धातु भेद :-
सार लोह – सुवर्ण, रौप्य
शुद्ध लोह – सुवर्ण , रौप्य,ताम्र,अयस्
साधारण लोह – तीक्ष्ण लोह,ताम्र
पुति लोह – नाग, वंग, यशद
मिश्र लोह – कांसय,पित्तल,वर्तधातु
धातुओं के सामान्य वर्ण
स्वर्ण – पीत
रौप्य – श्वेत
ताम्र – रक्त
लोह – कृष्ण
वंग – शुक्ल
नाग – कृष्ण
पित्तल – पीत
कांस्य – श्वेत
धातू भस्मो के रंग :-
सुवर्ण भस्म – पीत रक्त वर्ण
रौप्य भस्म – कृष्ण
ताम्र भस्म – कृष्ण
कांस्य भस्म – धूसर
नाग भस्म – कपोत
वंग भस्म – श्वेत
तीक्ष्ण लोह भस्म – पक्व जंबु फ्ल के समान
धातुओं का ग्रह से संबंध :
सूर्य – ताम्र
बुध – नाग
शनि – तीक्ष्ण लोह
चन्द्र – चांदी
गुरु – स्वर्ण
राहु – कांस्य
मंगल – पित्तल
शुक्र – वंग
केतु – कांत लोह
धातुओं के शत्रु / अरि लोह
सुवर्ण – नाग
वंग – हरताल
चांदी – स्वर्ण माक्षिक
नाग – मन: शिला
ताम्र – गंधक
लोह – हिंगुल
उपधातु :-
- माक्षिक
- तूत्थ
- अभ्रक
- नीलांजन
- मन: शिला
- हरताल
- रसक
धातुओं का सामान्य शोधन :-
धातु को पिघलाकर 7 बार कदलीपत्र स्वरस से निर्वाप करने से धातु शुद्धि।
धातुओं का सामान्य मारण :-
गंधक के सहयोग से निश्चित ही सभी धातुओं का मारण हाे जाता है। ( रसार्णव 7/15)
अन्य विधि
धातु चूर्ण + शुद्ध गंधक + शुद्ध मन: शिला + अर्क क्षीर + पुट देने से भस्म हो जाती है।
द्रव्य | पर्याय | प्रकार | कांचनार स्वरस में 3 बार पिग्लाकर | मारण | गुण | उपयोग | मात्रा |
सुवर्ण | अग्निवीर्य,कनक,कलधौत,कांचन,कल्याणक,हिरण्य,मांगल्यक,हाटक,अग्निवर्ण | 5 प्राकृत, सहज,वह्गिसम्भूत,खनिज, रसेन्द्रवेधसंजात | नींबू स्वरस से निर्वापित करना मृदु होने तक | रस भस्म + नींबू रस लेप करके 10 पुट | मधुर,कटु,कषाय,तिक्त रस,गुरु,मधुर विपाक,वीर्य शीत,वातपित्तशामक | क्षय,श्वास,कास,रज्यशमा,पांडु,उन्माद,विष,अपस्मार | ⅛-¼ रती |
रजत | शुभ्रक, रौप्य,तार, रुचिर,महाशिव,चन्द्रहास, चन्द्रलोक,रूपक, दुवणक | 3 सहज, खनिज,कृत्रिम | गोमूत्र से दौला यंत्र 1 प्रहर स्वेदन | शुद्ध स्वर्ण माक्षिक + नींबू रस लेप करके 30 पुट | कषाय,अम्ल रस,गुरु,सर,सनिग्घ,मधुर विपाक,शीत वीर्य,वातकफ़ शामक | यकृत,प्लीहा रोग,शुक्र क्षय,प्रमेह,गर्भाशय शोधक | ¼-1 रती |
ताम्र | अम्बक,अरविन्द,सूर्याग,उदुम्बर,रविप्रिय,लोहितायस | 2 रक्तवर्ण,कृष्णवर्ण | त्रिफला क्वाथ से 7 बार निर्वपन | कज्जली + जम्बीर रस लेपन करके 3 गज पुट | तिक्त,कटु,कषाय,लघु,मधुर गीपक,उष्ण वीर्य, कफपित्तनाशक | उदर रोग,यकृत प्लीहा वृद्धि,क्षय,प्रमेह,अर्श, ग्रहनी | ⅛-1 रती |
