According to Allopathy Mutrakricha is known as Dysuria and is defined as a Symptom of pain, discomfort, or burning when urinating. Today we will cover Ayurvedic aspect regarding Dysuria (Mutrakricha Nidana).
निदान :-
- अधिक व्यायाम करना
- तीक्ष्ण औषधि का सेवन
- अधिक मद्यपान करना
- रुक्ष आहार का सेवन
- आनुप देश प्राणियों का मांस खाना
- अध्यशन
- अजीर्ण
लक्षण :-
वात आदि दोष अलग अलग या फिर एक साथ में निदान के सेवन से प्रकुपित होकर वस्ति प्रदेश में जाकर मूत्र मार्ग को पीड़ित करते है, तो मूत्र बड़े कष्ट व पीड़ा के साथ निकलता है।
मूत्रकृच्छ्र व मूत्राघात में भेद :-
मूत्रकृच्छ्र | मूत्राघात |
मूत्र बड़ी कठिनाई से निकलता है | मूत्र निकलने में रुकावट |
मूत्र बनता रहता है और निकलने में कठिनाई होती है | प्रवृति हमेशा नहीं होती |
रुकावट कम | रुकावट ज्यादा |
कष्ट अधिक | कष्ट कम |
भेद :-
आचार्यों ने मूत्रकृच्छ्र निदान (Mutrakricha Nidana) में 8 भेदों का वर्णन किया है, जो कि इस प्रकार है :-
भेद | लक्षण |
वातज | इसमें वंक्षण, वस्ति व लिंग में असहनीय पीड़ा, थोड़ी थोड़ी देर में मूत्र त्याग |
पित्तज | पीला एवं रक्त वर्ण का मूत्र, पीड़ा व जलन के साथ बार बार मूत्र त्याग |
कफज़ | वस्ति व मूत्र प्रदेश में भारीपन, शोथ व चिकना मूत्र त्याग |
सन्निपात | मिश्रित लक्षण युक्त, कष्ट साध्य से आसाध्य |
पुरीष विघातज | मल के वेग को रोकने से वात दोष कुपित होकर आध्मान, शूल व मूत्र अवरोध होता है |
शल्य अभिघातज | मुत्रवाही स्त्रोतस में शल्य के चुभ जाने के कारण, बाकी लक्षण वात के समान |
अश्मरीज | अश्मरी उत्पन्न होने के कारण |
शुक्रज | वात आदि दोषों द्वारा शुक्र से मूत्र मार्ग में रुक जाना, शुक्र के साथ मूत्र त्याग |
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4 replies on “Mutrakricha Nidana ( मूत्रकृच्छ्र निदान ) : भेद, लक्षण”
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