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Kumar Bhritya

Boosting Immunity of Infants ( Lehan karm / लेहन कर्म )

जैसे कि आधुनिक चिकित्सा की वैक्सिनेशन का विधान है उसी प्रकार आयुर्वेद में लेहन कर्म (Lehan karm) के अन्तर्गत आता है। आधुनिक व आयुर्वेद में केवल सिद्धांत का अंतर है आधुनिक जीवाणु को मानते है इसलिए वैक्सिनेशन के लिए वो मृत या फिर कमजोर जीवाणु को शरीर में डाले जाते है और इससे शरीर में उसके खिलाफ प्रति रोधक क्षमता उत्पन होती है उसी प्रकार आयुर्वेद का सिद्धांत है दोष वैशमय ओर उससे ही रोग उत्पन होता है और विभिन्न रोग प्रतिरोध के लिए लेहन कर्म (Lehan karm) का विधान है।

Translation :- Just as there is concept of vaccination in modern, similarly in Ayurveda it comes under lehen karma. The only difference in too is based upon principle as modern believes in pathogens so they inject dead or weak pathogen are injected to the body and this generates immunity against them in the body. Similarly, the principle of Ayurveda is to dosh vashmaya . So protect child from these and to build imunity lehan karma is prescribed.

Benifits of Lehan Karm over standard vaccination :-

  • It’s non specific.
  • It improves overall immunity not againt just a single pathogen.
  • No side effects.
  • Protects against newly found pathogens.
Lehan karm

सुख(खं)दुःखं हि बालानां दृश्यते लेहनाश्रयम्’ । Meaning :- आचार्य कश्यप का कहना है कि बच्चे के सुख एवं दुख लेहन पर ही आश्रित है।

लेहन कर्म के योग्य :-

  • जिनकी मा का दूध न आता हो या कम आता हो अथवा दूषित हो।
  • टीक से प्रसव न हुआ हो।
  • गम्भीर रूप से रोग पीड़ित हो।
  • जिनमे वात एवं पित्त दोष की प्रधानता हो परंतु कफ दोष रहित हो।
  • स्तन पान करने के बाद भी शिशु तृप्त न होता हो।
  • शिशु रात को भी न सोता हो, अधिक भोजन करता हो, मल – मूत्र कम आता हो, दीप्त अग्नि वाले हो।
  • रोग रहित हो।
  • कृश हो, दुर्बल हो, मृदु हो।
  • 3-3 दिन तक जो मल त्याग न करे।

लेहन कर्म के अयोग्य :-

  • मंद अग्नि वाले, बहुत मल मूत्र त्याग करने वाले।
  • दृढ़ शरीर वाले, मा व्याधि से पीड़ित हो।
  • अजीर्ण रोगी, गुरु स्तन सेवन करने वाले।
  • सब रस आहार का सेवन करने वाली स्त्री के पुत्र को।
  • उधर्व जत्रुगत रोग से पीड़ित, आम रोग, ज्वर, अतिसार, आम अतिसार, ज्वर अतिसार, काम्ला, शोथ, पांडु, हृदय रोग, श्वास, कास, गुद रोग, उदर रोग, आनह, वमन, गंड, अरुचि, ग्रह रोग, अल्सक।
  • भोजन के बाद, जहा तेज वायु चलती हो।
  • आसत्मय होने पर।
Lehan karm

लेहन की मात्रा :-

बुद्धिमान वैद्य उत्पन हुए बालक को वाय विडंग के बराबर औषधि मधु और घी असमान मात्रा में साथ देवे। जैसे जैसे शिशु बड़ा हो उसके अनुसार प्रति मास औषधि की मात्रा बड़ाहये परंतु आमले के फल से ज्यादा मात्रा में न दे। Modern formula is known as Young’s formula i e. Doss = age/ age + 12 of the adult dose.

लेहन कर्म की विधि :-

पूर्व दिशा की ओर मुख करके धोए हुए पत्थर पर थोड़े से पानी के साथ घिसकर चताए।

विशेष स्वर्णप्राशन लेहन संस्कार :-

बालक के उत्पन्न होते ही जात कर्म संस्कार में भी स्वर्ण प्रशन करना चाहिए व यह बालक के जन्म के बाद 3-4 दिन तक देने का विधान मिलता है। इस संस्कार में पानी में स्वर्ण को खूब घिसकर मधु व घृत अलग अलग मात्रा में दे। यह बुद्धि, अग्नि, बल, आयु कारक है, कल्याण कारक, पुण्य कारक, बृष्य, वर्णय, मेधा युक्त होता है, व व्याधियों से आक्रांत नहीं होता, 6 महीने में ही सुनने वाला हो जाता है, उसकी समरण शक्ति भी बड़ जाती है।

विभिन्न लेह व प्रयोग :-

  1. दूध पीने वाले बालक को सिद्धार्थक, वचा, जटामांसी, अपामार्ग, शातावरी, सरिवा, ब्राह्मी, पीपली, हरिद्रा, कुष्ठ, सेंध्व को सिद्ध किए घृत में पिलाए।
  2. दूध व थोड़ा अन्न खाने वाले बालक को मधुक, बचा, पीपली, चित्रक, त्रिफला से सिद्ध ।
  3. आत्राद में दोनों पंच मूल, दूध, तगर, भद्र दारू, मरीचि, मधूक, विडंग, द्राक्षा, दोनों प्रकार की ब्राह्मी।
  4. कल्याणक घृत
  5. पञ्चगव्य घृत
  6. ब्राह्मी घृत
  7. संवर्धन घृत
  8. सारस्वत घृत
  9. अष्टांग घृत
  10. वाचा आदि घृत
  11. स्वर्ण, श्वेत वच, कुठ + मधु व घृत असमान मात्रा
  12. स्वर्ण व अर्क पुष्पी + मधु व घृत असमान मात्रा
  13. शंखपुष्पी, स्वर्ण, मत्सायक्षक + मधु व घृत असमान मात्रा
  14. स्वर्ण, नींब, बच + मधु व घृत असमान मात्रा

विभिन्न ऋतु के अनुसार लेह :-

ऋतुलेह
शीत काल, वसंत आरागवध आदि गण के क्वाथ में वत्सकादी गण की ओषधि का कल्क मिलाकर घृत सिद्ध करे।
गर्मीप्रत: काल जीवनीय आदि गण से सिद्ध शीतल दूध पिलाएं, प्रचुर मात्रा में चीनी व घृत में सतु दे।
शरद ऋतुपुंडरीक, मधुुक, मंदुक पर्णी, मशपर्णी, धमसा, चिरोंजी, काकोली, विदारी, कट फल, अमृता, द्राक्षा, अज श्रृंगी, दुधिका, क्षीर शुक्ला, अश्व गंधा, श्रृंगी, मधुक़, कुसुम, मेदा, ॠषभक, जीवक इनसे सिद्ध घृत ।

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