान विष्णु उस नृत्य में खो गए ओर वह उस समय शेष नाग के ऊपर बैठे थे और धीरे धीरे भगवान शिव के नृत्य के साथ में उनकी ताल बनी ओर भगवान विष्णु का वजन बढ़ने लगा और इतना बढ़ गया कि शेष नाग उसे सेहने में समर्थ नहीं हो रहे थे, नृत्य ख़तम होने के बाद में वजन पहले जैसा होगया ओर फिर इसका कारण पूछा तब उन्होंने शेष नाग को शिव के नृत्य के बारे में बताया और उसके बारे में जानने के बाद में आदि शेष के मन में इसे सीखने की इच्छा उत्पन्न हुई और उन्होंने भगवान विष्णु को कहा। तब उन्होंने भविष्वाणि करी की भगवान शिव तुम्हे व्याकरण पर टीका लिखने का मौका देंगे ओर यह भी सिखाएंगे।
Gonika and Incarnation of Patanjali :-
Devotee Gonika was praying to God to bless her with a child so that she can impart him her knowledge. So while giving Anjali (water) to Sun. A small snake fall upon her hand, she thought that this was blessing of God and accepted him as his son, soon this snake lead to human and she named him Patanjali because :-
‘Pat’ means Fallen from heaven and ‘Anjali’ means while hands in Prayful gesture.
गोनिका नामक भगवान की भक्त बच्चे के लिए भगवान से प्रथना कर रही थी ताकि वह अपना ज्ञान उसके साथ में बात सके, उसके बाद में वह भगवान सूर्य देव को जल अर्पण कर रही थी उसी समय भगवान शेष ऊपर से नीचे साप के रूप में आए और जब गोनिका ने देखा तो भगवान का आशीर्वाद समझ कर उसे अपना बेटा मान लिया और उसके बाद में वह साप इंसान के रूप में बदल गया और गीनिका ने उसका नाम पतंजलि रखा यह रखने के पीछे कारण है:-
‘पत’ का अर्थ होता है :- स्वर्ग से गिरना, ‘अंजलि: का अर्थ होता है :- हाथ जोड़ने की अवस्था में
Knowledge Impartment :-
Soon Patanjali started to pray lord Shiva to impart him knowledge, Shiva impressed by effort thought of imparting knowledge but was stopped by Devi kalika. But soon again Shiva decided to go but again stopped by Devi Kalika which eventually lead to competition between Devi Kalika and Lord shiva with condition that who so ever wins will go to impart knowledge.
During competition earning of Lord Shiva fall down but lord shiva pick it up in a matter that no one noticed and eventually win for lord shiva this is known as “Urdhva Tandava“.
After this incident lord Shiva Went to Patanjali and said that he will show him his dance and he may note it. So at Chindakabarm Lord shiva in Natraj showed Dance to Patanjali. As shiva was joyful from win he performed “Ananda Tandava“.
यतश्वर द्ववायातो न ज्ञात: केनचिघतः। तस्माच्चरकनाम्नाऽसौ विख्यात: क्षितिमण्डले।। (भावप्रकाश)
AS LORD SHESH ARRIVED ON EARTH LIKE A SPY AND NO ONE WAS ABLE TO IDENTIFY HIM SO AS A RESULT, THEY ARE FAMOUS ON EARTH WITH THE NAME “CHARAK”.
ज्ञान प्रदान :-
जल्द ही पतंजलि ने भगवान शिव से उन्हें ज्ञान प्रदान करने के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दी, शिव ज्ञान प्रदान करने के प्रयास से प्रभावित हुए लेकिन देवी कालिका द्वारा रोक दिया गया। लेकिन जल्द ही शिव ने फिर से जाने का फैसला किया, लेकिन फिर से देवी कालिका ने रोक दिया, जो अंततः देवी कालिका और भगवान शिव के बीच इस शर्त के साथ प्रतिस्पर्धा करता है कि जो कभी जीतता है वह ज्ञान प्रदान करेगा।
भगवान शिव की प्रतियोगिता के दौरान कान की बाली गिर जाती है, लेकिन भगवान शिव उसे इस प्रकार उठाते हैं कि किसी ने गौर नहीं किया और अंततः भगवान शिव जीत गए, इसे “उर्ध्वा तांडव” के रूप में जाना जाता है।
इस घटना के बाद भगवान शिव पतंजलि के पास गए और कहा कि वह उन्हें अपना नृत्य दिखाएंगे। उसके बाद में नटराज रूप में चिड़कबर में भगवान शिव ने पतंजलि को नृत्य दिखाया। क्योंकि भगवान शिव जीत से खुश थे इसलिए उन्होंने “आनंद तांडव” का प्रदर्शन किया।
योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैघकेन। योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि।। ( भाव प्रकाश)
योग शास्त्र से जिन्होंने चित्त का, व्याकरण से भाषा का ओर वैद्य शास्त्र से शरीर का मल दूर किया उस पतंजलि को मै अंजलिंद्ध प्रणाम करता हूं।
Nandi and Vyagprapada :-
While shiva was performing dance to teach Patanjali, Nandi and Vyagprapada also watched and also learned the same. So, Nandi is also known as one of the Sidhas.
जब भगवान शिव पतंजलि को ज्ञान प्रदान कर रहे थे तब नंदी व व्यागप्रपाद ने भी उसे देखा और सिखा,इसी कारण से नंदी को भी एक सिद्ध माना जाता है।
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