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Dhatu Poshan Nyay ( धातु पोषण न्याय )

धातु पोषण न्याय (Dhatu Poshan Nyay) समझने से पहले देखते हैं कि ‘धातु‘ शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है:-

धारणात् धातवः

अर्थात जो शरीर को धारण करें,
और जो धातुओं के पोषण के निमित्त हैं या कारण हैैं, उन्हें जो दर्शाए, उसे कहते हैं धातु पौषण न्याय (Dhatu Poshan Nyay)

यह पचाने वाले भोजन (पचित अन्न रस) के माध्यम से शरीर में विभिन्न धातुओं के पोषण को संदर्भित करता है।

आयुर्वेद में तीन अलग-अलग सिद्धांत मौजूद हैं, जो पचे हुए भोजन (आहार रस) से धातु के पोषण की प्रक्रिया को समझाते हैं:

  • क्षीर दधि न्याय
  • केदारी कुल्य न्याय
  • खले कपोत न्याय

आइये पहले क्षीर दधि न्याय को समझते हैं :-

Dhatu Poshan Nayaye
दूध दही में परिवर्तित होता हुआ
  • इस न्याय के प्रवर्तक दृढबल हैं, यानी यह न्याय आचार्य दृढबल द्वारा दिया गया है।
  • क्षीर‘ का अर्थ है दूध और ‘दधी‘ का अर्थ है दही
  • जैसे दूध दही में बदलता है, वैसे ही आहार रस धातु के पोषण के क्रम में बदलता है
  • पहले आहार रस पूरी तरह से रस धातु में परिवर्तित हो जाता है,
  • इसके बाद रस धातु रक्त धातु में और इसी तरह का परिवर्तन होता रहता है।

यह विभिन्न धातुओं के पोषण के तरीकों में से एक है।
जैसे कि सूर्य की किरणों को पृथ्वी तक पहुँचने में कई साल लगते हैं और फिर भी किरणों के निरंतर निकलने से इसकी निरंतरता बनी रहती है।
उसी तरह धातुुुुुओं की भी उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहती है।

क्षीर दधि न्याय

बुद्धिमान कहते है की एक धातु पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा अगर यह पूरी तरह से दूसरे में बदल जाए। लेकिन अंतर्ग्रहण भोजन के निरंतर प्रवाह के कारण ऐसा नहीं होता है।

आइये अब केदारी कुल्य न्याय को देखते हैं :-

Dhatu Poshan Nayaye
खेत को सिंचित करते हुए विभिन नालियां
  • इस न्याय के प्रवर्तक आचार्य सुश्रुत हैं, यानी यह न्याय आचार्य सुश्रुत द्वारा दिया गया है।
  • केदारी‘ शब्द का अर्थ है भूमि के छोटे टुकड़े और ‘कुलिया‘ का अर्थ है नाली
  • कुलिया (नाली) और केदार (भूमि के छोटे टुकड़े) बनाने से खेत में फसलें सिंचित होती हैं।
  • केदार (भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े) क्रम से कुलिया (नालियों) द्वारा एक-एक करके सिंचित हो जाते हैं।
  • शरीर के अलग-अलग धातुओं को एक-एक करके इन नालियों के जरिए क्रम से पोषण मिलता है।
Dhatu Poshan Nayaye
केदारी कुल्य न्याय

पहली रस धातु को आहार रस से पोषण मिलता है। फिर रक्त धातु को आहार रस के शेष भाग से पोषण मिलता है और अंत तक यानि शुक्र धातु तक यही क्रम चलता रहता है।

धातु के पोषण के आयुर्वेदिक नियम इस प्रकार है:

  • परिवर्तन के दौरान पहले आहार रस रस वह स्त्रोतस तक पहुंचता है, रस धातु अग्नि आहार रस का प्रसंस्करण करती है।
  • इस प्रक्रिया के दौरान इसे इन भागों में विभाजित किया जाता है – स्थूल (मैक्रोस्कोपिक), सूक्ष्म (माइक्रोस्कोपिक और पुरुष एक्सट्रूज़न)। स्थूल भाग स्व धातु यानी रस को पोषण देता है। सूक्ष्म भाग अपने वंशज धातु यानि रक्त धातु, उपधातु और मल यानी कफ का पोषण करते हैं।
  • इस तरह से धातु, उपधातु और मल की निर्माण प्रक्रिया होती है।

अब आखरी खले कपोत न्याय को समझते हैं :-

  • इस न्याय के प्रवर्तक आचार्य भाव प्रकाश है, अर्थात यह न्याय आचार्य भाव प्रकाश ने दिया है।
  • खले‘ शब्द का अर्थ है खलियान या खेत और ‘कपोत‘ का अर्थ है खूंटी, पक्षी।
  • जैसा कि पक्षी (कबूतर) को अपने पोषण के लिए अनाज के लिए खलियान में आना पड़ता है और वह दाना चुगता है। कबूतर का घोसला खेत से जितना दूर होगा उसे पोषण के लिए उतना ही सफर तय करना होगा, और इसी क्रम से ही धातुओं का पोषण शरीर में होता है।
Dhatu Poshan Nayaye
खले कपोत न्याय

सबसे पहले रस धातु का पोषण होता है और अंत में सप्तम धातु शुक्र धातु का पोषण होता है।

एक काल धातु पोषण न्याय :-

  • यह न्याय अरुणदत्त जी द्वारा दिया गया है।
  • इस न्याय के अनुसार सभी धातुओं का पोषण एक ही समय में होता है।
  • इस न्याय को सबसे आधुनिक माना जाता है।

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