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Mutraghat Nidan ( मुत्रघात निदान ) : उत्पत्ति,भेद

उत्पत्ति :-

मूत्र के वेग को रोकने से प्रकूपित हुए वात आदि दोष वात कुंडलिका आदि 13 प्रकार के मुत्रघात (Mutraghat) उत्पन्न करते है। इस रोग में मूत्र मार्ग में रुकावट होने के कारण मूत्र नहीं निकल पाता परन्तु मूत्र निर्माण की क्रिया चलती रहती है और मूत्राशय भरकर फूल जाता है। According to modern, it is known as Retention of Urine. Following reasons causes retention of urine :-

  • मल तथा शुक्र के वेग को रोकने से
  • मूत्र के वेग को रोकने से
  • रूक्ष आहार विहार के सेवन से
Mutraghat

भेद :-

चरकसुश्रुतअष्टांगभाव प्रकाशमाघवकर
वात वस्तिवात वस्तिवात वस्तिवात वस्तिवात वस्ति
अष्ठीलाअष्ठीलाअष्ठीलाअष्ठीलाअष्ठीला
कुण्डलिकाकुण्डलिकाकुण्डलिकाकुण्डलिकाकुण्डलिका
मूत्रातीतमूत्रातीतमूत्रातीतमूत्रातीतमूत्रातीत
मूत्रजठरमूत्रजठरमूत्रजठरमूत्रजठरमूत्रजठर
मूत्रोत्संगमूत्रोत्संगमूत्रोत्संगमूत्रोत्संगमूत्रोत्संग
मूत्रग्रंथिमूत्रग्रंथिमूत्रग्रंथिमूत्रग्रंथिमूत्रग्रंथि
मूत्रकृच्छ्रमूत्रकृच्छ्रमूत्रकृच्छ्रमूत्रकृच्छ्र
विड्विघातविड्विघातविड्विघातविड्विघातविड्विघात
उष्णवातउष्णवातउष्णवातउष्णवातउष्णवात
मूत्रक्षयमूत्रक्षयमूत्रक्षयमूत्रक्षयमूत्र क्षय
मूत्रावसादमूत्रावसादमूत्रावसादमूत्रावसादमूत्रावसाद
वस्तिकुण्डलवस्तिकुण्डलवस्तिकुण्डल
मूत्र शुक्र

मुत्रकृच्छ्र व मुत्रघात में भेद :-

मुत्रकृच्छ्रमुत्रघात
मूत्र बड़ी कठिनाई से निकलता हैमूत्र निकलने में रुकावट
मूत्र बनता रहता है और निकलने में कठिनाई होती हैप्रवृति हमेशा नहीं होती
रुकावट कमरुकावट ज्यादा
कष्ट अधिककष्ट कम

भेदों का वर्णन :-

रोगकारणलक्षणसाध्यता
वात कुण्डलिकारूक्षता व मूत्र के वेग को रोकने के कारण वात दोष बस्ति में मूत्र के साथ मिलकर कुण्डलाकार होकर घूमता हैमूत्र थोड़ा थोड़ा पीड़ा के साथ निकलता हैसाध्य
वात अष्ठीलाकुपित हुए वात दोष गुद व वस्ति प्रदेश को रोक कर आधमन उत्पन्न कर, पत्थर के समान ग्रन्थि उत्पन्न कर देता हैमल व मूत्र दोनों मार्गो को रोक देता हैसाध्य
वात वस्तिमूत्र के वेग को रोकने के कारण तो मूत्राशय के मुख को वात दोष रोक देता हैवस्ति व उदर में पीड़ा होती हैकष्ट साध्य
वात मूत्रातीतबहुत समय तक मूत्र के वेग को रोकने के बाद जब मूत्र त्याग करता है तो वह वेग के साथ नहीं निकलतामूत्र धीरे धीरे निकलता है
वात मूत्र जठरमूत्र के वेग के रुक जाने के कारण, कुपित होकर आपन वायु पेट को अत्यधिक फुला देता हैनाभि के नीचे अत्यन्त पीड़ा, वस्ती मुख में रुकावट
वात मूत्रोत्संगमूत्रमार्ग अथवा लिंग में आए मूत्र को रोकने के कारण, फिर जोर लगाने पर मूत्र के साथ रक्त आता हैरक्त के साथ पीड़ा रहित धीरे धीरे मूत्र का आना
मूत्र क्षयरुक्ष व थके हुए पुरुष की बस्ति में स्थित पित्त व वात दोष मूत्र का क्षय कर देते है
मूत्र ग्रन्थिवस्ति मुख के भीतर गोलाकार गांठ हो जानाअश्मरी के सामन पीड़ा
मूत्र शुक्र रोगमूत्र वेग को रोक कर जब मानव मैथुन कर्म करेमूत्र के पीछे शुक्र का आना, मूत्र का सफेद रंग का होना
उष्ण वातअधिक व्यायाम करने से, अधिक चलने से, धूप लेने से वात व पित्त दोष लिंग व गुद में दाह करते हैमूत्र हल्दी के रंग का, मूत्र में रक्त आना, लिंग व गुद में दाह
मूत्र सादपित्त व कफ दोष वात के साथ मिलकरपीला, सफेद गदा व जलन के साथ मूत्र त्याग, सुख जाने पर पीला पदार्थ का मिलना
विड विघातरूखे व दुर्बल मनुष्य की मल धातु वात दोष के कारण मूत्र में चले जानामल युक्त मूत्र, अत्यन्त पीड़ा
वात वस्ति कुण्डलजल्दी जल्दी चलने से, कूदने से, चोट लगने से बस्ती अपने स्थान से हठ कर गर्भ के समान भारी होकर, शूल, स्पर्दन, दाह होती हैविष के सामन हानिकारक, मूत्र की धारा निकलती है, ऐठन के समान पीड़ाकफ दोष के कारण मुख रुके या पित्त दोष अत्यधिक बढ़ जाए तो आसाध्य, मूत्र मार्ग पूर्णता रुका न हो या मुडा न हो तो साध्य

कुंडली भूत वस्ति के लक्षण :-

  • तृष्णा
  • मोह
  • श्वास की वृद्धि
  • कफ से मुख बंद होना

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