लोह | आयस्,मुण्ड, कालायस,क्षार लोह, शस्त्र लौह, कृतिलोह,शिलात्मज, दृष्टतसार, कृष्णायस | 3 मुण्डलोह (3 भेद),तीक्ष्णलोह(4 भेद),कांतलोह(5 भेद) | त्रिफला क्वाथ से 7 बार निर्वपन | तीनो प्रकार का अलग लोह के अंदर देखे | तिक्त,मधुर,कषाय,सर,रुक्ष,गुरु,कटु विपाक,शीत वीर्य,कफपित्तनाशक | पांडु,मेद रोग, कामला,कृमि,प्लीहा रोग,हृदय रोग | ¼-2 रती |
मण्डुर | किट्ट,लौह किट्ट,अयो रजः,लोहभव,लोहमल | 3 तीक्ष्ण,मुण्ड,कांत | चूर्णोदक में ढालन 7 बार पिठर यंत्र | त्रिफला क्वाथ + 30 साधारण पुट | कषाय,कटु विपाक,शीत वीर्य,पित्तशामक, रक्तवर्द्धक। | तीव्र पांडु, कमला,शोथ,प्लीहा | ¼-2 रती |
नाग | सीस, शीशक,सर्प,विष, आशी | 2 कुमार,समल | निर्गुंडी स्वरस + हरिद्रा 3 बार ढालन | ¼ पीपली त्वक + इमली तवक + शुद्ध मन: शिला + कांजी + जम्बिर रस + लघु पुट उसके बाद में शुद्ध मन:- शिला + जमबीर रस 60 लघु पुट | तिक्त,कटु,मधुर,लवन रस,क्षार,लघु,सर,सनिगध, उष्ण वीर्य,वात कफ शामक | प्रमेह,कमला,संधि वेदना,रक्त प्रदर,मेद रोग,उदर रोग | ¼-1 रती |
वंग | रंग,पुतिगंध, त्रपुष | 2 खुरक,मिश्रक | निर्गुंडी स्वरस + हरिद्रा 3 बार ढालन | पलाश मूल त्वक क्वाथ +हरताल लेप करके 3-3 लघु पुट | तिक्त,अम्ल,कटु,कषाय,लवन,लघु,तीक्ष्ण,सर,कटु विपाक,उष्ण वीर्य, कफ पित्त शामक | प्रमेह,कृमि,पांडु,जरा,विष,उदर रोग,मुत्रक्रीच | 1-2 रती |
यशद | यशद,जसद,नेत्र रोग आरि, रितिहेतू | – | कांस्यपत्र में गोमूत्र से 7 बार निर्वपन | बंग के समान करके अर्क क्षीर से 7 निरवापन | कषाय,तिक्त,कटु,कटु बिपक,शीत वीर्य,त्रिदोष शामक | प्रमेह,पांडु,श्वास,कास,गंडमाला, रज स्त्राव | ½-1 रती |
कांस्य | दीत्पक,दीत्पलोह,कंसय,कांस्यक | 2 पुष्प,तैलिक | अश्व मूत्र में 7 बार | गोमूत्र से 7 बार निरवापन | तिक्त,मधुर विपाक,उष्ण वीर्य,वात कफ शामक | कुष्ठ,कृमि | ½-1 रती |
वर्त लोह | पंचलोह,पंचरस,भर्त | – | निर्गुंडी स्वरस + हरिद्रा 5 बार प्रक्षिप्त | शोधित हरताल + गंधक लेपन करके 5 गजपुट | कटु, अम्ल विपाक,शीत वीर्य,कफ पित्त शामक | मलशोधक,कृमि | ½-1 रती |
पित्तल | पीतलोह,पिगंला,कपिला,पीतक,राजरीति | 2 रीतिका,काकतुण्डी | शुद्ध मन: शिला + गंधक + नींबू रस लेप 8 पुट | तिक्त,कटु विपाक,उष्ण वीर्य,कफ पित्त शामक | यकृत प्लीहा रोग,रक्तपित्त,पांडु | ½-1 रती |
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