Introduction Thalassemia is a blood disorder passed down through families (inherited) in which thebody makes an abnormal form or inadequate amount of hemoglobin. Hemoglobin is the protein in red blood cells that carries oxygen. The disorder results in large numbers of red blood cells being destroyed, which leads to anemia.They characterised by varying degrees of […]
Category: Kumar Bhritya
आयु परीक्षण आयुष्मान या दिघ्रायू के लक्षण (1) केश-जो एक-एक अलग-अलग निकले हो, मृदु हो, अल्प हों, सिनीग्ध हों, जिनके मूल मजबूत एवम् काले हो। (2) त्वचा-स्थिर एवं मोटी अच्छी होती है। (3) सिर-स्वाभाविक आकृति से युक्त, पर कुछ प्रमाण से बड़ा हो, किन्तु देह अनुसार ही बड़ा हो और छाता के सदृश उतार-चढ़ाव युक्त […]
Domains of Development
Normal development is a complex process . However, it is easy to under stand and assess development under the following five domain; i. Gross motor development ii. Fine motor skill development iii. Personal and social development and general understanding iv. Language v. Vision and hearing Gross Motor Development Motor development progresses to ultimate attainment of […]
आयुर्वेद में बालको की बहुत सारी व्याधि का कारण देविक माना गया है, वह व्याधि जो शिशु को ग्रहण करती है उसे बाल ग्रह कहा जाता है। इन रोगों में दैवव्यप्राश्रय या युक्तिव्यपाश्रय कर्म करने का कहा गया है। ग्रह :- गुप्त वस्तु तथा भविष्य का ज्ञान जिसमें हो एवम् जिसके रोग शरीर व मन […]
परिचर्या के विभिन्न कर्मों को करने का जो क्रम दिया गया है, यह सभी में अलग-अलग वर्णित है- Trick:- PSM की गर्भ पर नज़र। (चरक अनुसार) P – प्राण प्रत्यागमन S – स्नान M – मुख विशोधन गर्भ – गर्भोदक वमन पर – परिमार्जन – उल्वा परिमार्जन न – नालछेदन ज – जात कर्म र […]
विभिन्न आचार्यों ने अपने-अपने मत अनुसार अपरा (placenta) गिराने के बाद किए जाने वाले उपयुक्त कार्यों का वर्णन किया है। आचार्य चरक का मत = प्रसूता स्त्री की अपरा गिराने लिए कार्य होने के बाद कुमार लिए निम्नाङ्कित कार्य करने चाहिए। दो पत्थरों के टुकड़े को लेकर बालक के कान के मूल अर्थात् कान के […]
दंतोद्भेद काल व उसके लक्षण :- मास उत्पन्न हुए दांत के लक्षण बालक की आयु 4थे मास में उत्पन्न दांत दुर्बल, शीघ्र गिरने वाले, बहुत रोग युक्त हीन आयु 5 वें मास में उत्पन्न हिलने वाले, हर्ष आदि रोग युक्त 6 वें मास में उत्पन्न टेढ़े-मेढ़े, विवर्ण, कीड़ों से खाए हुए 7 वें मास में […]
Raksha karm/ रक्षा कर्म= आयुर्वेद में जात कर्म संस्कार के बाद में रक्षा विधान का वर्णन है। इसका उपयोग बालको की भूत, राक्षस आदि से रक्षा से होता था, आज आधुनिक भूत को Pathogen (Bacteria, virus etc.) मानते है, तो आज भी हम इसका (Raksha karm) उपयोग अपने घर को इनसे मुक्त व सुरक्षा कर […]
धूप की उत्पति :- जब उत्पन्न हुए ऋषियों के पुत्रों को राक्षसों ने सताना प्रारंभ किया तब होम, जाप एवं तप से युक्त हुए सब महर्षि अग्नि देवता के शरण में पहुंचे। इससे प्रसन्न होकर अग्नि ने कहा- मेरे द्वारा अर्पित किये गये इन धूपों का तुम ग्रहण करो तथा प्रयोग करो । इससे तुम्हें […]
काश्यप संहिता में भगवान काश्यप के वचनों को वृद्ध जीवक ने संहिता के रूप में लिखा ओर वह इसी कारण यह वृद्ध जीवकिय तंत्र व काश्यप संहिता कहलाती है। वचन भगवान काश्यप लेखक वृद्ध जीवक प्रति संस्करण कर्ता वात्सायन समय :- इसका समय 6 शताब्दी माना जाता है। परंतु यह उससे भी पुरानी होने की […]