Categories
Ras Shastra

Mandoor ( मण्डूर ) – Iron Oxide : Dhatu Vargha

नाम:-

संस्कृतमण्डूर
हिंदीमण्डूर, लौहोच्छिष्ट

पर्याय:-

  • किट्ट
  • लौहभव
  • लौहमल
  • मण्डूर
Mandoor

मण्डूर परिचय:-

★जब लम्बे समय तक लौह खुले वातावरण में जल, धूप, और हवा के सम्पर्क से जंग युक्त हो जाता है तो ऐसे लौह को गर्मकर पीटकर जंग खाया हुआ भाग पृथक् कर लेते हैं। इसे लौह किट्ट कहते हैं।

भेद एवं लक्षण:-

TypesQualities
1.मुण्ड किट्टरक्तवर्ण, भारी, स्निग्ध।
2.तीक्ष्ण किट्टतोड़ने पर अंजन सदृश, भारी , व्रण रहित।
3.कान्त किट्टरुक्ष, पिंगल वर्ण, कुछ लम्बा , तोड़ने पर रजत की चमक वाला।

समयानुसार मण्डूर की महत्ता :-

  1. 100 वर्ष पुराना मण्डूर- सर्वश्रेष्ठ
  2. 70-80 वर्ष पुराना मण्डूर- मध्यम
  3. 60 वर्ष पुराना मण्डूर – अधम

ग्राह्य मण्डूरः-

  • जो मण्डूर स्निग्ध, भारी, कठिन,
  • कृष्णवर्ण, कोटर रहित तथा
  • बहुत पुराने उजडे हुए शहरों के पास स्थित हो, वह ग्राह्य होता है।

शोधन:-

  1. मण्डूर (Mandoor) को प्राप्त करके गोमूत्र में सात बार बुझाने पर शुद्ध हो जाता यहाँ पर गोमूत्र को बहेडे से निर्मित पात्र में रखकर, मण्डूर को बहेडे के कोयलों की आँच में ही गर्म करने का विधान है। गोमूत्र प्रत्येक बार बदलना चाहिये।

मण्डूर मारण:-

गोमूत्र में निर्मित त्रिफला क्वाथ द्वारा शोधित मण्डूर (Mandoor) को घृतकुमारी स्वरस से भावित करके सात गजपुट की अग्नि में पाक करने पर मण्डूर की उत्तम भस्म बन जाती है।

मण्डूर भस्म के गुण कर्म:-

  • यह वृष्य, शीत, रुचिकारक, दीपक, पित्तशामक एवं रक्त की वृद्धि करने वाली होती है।
  • मण्डूर (Mandoor) तीव्र पाण्डु, कामला, अङ्गमर्द, शोथ, शोष, हलीमक तथा प्लीहा रोग को शीघ्र नष्ट करती है।
  • यह बालकों के लिए अधिक अनुकूल होती है।

मण्डूर की मात्रा:-

1/4 से 2 रत्ती तक।

अनुपान:-

मधु

मण्डूर के प्रमुख योग:-

  1. शतावरी मण्डूर
  2. मण्डूर वटक
  3. त्रिफला मण्डूर
  4. पुनर्नवा मण्डूर
  5. गण्डमाला कण्डन रस

Leave a Reply