आयुर्वेद में बालको की बहुत सारी व्याधि का कारण देविक माना गया है, वह व्याधि जो शिशु को ग्रहण करती है उसे बाल ग्रह कहा जाता है। इन रोगों में दैवव्यप्राश्रय या युक्तिव्यपाश्रय कर्म करने का कहा गया है।
ग्रह :-
गुप्त वस्तु तथा भविष्य का ज्ञान जिसमें हो एवम् जिसके रोग शरीर व मन की स्थिति अव्यवस्थित, जिसमें शक्ति क्रिया हो।
बाल ग्रह संख्या :-
- इनकी संख्या आचार्य सुश्रुत ने 9 कहीं है।
- चरक ने इन्हे अपरिसंखाया बताया है
- वाग्भट ने इनकी संख्या 12 बताया है।
- काश्यप संहिता के अनुसार संख्या 10 है।
- भाव प्रकाश, योग रत्नाकर, माधव ने सुश्रुत के अनुसार 9 बताए है।
- हारित आचार्य ने 10 ग्रहों का वर्णन किया है परन्तु वो बाकी सभी आचार्यों से पूरी तरह से भिन है।
- रावण कृत कुमार भृत्य में 12 ग्रहों का वर्णन किया है जिन्होंने उन्होंने मात्रिका नाम दिया है परन्तु नाम वह लक्षण बिल्कुल एक जैसे है। भैजया रत्नावली ने इसी को बताया है।
ग्रह भेद :-
- पुरुष ग्रह :- स्कन्द ग्रह, स्कांदापस्मार, नैगमेष, श्वग्रह, पितृग्रह
- स्त्री ग्रह :- शकुनि, रेवती, पूतना, अंधपुतना, शीतपुतना, मुखमंडिका, अदृष्टपूतना, शुष्क रेवती
उत्पति :-
कास युक्त वन में अपने तेज से रक्षित कार्तिकेय की रक्षा के लिए कृतिका, उमा, अग्नि व भगवान शिव ने ग्रहों की उत्पति की।
- भगवान शिव द्वारा :- स्कन्द ग्रह
- अग्नि द्वारा :- स्कांदापसमर
- उमा द्वारा :- नैगमेष
- कार्तिकेय :- जब वर्ण का क्षय होने के बाद वापिस आया उस स्थान से उत्पति
- कार्तिकेय :- जब चन्द्र की ख्वाहिश पूरी न होने पर मुखमंडल विकृत होने से मुखमंडिका
ग्रह बाधा के कारण :-
- सामाजिक कारण :- जिस कुल में ब्रहामण, साधु, गुरु एवम् अतिथि का सत्कार न हो, जहा कुल में बलिदान, भिक्षा एवम् दान न किया जाता हो।
- शारीरिक कारण :- जहां सदाचार एवम् पवित्रता नष्ट हो गई हो, जो दूसरे के ऊपर जीवित रहते हो, फूटे हुए कांसे के बर्तन में भोजन करता हो।
- धात्री विषयक :- बच्चे को दूध का पान करने वाली स्त्री अहितकर आहार का सेवन करती है।
- शिशु विषयक :- शौच कर्म, मंगल कर्म न करने वाले, आचार कर्म, पाप विरोधी कर्म से हीन होने से, डरने से, अधिक हस्ते हो, अधिक मार खाते हो।
- ग्रह विषयक :- हिंसा, रती व अर्चना की आकांक्षा से ग्रह ग्रहण करता है।
** ‘इत्याचार: समासेन, यं प्राप्नोति समाचरन् । आयुरारोग्यमैश्वर्यं यशो लोकांश्च शाश्वतान्’ ।। ( आ. हृदय सू 2/48 )
अत: स्वस्थवृत्त के सिद्धान्तों के प्रतिकूल आहार-विहार का जो भी बालक उपयोग करेगा, वह ग्रहावेश से पीड़ित हो सकता है ।
पुर्वरूप :-
बच्चे हमेशा सतत रोते रहते है व ज्वर बना रहता है।
सामान्य लक्षण :-
लक्षण | सुश्रुत | वाघभट | माधवकर |
उद्विग्न | + | + | |
त्रास | + | + | + |
रोदन | + | + | + |
संज्ञा नष्ट | + | + | |
नाखून मारना खुद को और धात्री को | + | + | + |
दंत चबाना | + | + | |
कुंजन | + | + | + |
उबासी | + | + | + |
ऊपर देखना | + | + | + |
मुख से फेन आना | + | + | + |
क्रूर | + | ||
भिन्न एवं आम युक्त मल | + | + | + |
दीनता | + | + | + |
आर्त स्वर | + | + | + |
निशा जागरण | + | + | |
दुर्बल | + | + | |
मलीन अंग | + | + | |
मछली, खटमल आदि जैसी गंध | + | + | |
स्तनय पान से द्वेष | + | + | + |
अंगो में शोथ | + | ||
प्रजार्जन | + |
बाल ग्रह को पहचाना ( वेदनाएं ) :-
- जब ललन पालन करने वाली सुखी व सब भोग करने वाली धात्री लगातार बुरे स्वपन देखे।
- स्तनों से खुद दूध प्रवृत्त हो
- बच्चे का स्मरण नहीं रहे
- बच्चे को अपस्मार हो जाए
- बालक एक दम से गोद से गिर जाए
- बालक के सोने पर भयंकर आकृति का पक्षी वहां घोसला बना ले
- बिडाल उसे लांग जाता है, धूम को सुंगता है व लंगण करता है, बलि को खा जाता है।
- बालक के मुख से दुर्गन्ध आती है, नाक में मल उत्पन्न होता है
