नाम:-
संस्कृत | कड्कुष्ठम् |
हिंदी | कंकुष्ठ |
english | Gambose tree (ruhbarb) |
latin | Garcinia morella |
पर्याय:-
तालकुष्ठ, रेचक, हेमवती, काककंकुष्ठ।
Habitat:-
Singapore, Malaysia, Indonesia.
Types:- 2 प्रकार:-
(1) नलिका कंकुष्ठ
(2) रेणुक कंकुष्ठ
(1) नलिका कंकुष्ठः– पीतवर्ण, चमकदार, स्निग्ध, भारी श्रेष्ठ होता है।
(2) रेणुक कंकुष्ठः– यह श्यामपीतवर्ण, लघु, नि:सत्व एवं अनुपयोगी होता है।
कंकुष्ठ शोधनः-
कंकुष्ठ में शुण्ठी के क्वाथ की तीन भावना देने पर शुद्ध हो जाता है।
★यह स्वयं स्वरूप होने से इसका सत्त्व पातन नहीं करना चाहिए।
कंकुष्ठ के गुण:-
●यह रस में तिक्त, कटु, वीर्य में उष्ण होता है।
● यह अति विरेचक होता है।
● यह आमवात नाशक एवं क्षणमात्र में विरेचन कराता है।
●कंकुष्ठ उदरकाठिन्य एवं जलोदर को नष्ट करता है।’ होता है।
●यह व्रण, उदावर्त, शूल, प्लीहा, गुल्म, अर्श आदि रोगों को नष्ट करता है।
कंकुष्ठ प्रयोगः-
विरेचनार्थ कंकुष्ठ को 1 यव की मात्रा में जीरक एवं शुंठी 1/2 माशा के साथ प्रयोग करने पर शीघ्र विरेचन कराकर आमजन्य रोगों को शान्त करता है।
कंकुष्ठ का ताम्बूल के साथ सेवन करे तो इतना विरेचन होता है कि रोगी के प्राण संकट में पड जाते है।
कंकुष्ठ विकार शमन उपाय-
इसके दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए बब्बूलमूल के क्वाथ में समान भाग जीरा व टंकण का प्रक्षेप डालकर सेवन करें।
प्रमुख योग-
(1) धन्वन्तरि घृत
(2) धन्वन्तरि रस
(3) मृत संजीवनी रस
(4) शोथोदरारि रस
(5) उदावर्तहर घृत
One reply on “Kankushth ( कंकुष्ठ ) Ruhbarb : Upras Varg”
[…] – कांक्षीआशीष – काशीशकुष्ठ – कंकुष्टगैरिक – गैरिकगंध – गंधकमन – मन: […]