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Shuklagata Rog (शुक्ल गत रोग) with Trick to Learn

Shuklagata refers to diseases of white portion of eye ( sclera).

अर्जुन बल से जाल में शक्ति ( अर्म ) पकड रहा था‌‌ ।‌‌

  • अर्जुन – अर्जुन
  • बलसे – बलासग्रंथित
  • जाल – सिराजाल
  • शुक्ति – शुक्तिका
  • अर्म – 5 प्रकार के अर्म (प्रस्तारी, अधिमासज, स्नायु, शुक्ल, क्षतज)
  • पकड – सिरा पिडिका व पिष्टक

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  • B – बलासग्रंथित
  • J – सिराजाल
  • P – पिष्टक
  • A – अर्म
  • S – शुक्तिका
  • A – अर्जुन
  • P – सिरा पिडिका

PASS S for types of arma

  • P – प्रसतारी
  • A – अधिमांसज
  • S – स्नायु
  • S – शुक्ल‌
  • S – क्षतज

Shuklagata Rog trick Including 5 types of arma :-

शुक्ल पक्ष मे जन्मे क्षत्रिय अधिमासज व दीर्घायु शक्तियुक्त अर्जुन जिनके पिता के सिर पर पीडा का जाल ग्रथित था।

  • शुक्ल – शुक्ल‌ अर्म
  • पक्ष – प्रसतारी
  • क्षत्रिय – क्षतज
  • अधिमांसज – अधिमांसज
  • दीर्घायु – स्नायु अर्म
  • शक्तियुक्त – शुक्तिका
  • अर्जुन – अर्जुन
  • पिता – पिष्टक
  • सिर पीडा – सिरा पिडिका
  • जाल – सिरा जाल
  • ग्रंथित – बलासग्रंथित

Quick Revision:-

अर्म
प्रस्तारी

शुक्ल

क्षतज
अधिमासज


स्नायु
शुक्ल भाग मे चौडी, पतली, लाल – नीली कोमल मांस , ज्लदी बढने वाली
मृदु, श्वेत, समान, धीरे धीरे बढने वाली
कमल फूल समान
यकृत समान वर्ण, मोटा, श्याम सूखा हुआ पीत वर्ण का पिंड
खुदरी, पीत मांस वृद्धि
साधय
छेदन
Pterygium is a wing shaped fold of conjunctiva encroaching upon cornea from either side within the inter Palpeberal fissure
शुक्तिकामांस जैसा, जल शुक्ति समान बिंदू, पीत वर्ण का शुक्ल भागपैत्तिक साध्य सिरामोक्ष नही‌ करवाना
लेप, सेक, आश्च्योतन, विरेचन, शीतल अंजन, पित्तज अभिष्यंद समान
Xerophthalmia is a syndrome developing in eyes due to deficiency of vit. A
अर्जुनखरगोश रक्त समान वेदना रहित चिकना बिंदूरक्तज साध्य
पित्तज अभिष्यंद समान, लेखयांजन
Sub – conjuctival Haemorrhage
पिष्टकचावल के समान श्वेत, जलसमान ऊभार, गोलाकार बिंदू, मैल से ढके शीशे तुल्य मांसअंजनPinguecula is a type of conjuctival degeneration in eye, seen as yellowish white deposit on conjunctiva adjacent to limbus
सिराजालजाल सदृश कठिन, बडी रक्त वर्ण रेखाए, चारो तरफ फैली हुई रक्तज साध्य छेदन कर्मinflamation of sclera
सिरा पिडिका कृष्ण मंडल समीप श्वेत वर्ण पीडिका, सिरा से आवृतत्रिदोषज साध्य छेदनnodular episcleritis
बलासग्रथितजल समान बिंदू, कास्य समान आभा, वेदना रहित, कठिन ग्रंथि कफज साध्य काय शोधन, अंजन प्रयोग क्षारांजनcysts of conjunctiva

शुक्तिका, अर्जुन, पिष्टक, बलासग्रंथित (BAPS) – अशस्त्रकृत है बाकी सब छेदय

छेदन कर्म :-

  • पूर्व कर्म :- स्निग्ध भोजन कराकर बिठाए, लावणिक चूर्ण आंख में लगा कर‌ शोभित करे।
  • स्वेदन करने बाद चालन करे, जिस स्थान पर अर्म में क्षुरियां पडे, बडिश यंत्र से पकडकर रोगी की अपांग की और देखने बोले, मुचुण्डी से अर्म ऊपर उठाए
  • सुई में डोरा पहनाकर अर्म के नीचे डाल दे, नेत्र गोलक से शिथिल अर्म को मण्डलारग्र शस्त्र से काट दे ( कनीनक संधि का अतिक्रमण न करें), अर्म पूरा न‌ काटे ¼ रहने दे।
  • पश्चात कर्म – प्रतिसारण करे, स्वेदन, बंधन बांधे, व्रण उपचार, तीन दिन बाद पट्टी खोले, हस्त स्वेद व‌नेत्र शोधन करे।
  • शेष भाग पर लेख्यांजन प्रयोग

सम्यक लक्षण :-

नेत्र विशुद्ध, कार्य‌ ठीक प्रकार से होना, क्लम रहित नेत्र, उषद्रव रहित