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Shalay Tantra Sushrut Samhita

Pranasht Shalya / प्रनष्ट शल्य : According to Acharya Sushruta

जो बाहरी वस्तु शरीर के धातु में प्रवेश कर कहीं खो जाए या दिखाई ना दे, उसे ढूंढने के उपाय को प्रनष्ट शल्य (Pranasht Shalya) कहते हैं।

शल्य क्या है ?

“सर्व शरीर बांधकरं शल्यं।” (सु. सू. 26/5)

  • अर्थात् सारे शरीर में जो पीड़ा पहुंचाए, उसे शल्य कहते हैं।
  • जैसे- यदि भोजन भी जरूरत से ज्यादा या विष मिला हुआ लिया जाता है तो शरीर में बाधा करता है वो शल्य कहलाता है। or
  • वृक्क में अशमरी / गृभाशय में मृत्त गर्भ भी शल्य ही माना जाता है।

शल्य के भेद:-

  1. शारीरिक शल्य
  2. आगन्तुक शल्य
  • शारीरिक शल्य- दांत, लोम, नाखून, श्मश्रु (दाढ़ी), आदि। शरीर की धातु (मांस आदि) , अन्न, मल तथा दूषित वातादि दोष।
  • आगन्तुक शल्य – हमारे आसपास कोई भी पदार्थ जो हमें दुःख दे, वह आगन्तुक शल्य है।

शल्य स्वरूप –

  • जिन भी पदार्थ से शल्य बना हो सकता है वह नीचे दिए गए हैं –
  • लोहा
  • वेणु (बांस)
  • वृक्ष (पेड़)
  • तृण (तिनका)
  • श्रृंङ्ग
  • अस्थि आदि से बने हुए मिल सकते हैं।

लड़ाई में/ हिंसा करने हेतु ज्यादातर लोहे के शल्य का प्रयोग होता है। शल्य शास्त्र का प्रयोजन इन शल्यों को निकालने के लिए ही हुआ था।

पहले के समय में युद्ध करने के लिए बाण विशेष प्रयोग किए जाते थे। इसलिए यहां बाण के प्रकार बता रहे हैं –

बाण २ प्रकार के होते हैं-

  1. कर्णयुक्त (कर्णी)
  2. कर्ण रहित (श्लक्ष्ण)

दोनों प्रकार के बाण वृक्ष, पत्र, पुष्प, फलों के आकार के समान और हिंसक सर्प, मृग (हिरण) , पक्षियों के मुख के जैसी आकृति (Shape) वाले होते हैं।

शल्य की गति :-

5 प्रकार से

  1. उर्ध्व – नीचे से आया हुआ शल्य
  2. अधो – ऊपर से नीचे आया हुआ
  3. अर्वाचीन – पीछे की तरफ से आया हुआ
  4. तिर्यक – पार्श्व से आया हुआ
  5. ऋजु – सामने से आया हुआ

प्रनष्ट शल्य (Pranasht Shalya) के त्वचा, मांस, धमनी, अस्थि आदि से बाधा होने के कारण उसके वेग कम होने से धातुओं के बीच में ही अटक जाता है।

शल्य युक्त व्रण लक्षण:-

सामान्य लक्षण :-

  • शोफ युक्त व्रण
  • श्याव पीड़िका युक्त, वेदना वाला
  • बार-बार रक्त निकलना और कोमल मांस हो।

विशेष लक्षण :-

प्रनष्ट शल्य (Pranasht Shalya) जिन स्थानों में अटकता है उनके लक्षण :-

स्थान लक्षण
त्वचागतकठिन शोफ, विवर्ण, आयत
मांसगतशोफ का अधिक बढ़ना, शल्यमार्गानुपसंरोह (जहां से शल्य अंदर गया उस घाव का न भरना), पीडन असहिष्णुता (tenderness), चोष (दाह), पाक
मांसपेशी गतमांसगतशल्य के जैसे लक्षण मिलते हैं पर दाह और पाक नहीं होता।
सिरागतसिरा में रक्त का रुक जाना और फूलना (सिराध्मान), सिराशूल, सिराशोफ (phlebitis)
स्नायु गतस्नायुजाल उत्क्षेपण, तीव्र शोथ, अधिक पीड़ा
स्रोतों गतस्वकर्म गुण हानि
धमनी गतवायु आवाज करती हुई झागदार रक्त को बाहर निकालती है, पिपासा (प्यास), हृल्लास ( जी घबराना)
अस्थि गतविविध वेदना प्रादुर्भाव, शोफ
अस्थि विवर गतअस्थिपूर्णता, तोद (सुई चुनने जैसी पीड़ा), बेचैनी
सन्धिगत अस्थिगत शल्य के जैसे लक्षण मिलते हैं, संधि अपना कार्य नहीं कर पाती (चेष्ठा नाश)
कोष्ठगतआटोप ,आनाह, व्रण मुख से मूत्र-पुरीष-आहार का निकलना
मर्म गत मर्मविद्ध लक्षण

