नाम:-
संस्कृत | अञ्जनम् |
हिंदी | अञ्जन |
english | collyrium |
पर्याय:- मेचक, लोचक, अञ्जन।
सौवीराञ्जनः- कृष्णाञ्जन, सौवीर, सुवीरज, कालाञ्जन।
स्रोतोञ्जनः- स्रोतोज, यामुनेय, यामुन/।
नीलाञ्जन- लौहमार्दवकर, वारिसम्भव, शक्रभूमिज, सुवर्ण घ्न।
पुष्पाञ्जनः- कुसुमाञ्जन, कौस्तुभ, रीतिपुष्पक, पुष्यकेतु, रीतिज।
रसाञ्जनः- दावीक्वाथभव, बालभैषज्य, रसोद्भव, रसगर्भ, रसाग्रज।
अञ्जन प्राप्ति स्थान:
(1) सौवीराञ्जन:- झारखण्ड के सिंहभूमि जिला।
(2) स्रोतोञ्जन:- अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बोर्नियो, मसाला, नेपाल, भारत में जम्मू, हजारीबाग, सिंहभूमि (झारखण्ड), पंजाब, आंध्रप्रदेश।
(3) नीलाञ्जनः- झारखण्ड के हजारीबाग, कश्मीर, वर्मा।
(4) पुष्पांजन- प्रयोगशालाओं से।
(5) रसाञ्जनः- दारुहरिद्रा के वृक्ष अधिक मिलने के कारण जम्मू कश्मीर में निर्माण किया जाता है। कुमाऊँ, गढवाल, ऊटकमंड आदि पहाडी क्षेत्रों एवं प्रयोगशालाओं से प्राप्त होता है।
अञ्जन की निरुक्ति:-
जिस द्रव्य का नेत्र में अञ्जन किया जाता है, उसे अञ्जन कहते है।
अञ्जन के भेद:-
रसरत्नसमुच्चय में अञ्जन के 5 भेद बतलाये हैं:
(1) सौवीरांजन
(2) रसाञ्जन
(3) स्रोतोञ्जन
(4) पुष्पाञ्जन
(5) नीलाञ्जन
रसजलनिधिकार ने छठा भेद ‘कुलत्थाजन‘ माना है।
आयुर्वेद प्रकाश कार ने श्वेत (सौवीरांजन) एवं कृष्ण (स्रोतोञ्जन) रूप से अञ्जन के दो भेद किये है।
अञ्जन के भेदानुसार लक्षण :
- सौवीरांजन- यह धूम्रवर्ण, पाण्डुर वर्ण अथवा श्वेतवर्ण (आयुर्वेदप्रकाश)
- रसाञ्जन-पीतवर्ण
- सातोञ्जनः- वल्मीक शिखराकार, तोड़ने पर नीलवर्ण।
- पुष्पाञ्जनः-श्वेतवर्ण
- नीलाञ्जनः:- भारी, नीलवर्ण
रसाञ्जन (Extract of indian berberis)
■यह वानस्पतिक द्रव्य है। एक भाग दारुहरिद्रा में सोलह गुणा पानी मिलाकर षोडशांश शेष क्वाथ बना लिया जाता है।
फिर दार्वी क्वाथ के समान भाग में गोद्ध या अजादुग्ध मिलाकर पाक किया जाता है। जब यह पककर घन हो जाये तो उसे उतारकर धूप सुखा लिया जाता है। इसे रसाञ्जन कहते है।
●यह नेत्र के लिए अत्यन्त लाभदायक होता है।
अञ्जन का शोधन:
भृंगराज स्वरस की भावना देने पर सभी प्रकार के अञ्जन शुद्ध हो जाते है।
अञ्जन के गुण:
1)सौवीराजन:- यह रक्तपित्तहर, धूम्र, शीत, विषहर, हिक्का, नेत्ररोग का शोधन एवं रोपण करने वाला होता है।
2) स्रोतोञ्जन:- यह शीत, स्निग्ध, कषाय, मधुर, लेखन होता है। इससे रोग, हिक्का, विषविकार, वमन, कफ एवं पित्त रोग दूर हो जाते है।
(3) रसाजन:-यह पीतवर्ण, विषविकार, मुखरोग, हिक्का, श्वास, वर्णेकर, रसाजन का निर्देश दिया है। एवं रक्तपित्त का नाशक होता है। आचार्य चरक ने नेत्रस्राव कराने के लिए निर्देश दिया है।
(4) पुष्पाञ्जनः- यह शीत, स्निग्ध, श्वेतवर्ण होता है इससे सभी नेत्ररोग, भयंकर हिकका रोग ज्वर नष्ट हो जाते हैं।
(5) नीलाञ्जन:- यह गुरु, स्निग्ध, नेत्र्य, रसायन एवं त्रिदोष नाशक होता है। इससे सुवर्ण का मारण और लौह में मृदुता हो जाती है।’
अञ्जन का मारण:-
अञ्जन का मारण नहीं किया जाता है।
अञ्जन सत्व पातनः–
मनःशिला एवं राजावर्त के सत्त्वपातन की तरह ही इसका भी सत्वपातन करना चाहिए।
अञ्जन के प्रमुख योग:
(1) पुष्यानुग चूर्ण
(2) पीयूषवल्ली रस
(3) पत्रांगासव
(4) चंदनादि चूर्ण
(5) वातारि रस
One reply on “Anjana (अञ्जन )-collyrium : उपरस, Types and Properties”
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