Botanical Name : Convolvulus pluricaulis Family Name : Convolvulaceae
Classical Mentions :-
Ved :- अर्थववेद 6/139
Bhavparkash :- कर्पूरादि वर्ग
Dhanvantri :- करवीरदि वर्ग (2 भेद)
Raj :- गडुचयादि वर्ग
Kaidev :- औषधि वर्ग (3 भेद)
Madanpal :- अभयादि वर्ग
Comparative review name :-
Name | भाव प्रकाश | Dhanvantri | मदनपाल | राज | कैदेव | वेद |
शड्खापुष्पी | * | * | * | * | * | * |
शङ्खाह्वा | * | * | * | |||
मङ्गल्यकुसुमा | * | |||||
कम्बुमालिनी | * | * | * | * | ||
तिलकी | * | |||||
शङ्खकुसुमा | * | * | ||||
मेध्या | * | * | * | |||
वनविलासिनी | * | * | * | |||
सुपुष्पी | * | |||||
कम्बुपुष्पी | * | |||||
चिरिण्टी | * | |||||
भूलग्ना | * | |||||
शङ्खमालिनी | * | |||||
क्षीरपुष्पी | * | |||||
केबुपुष्पी | * | |||||
मनोरमा | * | |||||
शिवव्राहमी | * | |||||
भूतिलत्ता | * | |||||
मांगल्यपुष्पी | * | |||||
शंखाह्वा | * | |||||
शङ्खनामी | * | |||||
शंखाहुली | * | |||||
स्मृतिहिता | * | |||||
वर्णविलासिनी | * |
अन्य जाती :-
Name | Dhanvantri | कैदेव |
नीलपुष्पी | * | |
सतीतच्छदिका | * | |
विष्णुकांता | * | * |
निलपुष्पिका | * |
Name | कैदेव |
सर्पाक्षी | * |
रक्तपुष्पा | * |
सुभद्रा | * |
सूक्ष्मपजिका | * |
बाह्य स्वरूप :-
क्षुप जामुनी या भूरे रंग के रोए युक्त काष्ठीय मूल– स्तम्भ से 4-12 इंच लंबी, रोमश शाखाएं – कुछ ऊंची उठकर, बाद में जमीन पर फैल जाती हैं। पत्र– आधा से डेढ़ इंच तक लंबे, कुछ मोटे वृन्त की ओर सिर की ओर चौड़े तथा चिकने होते हैं, मलने से मूली के पत्ते जैसी गंध; फूल– श्वेत या फीके अथवा गहरे गुलाबी रंग के, फनेल के आकार के गोल, फल– भूरे रंग का छोटा, चिकना और चमकदार, इसमें भूरे या काले रंग के 4 बीज होते हैं।
Chemical constituents :-
Shankhpushpi 2 crystalline substances
गुण – धर्म :-
कषाय, शीतवीर्य, स्निग्ध, पिच्छिल, तिक्त, मेध्य, रसायनी, अपस्मार आदि मानसिक रोगों को दूर करने वाली, स्मृति कांति तथा बल वर्धक। कुष्ठ, कृमि और विष नाशक।
प्रयोज्य अंग (पंचांग) :- पत्र, पुष्प, फल, बीज, मूल।
Habitat :-
Shankhpushpi is found all over India in stony and desert regions, during rainy season, they are small like grass.
