आचार्य हारित ने भूत विद्या आधाय के अंतर्गत 10 क्षुद्र ग्रहों ( Graha ) का वर्णन किया है जो कि शिशु को आक्रनंत करते है परन्तु इनके नाम व लक्षण बाल ग्रह से बिल्कुल अलग है, उसके साथ साथ में आचार्य ने बाल रोग अध्याय में बाल ग्रह जैसा और आचार्य ने वर्णन किया है उसी प्रकार भी किया है।
जिससे यह लगता है कि यह ग्रह बाल ग्रह से भिन है किन्तु शिशु को होते है और यह विषय भूत विद्या के अन्तर्गत है इस लिए प्राय: आचार्यों ने ज्यादा महत्व नहीं दिया या समय के प्रभाव से नष्ट हो गए है। जो भी हो परन्तु आपको यह पढ़कर बहुत अच्छा लगेगा ।
आक्रमण करने की जगह :-
देवता शून्य मंदिर, श्मशान भूमि, गली, प्रतोली, सुने बगीचे, घर या इसे स्थान पर जहा हृदय में ग्लानि हो।
संख्या :-
- कुछ आचार्य 10 व हारित ने भी 10 ही माने है।
- कुछ आचार्य 21
ग्रह ( Graha ):-
ग्रह | लक्षण | स्थान |
एंद्र | व्यक्ति प्रसन्न होता है, गाना गाता है, कभी घमंड में बोलता है, कभी उन्माद ग्रस्त हो जाता है | देव स्थान में |
आग्नेय | रोता है, लगातार देखता रहता है, हमेशा भयभीत रहता है | शमशान में, चोहरहे पर |
धर्म राज | व्यक्ति विह्वल, दीन, हीन, चेष्टा , प्रेत के समान होता है | युद्ध भूमि, शमशान में |
रकक्ष | दौड़ता व मारता है | वलमिक, चोहरहा, यज्ञ स्थान पर |
वरुण | नेत्रों में गौरव, जोर से देखता है, उदास मुख, मुख से थूक आना, अत्यधिक मूत्र आना, कम बोलना | नदी, तालाब आदि के किनारे |
वायु | वायु प्रकोप , बच्चो को लगता है, मुख सूखता है, कप्ता है, रोता है | |
कुबेर | विहवल, अशांत नेत्र, भूखा, हर्षित व घमंड में होता है | |
एशान | गर्व मए रहता है, अलंकार धारण करता है, वस्त्र हीन होकर घूमता है, गाना पसंद करता है | रम्य जगहों पर |
ग्रहक | भूख तृष्णा बिल्कुल ख़तम हो जाती है, कुछ सुनता नहीं है | जीव के बिना मंदिर |
पैशाचिक | बकवाद, नाचता, गाना, रोना, नग गुमना, भूख अधिक लगती है | अशुद्ध मुख के साथ घूमना |
चिकित्सा :-
- अत्यधिक स्नान, पूजा, बलि व मंत्र पाठ
- चन्द्र प्रभा वटी
- सुंठी, महुआ, चव, किंशुक, वाचा, हींग को भेड़ मूत्र के साथ प्रयोग
- ग्रह हन धूप
- भुवनेश्वर मंत्र को गूगल , मधु, घी की धूप बनाकर ताड़ना
भुवनेश्वर मंत्र :-
ॐ नमो भगवते भूतेश्वराय कलिकलिनखाय रौद्र दंष्ट्राकरालवत्क्राय त्रिनयनधगधगितपिशङ्गललाटनेत्राय तीव्रकोपानलामिततेजसे पाशशूल खट्वाङ्ग डमरु धनुर्बाण मुद्गराभय दण्ड त्रास समुद्राव्ययदसंयदार्द्- दण्डमण्डिताय कपिलजटाजूटार्द्धचन्द्रधारिणे भस्म रागरञ्जिताविग्रहाय उग्रफणिकालकूटाटोपमण्डितकण्ठदेशाय जय जय भूतनाथामरात्मने रूपं दर्शय दर्शय नृत्य नृत्य चल चल पाशेन बन्ध बन्ध हुङ्कारेण त्रासय त्रासय वज्रदण्डेन हन हन निशितखड्गेन छिन्न छिन्न शूलाग्रेण भिन्न भिन्न मुद्गरेण चूर्णय चूर्णय सर्वग्रहाणामावेशय वेशय स्वाहा॥
One reply on “Kshudra Graha ( क्षुद्र ग्रह ) – According to Harit samhita”
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