श्वास रोग
व्याधि परिचय
आचार्य चरक ने हिक्का तथा श्वास रोग में दोष, दूष्य तथा स्रोतस की समानता होने के कारण दोनों व्याधियों का एक साथ वर्णन किया है। आचार्य चरक मतानुसार यह गम्भीर प्राणनाशक व्याधि है। आचार्य चरक ने इस व्याधि को अरिष्ट लक्षण भी माना है। हिक्का तथा श्वास रोग की शीघ्र चिकित्सा न होने पर ये आशीविष के समान रोगी का नाश कर देते हैं। आचार्यों ने श्वास रोग को ‘पित्त स्थान समुद्भव’ कहा है।
निरुक्ति
श्वास जीवने धातु से घञ् प्रत्यय करने पर श्वास शब्द बनता है। शाब्दिक अर्थ-जीवन व्यापार या वायु व्यापा। जिस रोग में जीवन व्यापार में कष्ट हो उसे श्वास रोग कहते हैं।
निदान
आचार्य चरक मतानुसार श्वास रोग के निम्न निदान है
- धूल अथवा धूम का श्वास मार्ग में प्रविष्ट होना
- शीत स्थान या शीतल जल का अति सेवन
- अति व्यायाम या अति व्यवसाय
- अति मार्गगमन
- अत्यधिक रुक्षात्र सेवन
- विषम भोजन
- आम दोष वृद्धि तथा आनाह रोग
- अत्यधिक अपतर्पण
- मर्माघात
- शीत तथा उष्ण दोनों का एक साथ शरीर में लगना
- शारीरिक रूक्षता
- वमन, विरेचन का अतियोग
- अतिसार, ज्वर, वमन, प्रतिश्याय. उर:क्षत, धातुक्षय, रक्तपित्त, उदावर्त, विसूचिका, अलस, पाण्डु तथा विष सेवन के कारण।
सम्प्राप्ति
I. सामान्य सम्प्राप्ति
आचार्यों ने हिक्का तथा श्वास रोग की एक ही सम्प्राप्ति बताई है परन्त आचार्य चरक ने श्वास रोग की विशिष्ट सम्प्राप्ति का भी वर्णन किया है। जब कफ के साथ प्रकृपित वायु प्राण, अन्न तथा उदकवह स्रोतों को अवरुद्ध कर कफ दोष द्वारा स्वयं रुकी हुई वायु शरीर में फैले हुए विभिन्न स्रोतों में गमन करती है तब श्वास रोग की उत्पत्ति होती है। श्वास रोग की उत्पत्ति में आम दोष तथा अग्निमांद्य का विशेष महत्त्व रहता है।
II.विशिष्ट सम्प्राप्ति
सम्प्राप्ति चक्र
सम्प्राप्ति घटक
- दोष-वात तथा कफ दोष
- दूष्य-रस धातु तथा प्राण वायु
- अधिष्ठान-प्राणवह स्रोतस, आमाशय
- स्रोतोदुष्टि लक्षण-संग्र-तथा विमार्गगमन
- स्वभाव-चिरकारी
- अग्निदुष्टि—अग्निमांद्य
- साध्यासाध्यता-कृच्छ्रसाध्य
भेद
आचार्य चरक तथा आचार्य सुश्रुत ने श्वास रोग के पाँच भेद वर्णित किए हैं
- महाश्वास (Fatal dyspnoea)
- उर्ध्वश्वास (Gasping respiration)
- छिन्न श्वास (Chyne Stroke Breathing)
- तमक श्वास (Bronchial asthma)
- क्षुद्र श्वास (Exertional dyspnoea)
पूर्वरूप
आचार्य चरक, आचार्य सुश्रुत तथा आचार्य माधव के मतानुसार श्वास रोग के निम्न पूर्वरूप प्रकट हो सकते हैं
- अनाह (Distension of Abdomen)
- पार्श्वशूल (Chest pain)
- हत्पीड़ा (Cardiac pain)
- प्राणवायु का विलोम होगा (Downward Movement of प्राणवायु)
- शूल (Muscular pain)
- भक्तद्वेष (Anorexia)
- अरती (Restlessness)
- आस्यवैरस्य (Bitter taste of Mouth)
- शंख भेद (Pain in Temporal Region)
लक्षण
श्वास रोग के भेदानुसार लक्षण निम्न प्रकार से प्रकट हो सकते हैं
महाश्वास के लक्षण –
- मतवाले साँड़ की गर्जना के समान शब्दयुक्त श्वास
- ज्ञान विज्ञान का नष्ट होना
- नेत्र चंचल होना
- मुख तथा नेत्र की विकृति
- मल-मूत्र की अप्रवृत्ति
- वाणी का क्षीण होना
- दीनता
ऊर्ध्व श्वास के लक्षण –
- रोगी के श्वासवह स्रोतों का मुख कफ से आवृत रहता है
- रोगी देर तक श्वास छोड़ता है (बहि: श्वसन) तथा अन्तः श्वसन में कष्ट होने के कारण श्वास को उतनी देर तक अन्दर नहीं खींच पाता (Pro longed expiration & short inspiration)
- उर्ध्व दृष्टि
- बार-बार मूर्च्छा (Frequent fainting attacks)
- बेचैनी तथा मुख शोष (Restlessness & Dryness of mouth)