Diagnose of the foreign body / प्रविष्ट शल्य का पता कैसे लगाएं –

जब बाहर से प्रनष्ट शल्य (Pranasht Shalya) का कुछ पता नहीं चलता, कि त्वचादि में शल्य है या नहीं उसका निदान इस तरह से करें –

1. त्वचा में छिपा शल्य –

  • सबसे पहले उस स्थान पर तेल लगाना फिर स्वेदन करें।
  • इसके बाद मिट्टी, उड़द, जौ, गेहूं और गाय के गोबर में से किसी भी एक से उस स्थान पर रगड़ना चाहिए।
  • अगर शोथ या पीड़ा हो तो शल्य है ऐसा समझना।
  • जमा हुए घी, मिट्टी और चंदन का लेप पीड़ित स्थान पर किया जाए तो उसकी गर्मी से घी पिघलेगा या फिर चंदन का लेप सूख जाएगा, वहां शल्य है ऐसा समझना चाहिए।

2. मांस, कोष्ठ, अस्थिविवर, संधिविवर और पेशीविवर, मर्म में छिपा शल्य-

  • उस स्थान पर स्नेहन, स्वेदन और ऐसी क्रिया करे जो रोगी को कोई हानि ना पहुंचाए।
  • हिलने के बाद जिस जगह शोथ, पीड़ा और लालिमा उभरे, उसी स्थान पर शल्य होता है।

3. सिरा, धमनी, स्रोतस, स्नायु में छिपा शल्य –

टूट हुई पहिए वाली गाड़ी में रोगी को बिठाना और उसके टूटे हुए सड़क पर चलने से जिस भी स्थान पर शोथ और पीड़ा हो, उसी स्थान में शल्य होता है।

4. अस्थि में छिपा शल्य –

  • पहले उस स्थान का स्नेहन, स्वेदन कर।
  • फिर उस स्थान पर एक कपड़ा बांध कर जोर से दबाना चाहिए।
  • यदि वहां शोथ और पीड़ा हो तो शल्य है ऐसा समझना चाहिए।

5. संधि में छिपा शल्य –

  • सबसे पहले संधियों पर स्नेहन, स्वेदन कर कोमलता उत्पन्न कर के।
  • संधियों को प्रसारण, आकुंचन, बांधने, दबाने से अगर उस स्थान पर शोथ और पीड़ा हो, तो शल्य है ऐसा समझें।

शरीर के जिस भी हिस्से में सुई चुभने जैसी पीड़ा , सूनापन , भारी पन लगे या रगड़ने से कुछ स्राव निकले या अधिक पीड़ा हो, रोगी इस स्थान की बार बार दबाए तो उस स्थान पर शल्य है ऐसा समझे।

शल्य रहित स्थान का लक्षण –

  • जो स्थान में शोथ रहित, पीड़ा रहित, उपद्रव रहित, ऊंचा उठा हुआ न हो, किनारे मुलायम हो,
  • जिस व्रण को एषणी (probe) से अच्छी तरह से देख कर, उस अंग का प्रसारण, आकुंचन कर के देख लिया हो, तो वह स्थान शल्य रहित जाने।

नोट

  • बांस, तिनका, वृक्ष के शल्य को अगर न निकाला — रक्त और मांस का पाक
  • सोने, चांदी, लोहे, तांबा, पीतल, रांगा, सीसा का शल्य — पित्त के तेज से गलकर विलीन हो जाता है।
  • सींग, दांत, केश, अस्थि, बांस, लकड़ी, पत्थर , मिट्टी के शल्य — कभी नष्ट नहीं होते।

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