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Shilajeet (शिलाजतु)- Mineral Pitch : Maha Ras Vargh

नाम:-

संस्कृतशिलाजतु
हिंदीशिलाजीत, शिलाजतु
Englishblack bitumen or mineral pitch
latin asphaltum punjabinum

पर्याय:- शिलाजतु, शिलाज, अद्रिज , शैलेय,, शिलास्वेद , अश्मोत्थ।

शिलाजतु भेदः-

रसग्रन्थों में गन्ध के आधार पर शिलाजतु के दो भेद माने है। यथाः-

(1) गोमूत्र गन्धि

2) कर्पूर गन्धि ।

गोमूत्र गाँधी शिलाजीत के दो भेद हैं:-

1.ससत्व

2.निस्तव

●गोमूत्र गन्धि शिलाजतु श्रेष्ठ रसायन होता है, जो ससत्त्व शिलाजतु से सत्त्वपातन द्वारा प्राप्त होता है, जबकि निःसत्त्व से सत्त्व प्राप्त नहीं होता है। ससत्त्व शिलाजतु अधिक गुणवान् होता है।

●कर्पूर गन्धि शिलाजतु किञ्चित् पीतवर्ण, बालुका सदृश दानेदार मूत्रकृच्छ, अश्मरी, प्रमेह, कामला एवं पाण्डु रोग का नाश करता है।

★इसका मारण एवं सत्त्वपातन नहीं किया जा सकता है।

स्वर्णादिगर्भजन्य शिलाजतु लक्षण’-

★स्वर्णगर्भ शिलाजीत जपापुष्प के सदृश रक्तवर्ण एवं भारी होता है, जो अल्प तिक्तरस, मधुर , उत्तम रसायन होता है।

★रजतगर्भ शिलाजीत पाण्डुवर्ण , मधुर, एवं गुरु बोटा है, जो पित्तरोगनाशक विशेषतः पाण्डु रोग को दूर करता है।

★ताम्र गर्भ शिलाजीत नीलवर्ण, घन एवं गुरु हिट है, जो कफ वात नाशक,तिक्तरस, प्रधान, उष्ण एवं क्षय रोग का नाश करता है।

■जो शिलाजीत गुग्गलू सदृश, तिक्त, एवं लवणरस युक्त , विपाक में कटु, और शीतवीर्य हो, वह लौह शिलाजीत सर्वश्रेष्ठ होता है।

■ यह त्रिदोषनाशक एवं उत्तम् रसायन होता है

Habitat:-

कुमायुँ जिले में सरयू और रामगंगा के बीच वाले पर्वत में चुने के प्तथरों से स्रवित होता है, गढ़वाल, गंगोत्तरी, यमुनोत्तरी ,नेपाल, कश्मीर, भूटान, पंजाब ।

शिलाजीत स्वरूप:-

●यह लाक्षा सदृश, मृदु, मिट्टी के समान रंग वाला एवं स्वच्छ जो पर्वत से मैल निकलता है। जो गुग्गुलु की तरह दिखाई देने वाला, स्वाद में तिक्त एवं लवण रसयुक्त, गोमूत्र जैसी गंध वाला हो, वह शिलाजीत सभी योगों के निर्माण में श्रेष्ठ होता है।

शिलाजतु परीक्षा-

★ शुद्ध शिलाजतु को आग पर जलाने से बिना धुंआ के जलता है और जलकर लिंगाकार आकृति बन जाती है।

इसी प्रकार शिलाजीत को एक तृण के अग्रभाग में लगाकर जल में डालने से तन्तु के सदृश पानी में मिलकर नीचे तल की ओ र जाते हुए घुल जाता है।

● कृष्ण वर्ण एवं गोमूत्रगन्धि शिलाजीत ही शुद्ध होता है।

शिलाजतु की विशेष परीक्षा:-

एक पाव दूध में तीन मासा शिलाजीत मिलाकर एक तोला अम्ल द्रव्य डालने पर भी दूध नहीं फटे, उसे उत्तम शिलाजीत समझना चाहिए।

