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Kumar Bhritya

Ayurvedic Room Disinfectant – Raksha karm ( रक्षा कर्म )

Raksha karm/ रक्षा कर्म= आयुर्वेद में जात कर्म संस्कार के बाद में रक्षा विधान का वर्णन है। इसका उपयोग बालको की भूत, राक्षस आदि से रक्षा से होता था, आज आधुनिक भूत को Pathogen (Bacteria, virus etc.) मानते है, तो आज भी हम इसका (Raksha karm) उपयोग अपने घर को इनसे मुक्त व सुरक्षा कर सकते है।

Raksha karm
कहाक्या
घर के चारो तरफकड़वी तुरई, खदिर, बैर, पीलू, परुषक की शाखा लटका दे
सूतिका ग्रह के चारो तरफपीली सर्षप, अतीस, तण्डुल के दाने बिखेर दे
द्वार पर चोखठ परतिरछा मूसल रख दे
सूतिका ग्रह के दरवाजे परबचा, कुष्ठ, क्षौमवस्त्र, हिंगु, सर्षप, अतीस, लशुन का दाना एवम् चावल के कण। इसके साथ साथ में गुग्लादी औषधियों की पोटली बनाकर सूतिका ग्रह में रखे
पुत्र व प्रसूता स्त्रियों के हाथ में व कंठ पर, अन्य उपयोग की वस्तुओ परगुगलादी भूत नाशक योग
सूतिका ग्रह के अंदरकणककण्टक की अग्नि व तिंदुक की अग्नि
ग्रह धूपन रक्षोह्न धूप
हाथ पर रक्षो हन द्रव्य बांदेअगर, तिल, अतिसी, सर्षप
बाकी सब जगहबच

‘अथास्य रक्षां विदध्यात्-आदानीखदिरकर्कन्धुपीलुपरूषकशाखाभिरस्या गृहं समन्ततः परिवारयेत् । सर्वतश्च सूतिकागारस्य सर्षपातसीतण्डुलकणकणिकाःप्रकिरेयुः । तथा तण्डुलबलिहोमः सततमुभयकालं (‘उभयतः कालम्’ इति पाठः) क्रियेतानामकर्मणः (प्राङ्नामकर्मणः इति पाठः) । द्वारे च मुसलं देहलीमनु तिरश्चीन न्यसेत् । वचाकुष्ठक्षौमकहिङ्गुसर्षपातसीलशुनकणकणिकानां रक्षोघ्नसमाख्यातानां चौषधीनां पोट्टलिकां बद्ध्वा सूतिकागारस्योत्तरदेहल्यामवसृजेत्, तथा सूतिकायाः कण्ठे सपुत्रायाः, स्थाल्युदककुम्भपर्यङ्केष्वपि, तथैव च द्वयोरपक्षयोः । कणक कण्टकेन्धनवानग्निस्तिन्दुककाष्ठेन्धनश्चाग्निः सूतिकागारस्याभ्यन्तरतो नित्यं स्यात् । स्त्रियश्चैनां यथोक्तगुणाः सुहृदश्चानुजागृयुर्दशाहं द्वादशाहं वा । अनुपरतप्रदान मङ्गलाशी:स्तुतिगीतवादित्रमन्नपानविशदमनुरक्तप्रहृष्टजानसम्पूर्णं च तद्वेश्म कार्यम् । ब्राह्मणश्चाथर्ववेदवित् सततमुभयकालं शान्ति जुहुयात् स्वस्त्ययनार्थं कुमारस्य तथा सूतिकायाः । इत्येतद्रक्षाविधानमुक्तम् ( ch. Sa. 8/47 )

Reference :- च. शा. 8/47, सु. शा. 10/23, आ. ह. उ. 1/25-26, का. संहिता कल्प -1, आ. संंग्रह 1/16-19

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