सूत्र स्थान चतुष्क :-
सूत्र स्थान में आचार्य ने 4-4 अध्याय के 7 चतुष्क बनाए गए और अंतिम 2 अध्याय को संग्रहअध्याय कहा गया है।
औषधि, स्वस्थ मनुष्य को निर्देशानुसार ही लेनी चाहिए व कलपना करनी चहिए की रोग होने पर योजना पूर्वक अन्न संग्रह करके रखें ।
- औषधि – औषध चतुष्क
- औषध प्रयोग से दीर्घ जीवन का मार्ग आरंभ से प्राप्त होता है वीरे।
- औषध – औषध चतुष्क
- दीर्घ जीवन – दीर्घजीवनियाध्याय
- मार्ग – अपामार्ग तंडुलीयाध्याय
- आरंभ – आरग्वधीय
- वीरे – षड्विरेचनशताश्रितीय
- औषध प्रयोग से दीर्घ जीवन का मार्ग आरंभ से प्राप्त होता है वीरे।
- स्वस्थ – स्वास्थ्य चतुष्क
- मात्र शीत पदार्थ व वेग धारण न करने से इन्द्रियां स्वस्थ रहेगी।
- मात्र – मात्रशितीय
- शीतल – तस्यशितीय
- वेग धारण – न वेगधारणीय
- इन्द्रिय – इन्द्रियोपक्रमणीय
- स्वस्थ – स्वास्थ्य चतुष्क
- मात्र शीत पदार्थ व वेग धारण न करने से इन्द्रियां स्वस्थ रहेगी।
- निर्देश – निर्देश चतुष्क
- खुद की मति से अपनी तृष्णा की बात करो।
- खुद – खुड्डिकाचतुष्पाद
- मति – महाचतुष्पाद
- तृष्णा – तिस्त्रेषणीय
- वात – वातकलाकलीय
- खुद की मति से अपनी तृष्णा की बात करो।
- कलपना – कलपना चतुष्क
- स्नेह स्वेद कल्पना चिकित्सा प्रमुख है।
- स्नेह – स्नेह अध्याय
- स्वेद – स्वेद अध्याय
- कल्पना – उपकलपनिय व (कलपना चतुष्क)
- चिकित्सा प्रमुख – चिकित्साप्राभृतिय
- स्नेह स्वेद कल्पना चिकित्सा प्रमुख है।
- रोग – रोग चतुष्क
- किंतु शिर में उत्पन त्रिशोथ अष्ठ महारोग के कारण है।
- किंतु शिर – कियंत: शिरसीय
- त्रिशोथ – त्रिशोथिय
- अष्ठ – अष्टोदरीय
- महारोग – महारोग अध्याय
- किंतु शिर में उत्पन त्रिशोथ अष्ठ महारोग के कारण है।
- योजना – योजना चतुष्क
- योजना पूर्वक अष्ठ निंदित ब्राह्मण ने संतो का शोणित (रक्त) बहाया।
- योजना पूर्वक – योजना चतुष्क
- अष्ठनिंदित – अष्टोनिंदितीय
- ब्राह्मण – लंड्गणबृहंणीय
- संतो – संतर्पणीय
- शोणित – विधिशोणितय
- योजना पूर्वक अष्ठ निंदित ब्राह्मण ने संतो का शोणित (रक्त) बहाया।
- अन्न – अन्नपान चतुष्क
- सजन्न पुरूष आत्रेय की अन्नपान की विविधता को पहचानता है।
- सजन्न पुरूष – यज्ज: पुरूषिय
- आत्रेय – आत्रेयभद्रकापिय अध्याय
- अन्नपान – अन्नपानविधि
- विविधता – विविधशीतपितीय
- सजन्न पुरूष आत्रेय की अन्नपान की विविधता को पहचानता है।
- संग्रह – संग्रह अध्याय
- प्राणों की रक्षा हेतु दश महाविद्या का संग्रह करो।
- प्राणो – दशप्राणायतनीय
- दश महाविद्या – दशमहामूलीय
- संग्रह – संग्रह अध्याय
- प्राणों की रक्षा हेतु दश महाविद्या का संग्रह करो।
निदान स्थान नाम याद की ट्रिक :-
जब मादा में रक्तज गुल्म प्रचुर मात्रा में बड जाता हैं तब कुष्ठ शरीर को शोषित कर मादा को मार डालता है।
- जब – ज्वर
- रक्तज – रक्तपित्त
- गुल्म – गुल्म
- प्र – प्रमेह
- कुष्ठ – कुष्ठ
- शोषित – शोष
- मादा – उन्माद
- मार – अपस्मार
शरीर स्थान ट्रीक :-
शादी के लिए कती ( बढ़िया ), अतुल्य और खुद से भी महत ( बड़ा) पुरुष , शरीर से भी और जाती में भी दुंदा है पति देव ने।
- कती – कतिधापुरूषिय
- अतुल्य – अतुल्यगोत्रिय
- खुद – खुड्डिका गर्भावक्रांति
- महत – महती गर्भावक्रांति
- पुरुष – पुरूष विचय
- शरीर – शरीर विचय
- शरीर – शरीर संख्यां
- जाती – जातिसुत्रिय