AFTER READING SHAT CHAKRA WITH TRICK, READ NADI VIGYAN.
षट्चक्रं षोडशाधारं त्रिलक्षं व्योमपञ्चकम्।स्वदेहे यो न जानाति कथं वैद्यः स उच्यते ॥ एतानि षटू च चक्राणि यो जानाति स वैद्यराट् / वैद्यभाक् ॥
जो वैद्य अपनी देह में स्थित छ: चक्रों, 16 आधार, 3 लक्षण व्योम पंच को नहीं जानता वह वैद्य किस प्रकार का ?? और जो वैद्य शरीर में स्थित 6 चक्रों को भली प्रकार जानता है वह वैद्यों का राजा या वैद्य कहने के लायक होता है।
Trick to Learn :-
अपने मूल अधिष्ठान को मणिपुर ने नाह चाहते हुए भी अशुद्ध कर आज्ञा पालन छोड़ दिया।
- मूल – मूलाधार चक्र
- अधिष्ठान – स्वाधिष्ठान चक्र
- मणिपूर – मणिपूर चक्र
- नाह – अनाहत चक्र
- अशुद्ध – विशुद्ध चक्र
- आज्ञा – आज्ञा चक्र
Another Trick :-
मूला – स्वा – मणि- अना – वीशु- आज्ञा
यह चक्र नाड़ी के सूत्रों से बनते है। चक्रों को यंत्र भी कहा जाता है और इस रचना के करन सुश्म भंवर बं जाता है, शरीर में प्राण वायु का संचार इन्हीं में होता है, सुषुम्ना में प्राण वायु की विभन्न गतियों के कारण विभिन्न अक्षरों वाली आकृति बनती है। आधुनिक में इसे Autonomic Nervous system कहते है।
चक्र का नाम | Modern Name | स्थान | दल | अक्षर | देवता | वार | वायु | उप वायु | रंग | शक्तियां |
मूलाधार चक्र | Pelvic Plexus | गुद और मेड्र के बीच में | 4 | व, श, ष, स | गजानन | मंगलवार | अपान | – | आरक्त | गुप्ता प्रासका कराला विकराला |
स्वाधिष्ठान चक्र | Hypogastric | शिश्न के मूल में | 6 | ब, भ, म, य, र, ल | ब्रह्मा | बुधवार | अपान | धनंजय | पीला | अव्यंगता शारदा वाणि अमृता पूर्णा रोहिणी |
मणिपुर चक्र | Solar Plexus | नाभि मूल में | 10 | ड से फ तक | विष्णु | गुरुवार | समान | कृकल | नीला | सर्वगा सोमा या भद्रा तक्षिणी सौंदर्या शांतमुद्रा विशाखा दक्षिणी रूचिरा |
अनाहत चक्र | Cardiac plexus | हृदय में | 12 | क से ठ तक | महेश | शुक्रवार | प्राण | देवदत्त | सफेद | पद्मिनी सदर्भा रतिप्रिया वैजयंति सौभद्रा अत्रिमाया कुहवासिनी घोकिनी रेखा श्रिया तरंगिणी तारा |
विशुद्ध चक्र | Cervical plexus | कंठ प्रदेश में | 16 | अ से अ: | – | शनिवार | उदान | कर्म | धूम | सर्वतोभद्रा प्राणधारिणी सप्तद्योतिनी ब्रह्मायणी शबरी लोहिता यक्षिणी सौभाग्यदायिका भानुमति मदालसा शिखरिणी छाया विष्णुप्रिया विश्वोदरा माया चित्रघंटा |
आज्ञा चक्र | Cavernous plexus | भ्रू मध्य में | 2 | ह, क्ष | आत्मा | रविवार | – | – | महाकाली महालक्ष्मी |
चक्र :-
इडापिङ्गलेमिध्ये सुषुम्ना या भवेत् खलु। षट्स्थानेषु च षट्शक्ति षट्पद्यं योगिनो विदुः॥
त्रिनाड़ी के बीच में होने वाले गैप, जो कि 6 शक्तियां या 6 कमल के समान होता है; उसे षटचक्र कहते है।
मूलाधार चक्र :-
यह कुलनाम है, स्वर्ण आभा वाला है, सवंभू लिंग से संगत है। इसके ऊपर सफुरित तेज स्वरूप कामबीज ब्रह्मण करता है। यहां दविरंड नामक सिद्ध है, डाकनी देवता, उस पदन के मध्य में योनि है इश्मे कुंडलानी स्थित है।