- उर्ध्व श्वास के प्रकुपित होने से अधः श्वास का रुक जाना।
छिन्न श्वास के लक्षण
- रोगी का रुक-रुककर श्वास लेना।
- कभी-कभी श्वास प्रक्रिया का अल्प समय के लिए बन्द होना।
- मर्मस्थानों में कर्तनवत् पीड़ा।
- स्वेदाधिक्य (Excessive sweating)
- बस्तिप्रदेश में दाह (Burning sensation in urinary bladder)
- एक नेत्र का रक्तवर्णी होना तथा नेत्रों का अश्रुपूरित होना
- संज्ञा हानि मुख शोष, वर्ण विकृति तथा प्रलाप होना।
- संधि बन्धनों का ढीला होना।
तमक श्वास के लक्षण-
नूतन अवस्था में तमक श्वास साध्य होता है तथा जीर्ण अवस्था में कृच्छृसाध्य होता है। आचार्य चरकमतानुसार तमक श्वास की। सम्प्राप्ति तथा लक्षण निम्न प्रकार वर्णित है
सम्प्राप्ति
निदान सेवन से कफाधिक्य होकर श्वास का मार्गावरोध हो जाता है। अतः वायु कुपित होकर प्रतिलोम गमन करती है तथा ग्रीवा तथा शिर कफ को उखाड़कर पीनस रोग को उत्पन्न करती है। गले में घूर्घुराहट के साथ अत्यन्त तीव्र वेग से प्राणों को पीडा यक्त करने वाले श्वास रोग को उत्पन्न करती है।
लक्षण
- श्वास का वेग बढ़ने पर रोगी का शरीर टेढ़ा हो जाता है।
- बार-बार कास की प्रवृत्ति (Frequent coughing)
- कास का वेग बढ़ने पर रोगी मूर्छित हो जाता है।
- कास के साथ कफ निष्ठीवन से रोगी को लाभ होता है।
- बार-बार कास के वेग के कारण स्वर भेद हो जाता है तथा रोगी को बोलने में अत्यंत कष्ट होता है।
- शयन करने पर निद्रा नहीं आती तथा रोगी का कष्ट बढ़ जाता है क्योंकि लेटने पर प्रतिलोम हई वाय पार्श्व में रुककर पार्श्व का स्तम्भन कर देती है।
- बैठने पर रोगी को आराम मिलता है।
- रोगी को उष्ण पदार्थों के सेवन से सुख का अनुभव होता है।
- रोगी के नेत्र सदैव ऊपर की ओर चढ़े हुए प्रतीत होते हैं
- श्वास की कठिनाई के कारण ललाट पर स्वेदाधिक्य होता है।
- मेघ, अम्बु, शीतल वातावरण, पूर्वी वायु तथा कफवर्धक आहार-विहार सेवन से श्वास कष्ट बढ़ जाता है।
तमक श्वास के भेद
संतमक श्वास-
जो श्वास उदावर्त रोग के कारण, मुख, नासिका मार्गों में धूलि प्रवेश हो जाने के कारण, अजीर्ण रोग से, शरीर की क्लिन्नता तथा वेगावरोध से उत्पन्न होता है तथा तम से बढ़ता है, शीतल आहार-विहारों से शान्त हो जाता है। उसे संतमक श्वास कहते हैं। इनमें मानसिक दोष प्रभावी होते हैं।
प्रतमक श्वास–
तमक श्वास से पीड़ित रोगी में जब ज्वर तथा मूरच्छा ये दोनों पद्रव रूप में पाये जाते हैं तब उसे प्रतमक श्वास कहते हैं। इसमें पित्तानुबन्ध होता है।
क्षुद्र श्वास के लक्षण-
रूक्ष आहार सेवन तथा श्रम से उत्पन्न हुई क्षुद्र कोष्ठ में कुपित होकर उर्ध्वप्रदेश स्रोतों में जाकर क्षुद्र श्वास को उत्पन्न करती है। वायु इसके लक्षण निम्न प्रकार से-
- शारीरिक कष्ट का अभाव
- भोजन तथा जलपान की रुकावट न होना।
- इन्द्रियों में किसी भी प्रकार की व्यथा या रुजा न होना। ३.
- थोड़ा विश्राम से वेग का शान्त होना।
साध्यासाध्यता
आचार्य चरक ने हिक्का तथा श्वास रोग को प्राणघातक माना है। आचार्य सुश्रुत मतानुसार श्वास रोग की साध्यासाध्यता निम्न प्रकार है
- क्षुद्र श्वास साध्य होता है
- महाश्वास, उर्ध्वश्वास तथा छिन श्वास असाध्य होते हैं
- नूतन तमक श्वास साध्य है परन्तु जीर्ण होने पर कृच्छ्रसाध्य व दुर्बल रोगी का तमक श्वास असाध्य होता है।
22 replies on “Shvas Rog (श्वास रोग) : Dyspnoea, Asthma”
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Chikitsa Hoti to bahot asan ho jata
This post is according to 2nd year (Rog Nidan).
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