स्वरूप :-
- बकरे के समान मुख वाला,
- नेत्र व भौंहें चलायमान
- मर्जी अनुसार रूप धारण करने वाला
- महा यशस्वी
पर्याय :-
मेष
उत्पति :-
इस ग्रह की उत्पति पार्वती माता द्वारा कि गई थी।
लक्षण :-
- मुख से फेन आना
- मध्य भाग मुड़ा हुआ सा होना
- ऊपर देखकर बेचैन होकर रॊधन करना
- हमेशा ज्वर रहना
- शरीर में हमेशा वासा की गंध आती है
- बकरे के समान गंध आना
- शरीर से दुर्गन्ध आना
- कभी कभी बेहोश होता है
- आध्मान
- स्वर की दीनता
- विवर्णता
- चित्कार करना
- वमन फेन युक्त
- कास
- हिक्का
- अनिद्रा
- जड़ता
- एक नेत्र में शोथ
- कंठ व मुख का सूखना
अष्टांग संग्रह में यह भी कहा गया है जो बच्चा दांतो के साथ उत्पन्न हो या जिस बालक के ऊपर के दांत पहले उत्पन्न हो इन अशुभ संकेतो की शांति के लिए वैद्य को मेष ग्रह की चिकित्सा करनी चाहिए।
चिकित्सा :-
- बेल, अरणी, पूति करंज से परिसेचन
- वच, आमला या गुडुची, जटामांसी, सफेद बच को धारण करना चाहिए
- प्रियंग्वादि तैल का अभ्यंग
- तिल, चावल, फूलों की माला, भोजन, पकड़ी के पेड़ की जड़ के पास बलि देनी चाहिए।
- किसी दूध वाले पेड़ के नीचे बच्चे को स्नान करवाना चाहिए और निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए :-
- अजानानश्चलाक्षिभूः कामरूपी महायशाः । बालपालयिता देवो नैगमेयोऽभिरक्षतु ॥
Can be correlated with meningitis in allopathy