शिलाजतु शोधन की आवश्यकता:-

बिना शुद्ध किए हुए शिलाजतु का सेवन करने पर दाह, मूर्च्छा, भ्रम, रक्तपित्त, क्षय, अग्निमांद्य एवं विबन्ध रोग उत्पन करता है। अतः शुद्ध करने के पश्चात् ही शिलाजतु का सेवन करना चाहिए।

शिलाजतु शोधन:-

(1) क्षार, अम्ल एवं गोमूत्र से धो लेने से शिलाजतु शुद्ध हो जाता है।

शिलाजतु का शोधन सूर्यतापी और अग्नितापी दो विधियों से किया जाता है।

(1) सूर्यतापी विधि-

शिलाजतु शोधनार्थ त्रिफला क्वाथ आदि द्रव पदार्थ में शिलाजतु को घोलकर कपड़े से छान लेते है। फिर छानने के बाद सूर्य की धूप में सुखाकर गाढ़ा कर लेते है। अतः इसे सूर्यतापी शिलाजीत कहते है। इस विधि से कई उड़नशील पदार्थों की रक्षा होने से औषधीय कर्मों में उपयोगी रहता है।

(2) अग्नि तापी विधि:-

त्रिफला क्वाथ आदि द्रव पदार्थों में शिलाजतु को घोलकर कपड़े से छान लेते है, फिर वस्त्रगालित द्रव को मन्दाग्नि पर धीरे धीरे गर्म करके गाढ़ा कर लेते है। अतः अग्नि पर गर्म करने से इसे अग्नितापी शिलाजीत कहते है।

शिलाजतु मारण-

शुद्ध शिलाजीत को शुद्ध मनःशिला, शुद्ध गंधक, शुद्ध हरताल के साथ समान भाग में खल्व यन्त्र में डालकर मातुलुङ्ग नींबू स्वरस की भावना देकर आठ उपलो का पुट देने पर भस्म बन जाती है।

शिलाजतु सत्वपातन-

शुद्ध शिलाजतु को द्रावकगण के साथ पीसकर अम्ल द्रव की भावना देकर मूषा में रखकर तीव्राग्नि में धमन करने पर लौह सदृश सत्त्व निकलता है।

★वर्तमान में शिलाजतु का मारण एवं सत्त्वपातन नहीं किया जाता है।

शिलाजतु की मात्रा:-

बल एवं काल आदि का ध्यान रखते हुए 2 रत्ती से रत्ती तक शिलाजतु का प्रयोग करें।

◆ आचार्य चरक ने शिलाजतु की 1 कर्ष, 2पल एवं 1 पल, इस प्रकार तीन प्रकार से मात्रा निर्धारित की है।

शिलाजतु अनुपान:-

दुग्ध, तक्र, मांसरस, यूष, जल, गोमूत्र एवं विविध रोगहर स्वरस एवं क्वाथादि के अनुपान से शिलाजतु का सेवन करें।

शिलाजतु के गुणकर्म :

★ जराव्याधिप्रशमन,★ देहदायंकर, ★मेधास्मृतिवर्द्धक,★ बल्यो ★आमपाचक, कफ रोग, उदर★, बस्ति वेदनाहर, प्रमेह,★ गुल्म, प्लीहा, अश्मरी, का मेदोहर★, मूत्ररोगनाशक, आयुस्थैर्यकारक,★ यक्ष्मानाशक, वलीपलितनाशक, त्वको पाण्डु, अच्छे, शोफ, ★अग्निमांद्य नाशक है।

◆ अर्थात् पृथ्वी पर ऐसा कोई साध्य नहीं है जो शिलाजीत का सेवन करने पर दूर नहीं होता है।

साध्य रोग शिलाजतु विकार शमन उपाय

मरिच चूर्ण को घृत के साथ सात दिन तक सेवन करने पर शिलाजतु सेवन से उत्पन्न विकार दूर हो जाता है।’

शिलाजतु के प्रमुख योग:

1)आरोग्यवर्धिनी वटी

(2)चन्द्रप्रभा वटी

(3) शिलाजत्वादि लौह

(4) शिवा गुटिका

(5) शिलाजत्वादि वटी

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