इसका यन्त्र चतुष्कोण युक्त है। ज्ञानेन्द्रिय, नासिका और कर्मेन्द्रिय गुह्य प्रदेश है। इस त्रिकोण के मध्य में मेरुदण्ड के नीचे अन्त भाग में बन्द कली के समान लिंग है जिसे “स्वयंभू” लिंग (Conus Medullaris) कहते हैं। इसमें एक छिद्र है जिसे सुषुम्ना का मुख कहते हैं। इस “स्वयंभू” लिंग के चारों ओर साढ़े तीन चक्र (चक्कर) में कसकर लिपटी हुई सर्प के समान पूंछ को मुख में लिये सुषुम्ना छिद्र को रोके हुए, जीव शक्ति विराजमान है जिसे “सुप्त कुण्डलिनी” [Dormant cosmic energy] कहते हैं। यही 72000 नाड़ियों का, व षठ चक्रों का संचालन करती है। कुण्डलिनी जागृत होने के बाद में इसका मुख नीचे से ऊपर की तरफ होजता है।
आजकल इसे Vagus nerve कहते है।
ध्यान फल :-
वक्ता, मनुष्यों में श्रेष्ठ, स्वस्थ, सर्व विद्या विनोदी, प्रसन्न चित्त, काव्य रचना में समर्थ, आकाश गमन, कांति, जत्रग्नी बढ़ता है, जप करने से मंत्र सिद्धि होती है, जरा, मरण को नाश करदेता है,जिस चीज की भी कामना करता है उसे मिल जाती है, नित्य भगवान के दर्शन करता है।
स्वाधिष्ठान चक्र :-
लिंग मूल में स्थित दूसरा कमल ब से ल तक छ: वर्णों से युक्त है, रक्तवर्ण का जहा बाण नामक सिद्ध और राकिनी अधिदेवता है।
ध्यान फल :-
अहनकरादी विकारों का नाश, श्रेष्ठ योगी, मोह रहित, गद्य रचना ने निपुण, रस की वृद्धि करता है, सब रोगों से टीक होता है, मृत्यु को नष्ट कर देता है, शस्त्र दल कमल के समान अमृत की वर्षा करता है।
मणिपुर चक्र :-
नाभि कमल में आश्रित है व हेमवर्ण से सुशोभित ड से फ तक दश वर्नब्ज युक्त है। यहां रुद्र नामक सर्व मंगलकारी सिद्ध व लाकनी देवी है।
ध्यान फल :-
संहार व पालन में समर्थ, जिह्वा पर सरस्वती का वास, शब्द रचना में समर्थ, नित्य सुख दयी पाताल सिद्धि पाता है, दुख एवं रोग से मुक्ति पाता है, स्वर्ण बनाने में समर्थ होता है, सिद्ध, औषधि, निधियों का दर्शन पाता है।
अनाहत चक्र :-
हृदय में स्थित है, क से ठ वर्ण प्रायनंट, वह अतिताल वायु का बीज और प्रसाद का स्थान कहा गया है। यहां पिनाकी सिद्ध व काकिनी देवता है।
ध्यान फल :-
ज्ञानवान, काव्य रचना में समर्थ, परकाया प्रवेश में समर्थ, दूर से देखने व सुनने में समर्थ, अपनी मर्ज़ी से जहा चाहे वहा जा सकता है, खेचरी सिद्धि।
विशुद्ध चक्र :-
कंठ में स्थित है, धूम्र अभा से सुशोभित और 16 स्वरों से युक्त है। वहां छग लंद सिद्ध देवता त्था शाकनी अधिदेवता है।
ध्यान का फल :-
उत्तम वक्ता, ज्ञानवान, काव्य रचना में समर्थ, शांत चित वाला, त्रिलोक दर्शी, सर्व हित करी, स्वस्थ, दीर्घ आयु, तेजवान, 1000 वर्ष भी एक क्षण के समान कहते है।
आज्ञा चक्र :-
Eyebrows के मध्य में, ह से क्ष दो पत्र वला, शुक्ल वर्ण है, वहा महाकाल सिद्ध व हाकिनी देवी।
ध्यान फल :-
वाक् सिद्धि