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Nakshatra and Rog ( विभिन्न रोगों के नक्षत्र )

आयुर्वेद का ज्योतिष शास्त्र के साथ एक गहरा सम्बन्ध है, आचार्यों ने सर्व प्रथम रोगी की आयु जानने के लिए कहा है और विभिन्न आचार्यों ने आयुर्वेद के सामान ही ज्योतिष शास्त्र को फल प्रद कहा है। आज इसी के संभंद में हम आचार्य हारीत की हारीत संहिता में वर्णित रोग व विभिन्न नक्षत्र के सम्बन्ध में वर्णित अध्याय कहते है। यह भी हारीत संहिता की अपनी ही अलग विशेषता है और किसी संहिता ( आत्रेय संप्रदाय ) में देखने को नहीं मिलता प्राय इसका वर्णन रावण ने अपनी संहिता में किया है।

यम संकट :-

  • रविवार युक्त माघ नक्षत्र
  • सोमवार युक्त विशाखा नक्षत्र
  • मंगलवार युक्त आर्द्रा नक्षत्र
  • बुधवार युक्त मूल नक्षत्र
  • वीरवार युक्त कृतिका नक्षत्र
  • शुक्रवार युक्त हस्त नक्षत्र

इन योगों में बीमार हुए व्यक्ति बहुत पुण्य के कारण ही बच सकता है अन्यथा नहीं। उसे सुख की प्राप्ति कभी भी संभव नहीं।

मृत्यु योग :-

  • रविवार युक्त अनुराधा नक्षत्र
  • चंद्रवार युक्त उत्तरा नक्षत्र
  • मंगलवार युक्त मघा नक्षत्र
  • चंद्रवार युक्त अश्विनी नक्षत्र
  • वीरवार युक्त मृगशिरा नक्षत्र
  • शुक्रवार युक्त अश्लेषा नक्षत्र
  • शनिवार युक्त हस्त नक्षत्र

इन नक्षत्र में अगर रोग हो तो वह अशुभ होता है वह मृत्युकारक होता है।

अमृत योग :-

  • रविवार युक्त हस्त
  • सोमवार युक्त मृगसिरा
  • मंगलवार युक्त अश्विनी
  • बुधवार युक्त अनुराधा
  • वीरवार युक्त पुष्य
  • शुक्रवार युक्त रेवती
  • शनिवार युक्त रोहिणी

इन योगों में उत्पन रोग सुख साध्य होता है व रोग होने से सुख होता है।

सुख साध्य रोग योग :-

  • सिद्धि
  • शुक्ल
  • शुभ
  • प्रीति
  • आयुष्मान
  • सौभाग्य
  • धृति
  • वृद्धि
  • ध्रुव
  • हर्ष

क्रूर योग :-

  • शूल
  • वज्र
  • अतिगंड
  • व्यधात
  • व्यतिपात

इनके साथ ने जब क्रूर देवताओं वाले अश्लेषा, मघा आदि नक्षत्र मिल जाए तो वह क्रूर योग कहते है। अगर इनके साथ ने जब क्रूर दिन आजाता है तो मृत्यु निश्चित होती है। अगर ज्वर उत्पन होजाये तो आसाध्य होता है।

रोग उत्पन्न में प्रशस्त नहीं है :-

  • मघा
  • विशाखा
  • भरण
  • आर्द्रा
  • मूल
  • कृतिका
  • हस्त
  • पुष्य

आसाध्य नक्षत्र :-

विशेष ज्वर लिए व अन्य रोगों के लिए भी :-

  • अश्विनी
  • रोहिणी
  • पुष्य
  • मृगसिरा
  • ज्येष्ठा
  • पुनर्वसु

कष्ट साध्य रोग योग :-

  • तीनों पूर्वा
  • स्वाती
  • चित्रा
  • आर्द्रा
  • पुनर्वसु
  • पुष्य
  • श्रवण
  • धनिष्ठा
  • मूल
  • विशाखा
  • कृतिका
  • आश्लेषा
  • अनुराधा
  • जेष्ठा

नक्षत्र में रोग मर्यादा :-

नक्षत्रमर्यादा
अश्विनी1 रात्रि, 6 रात्रि
भरनीमृत्यु
कृतिका, आश्लेषा9 रात्रि
रोहिणी3 दिन
मृगसिराबहुत पीड़ा होती है
आर्द्रामृत्यु
पुर्णवसु, पुष्य7 रात्रि
पूर्व फाल्गुनी3 माह
उत्तर फाल्गुनी15 दिन
तीनों पूर्वा3 भाग शुभ 1 भाग अशुभ ( अशुभ में मृत्यु )
मघा, यमलायमृत्यु कारक
हस्तशीघ्र आराम हो जाता है
चित्रा, अनुराधा, पूर्वा आशद, उत्तरा भद्रपद15 दिन
रेवती16 दिन
विशाखा, उत्तरायण, शतभिषा20 दिन
ज्येष्ठा, रेवती10 दिन
श्रावण, घनिष्ठा2 माह
पूर्व भद्रपद9 रात्रि

विभिन्न भागों में रोग मर्यादा जानने के लिए यहां दबाए।

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