- माता और पुत्र दोनों अशुभ लाल रंग की माला, भस्म, अलंकार व तूष के ढेर पर बैठते है
- रोदान, छाया, में एक दम परिवर्तन हो जाना
- बालक अपने शरीर को धारण नहीं कर पाता है, अंग इधर उधर फैकता है
- कबूतर की तरह शब्द करता है।
आवेश के कारण के अनुसार लक्षण :-
कारण | लक्षण |
हिंसा | नाक बहती रहती है, जीभ पर घाव हो जाते है, बार बार कहरता है, दुखी रहता है, आंखो से आंसू निकलते है, आकृति बिगड़ जाती है, आजाव क्षीण हो जाती है, शरीर से दुर्गन्ध आती है, कृश हो जाता है, मल मूत्र से हाथो को मसलता है, कोई पास में खड़े हो उसे मारता है, खुद को मरने की कोशिश करते है, तृष्णा, दाह, मूर्च्छा, वमन व स्त्रोत्र से रक्त स्राव होने लगता है |
बलि | सुस्ती, होंठ व गला सूखता है, बोलने का। विचार करता है, इधर इधुर शंका से देखता है, रोता है, चिंता करता है, दीन बना रहता है, डरता है, कहना पूरा नहीं खाता |
रति | अकेले रहने की, मैथुन करने की, प्रेम आलाप, सुगंधित माला एवम् आभूषण धारण करता है, प्रसन्न व शांत रहता है |
आसाध्य ग्रह के लेक्षण :-
- स्तम्भ नेत्र, स्तन द्वेशी, बार – बार मूर्छित होने वाला
- शुष्क रेवती के आसाध्य लक्षण :– केश गिरना, अन्न द्वेष, विभिन्न वर्ण का मल होना, उदर पर ग्रन्थि होना, शिराओं का दिखाई देना, रोधन, गीध जैसी गंध आना, जिह्वा भीतर की ओर खींच जाना, मुख का तालू भाग काला पड़ जाना।
- स्कंदग्रह के आसाध्य लक्षण :- अंग की विकलता अथवा मृत्यु निश्चित।
- अरिष्ट लक्षण युक्त
पंचकर्म व ग्रह :-
- वमन साध्य – स्कन्द आपस्मार, स्कन्द पिता, नेगमेष
- विरेचन न कराए – रेवती
- वमन न कराए – रेवती, पुंडरीक, शकुनी, पूतना, मुख मंडिका
चिकित्सा :-
ग्रहों की चिकत्सा भूत विद्या ( आयुर्वेद के अंग ) के अन्तर्गत आती है जो आजकल पूर्ण तह: उपलब्ध नहीं होती पर कुछ चिकत्सा काश्यप, अष्टांग में मिलती है जो कि इस प्रकार है :-
बालको की ग्रह बाधा शमन की चिकित्सा रावण कृत कुमार भृतय के अनुसार करनी चाहिए ऐसा भैज्या रत्नाकर ने कहा है।
- युक्ति/ देवाय प्रशाचर चिकित्सा करनी चाहिए
- स्कन्द देव की पूजा करते है
- बलि, होम करना चाहिए
- रात्रि में स्नान करना चाहिए
- अष्ट मंगल घृत का प्रयोग करना चाहिए
- महेश्वर धूप का प्रयोग करना चहिए
- स्वछता रखनी चाहिए।
- शिशुक धूप, दशाङ्ग धूप, कर्ण धूप का प्रयोग करना चाहिए
- अरणी, कुरबक, वरुण, परिभद्र, हरिद्रा, चित्रक, नल, चिर बिल्व, ध्यमाक के क्वाथ से प्रशेप करे
- प्रीयंगु, रोकना, सौंफ, तगर, ताल्सी पात्र, जटामांसी, रक्त चंदन, सरीवा, महुआ, अंकोथ, मंजिश्ठा, बड़ी एला, भू निंभ से तैल सिद्ध करके मूंग व कांजी डाले।
- अष्ट मंगल घृत , सारिवा घृत
- तीन दिन तक निम्न मंत्र का पाठ करके बलि देनी चाहिए व 4 थे दिन ब्रहामण को भोजन कराना चाहिए।
- ॐ नमो रावणाय अमुकस्य व्याधि हन हन मुञ्च मुञ्च ह्रीं फट् स्वाहा
चिकित्सा में विहार :-
- बालक को एकांत ग्रह में रखे, घर में 3 बार इस घर झाड़ू से साफ करे।
- घर में सदा अग्नि जलती रही, पानी छिडके।
- भस्म, फूल, बीज, पत्र, जॉ, तिल आदि अन्न घर में बखेर दे।
- सरसो तैल का दिया जलाकर रखे।
- बच्चे को 10 साल पुराने घी से मालिश करके गर्म पानी से स्नान करवाए।
- स्नान करवाके धूनी दे।
- पवित्र स्थान पर गोबर से लेप कर स्थान पर पात्र रखे, उस पात्र में अक्षत व दक्षिणा डाल दे। जलते हुए कोयले, जल, गूगल, घी, श्वेत पुष्प, बलि, धूप, दूर्वा, श्वेत सरसो रखे।
- श्वेत लाल, पीली या श्वेत धागा लेकर भोज पत्र पर गो रोचना द्वारा लिखी अपराजिता विद्या को लपेट दे।
वाग्भट के अनुसार बाल ग्रह के बारे में कहा है कि उसे सुक्ष्म दृष्टि के द्वारा देखा जा सकता है यह virus या bacteria समझा जा सकता है।
To read about each Graha in detail refer individual Graha by searching at vaidyanamah.com