Comparative review Gunn :-
Gunn | भाव प्रकाश | Dhanvantri | मदनपाल | राज | कैदेव |
कषाय | * | * | |||
उष्ण | * | * | * | ||
कटु तिक्त | * | * | |||
कफपित्तनाशक | * | ||||
शीत | * | ||||
तिक्त | * |
औषधीय प्रयोग :-
स्मरण शक्ति वर्धनार्थ=
- 3-6 ग्राम शंखपुष्पी का चूर्ण शक्कर व दूध के साथ प्रात:काल लेने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- शंखपुष्पी (Shankhpushpi) 2-4 ग्राम व बच मीठी का लगभग 1 ग्राम चूर्ण बच्चों को देते रहने से, वह बहुत बुद्धि शाली व चतुर होते हैं।
- 3-6 ग्राम शंखपुष्पी का चूर्ण मधु के साथ मिलाकर चाटने से व ऊपर से दूध पीने से बुद्धि विकसित होती है।
अपस्मार=
- शंखपुष्पी का रस 2 ग्राम सुबह शाम मधु मिलाकर पिलाने से अपस्मार रोग में लाभ हो जाता है।
- (Shankhpushpi) शंखपुष्पी, बच व ब्राह्मी का सम्भाग चूर्ण लें, इस चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में दिन में 3 बार लेने से अपस्मार, हिस्टीरिया और उन्माद रोग में लाभ होता है।
- इसका रस 10-20 ग्राम तक, कूठ का चूर्ण 500 मिलीग्राम थोड़े मधु के साथ लेते रहने से उन्माद अपस्मार मिटता है।
- इसके स्वरस 10-20 मिलीग्राम मधु के साथ देने से सब प्रकार के उन्माद में अच्छा लाभ होता है।
- शिरो वेदना=शंखपुष्पी (Shankhpushpi) 1 ग्राम, खुरासानी अजवायन 250 मिली ग्राम, उष्ण जल के साथ देने से शिर की वेदना 5 मिनट में दूर हो जाती है।
- वमन=शंखपुष्पी के पंचांग के 2 चम्मच रस में 1 चुटकी काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर मधु के साथ बार-बार पिलाने से वमन पर नियंत्रण हो जाता है।
- शय्यामूत्र=बच्चे रात्रि में सोते समय मूत्र कर देते हैं, उनको रात्रि में सोते समय शंखपुष्पी चूर्ण 2 ग्राम व काले तिल 1 ग्राम मिलाकर दूध के साथ देना चाहिए।
- मधुमेह=शंखपुष्पी (Shankhpushpi) के 6 ग्राम चूर्ण को, सुबह-शाम गाय के मक्खन के साथ या पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
- ज्वर में जब रोगी बेसुध हो जाता है, और प्रलाप करने लगता है, उस समय नींद लाने के लिए शंखपुष्पी चूर्ण 5-10 ग्राम चूर्ण को दूध व मधु के साथ देने से बहुत लाभ होता है।
- रक्तस्राव=शंखपुष्पी का 10-20 मिलीग्राम स्वरस मधु के साथ देने से रक्त बहना तुरंत बंद हो जाता है।
- उच्च रक्तचाप=ताजी शंखपुष्पी (Shankhpushpi) का 10-20 मिलीग्राम स्वरस सुबह, दोपहर व शाम, कुछ दिनों तक सेवन करने से उच्च रक्तचाप से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।
Comparative review Karm :-
Karm | भाव प्रकाश | Dhanvantri | मदनपाल | राज | कैदेव |
सारक | * | * | * | ||
मेध्य | * | * | * | * | * |
वृष्य | * | ||||
मानसरोग | * | ||||
रसायन | * | * | * | * | |
स्मृतिशक्तिवर्धक | * | * | |||
कान्तिवर्धक | * | * | |||
बलवर्धक | * | * | |||
अग्निवर्धक | * | * | |||
अपस्मार | * | * | |||
भूतबाधा | * | * | * | * | |
दरिद्रता | * | ||||
कुष्ठ | * | * | |||
कृमि | * | * | |||
कास | * | ||||
विष | * | ||||
स्वर हितकर | * | ||||
ग्रह बाधा | * | ||||
वशिकरण सिद्धि | * | ||||
लूताविष | * | ||||
अलक्ष्मी नाशक | * | ||||
चित्त प्रसन्नकारक | * | ||||
मोहनाशक | * |
After reading this post, read Shirish.
2 replies on “Shankhpushpi / शंखपुष्पी – Convolvulus pluricaulis Review”
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