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Kumar Bhritya

Ayurvedic Infant Diagnosis ( बच्चे के रोग का निदान )

शैशवकाल में जब शिशु बोल भी नहीं सकता तोह उस समय पर शिशुओं को होने वाली पीडा का पता केसे लगा सकते है? आज कल तोह इस को देख कर आम तौर से पेट दर्द समझ कर इलाज किया जाता है, परंतु यही प्रशन एक बार वृद्ध जीवक ने भगवान कश्यप से किया था फिर उन्होंने बच्चो की विभिन्न पीड़ाओं के लिए बताया था। आधुनिक भी मानता है कि बच्चो के कुछ आत्मज भाव होते है जो कि हर बालक ने समान होते है कुछ आदते जैसे पाल्मर साइन ( जब बच्चे के हाथ पर कुछ भी रखते है तोह वह पकड़ा है ) उसी प्रकार से भगवान कश्यप विभिन्न रोगों में द्वारा बताए गए चिह्न रोग व पीड़ा का पता लगाने में मदद करते है।

Translation :- In infancy, when the baby cannot even speak, it’s litterary difficult to figure out can suffering at that time? Nowadays, seeing this, it is usually treated as a stomach ache, but same question was once asked by an Vridh Jeevak to Lord Kashyap, then he told about the various ways to find diffrent sufferings of children. Even modern science also believes that infants have certain specific signs which are similar in each child, like Palmer sign (when touched anything on hand of baby it holds holds ) in the same way, Lord Kashyapa tells various signs in diffrent diseases for detection of the suffering.

रोगलक्षण
शिर शूलसिर को बार बार हिलाता है, आंखे बंद कर लेता है, रात्रि में सोते सोते चिलात है, आहार से ग्लानि होजाती है व नींद नहीं आती।
मुख रोगमुख सए अत्यंत लाला स्त्राव होता है, दूध से द्वेष होता है, ग्लानि, पीड़ा होती है, पीये हुए दूध को निकाल देता है, नासा से शवस लेता है।
कर्ण वेदनाबालक हाथ से दोनों कानों का स्पर्श करता है, सिर बहुत हिलाता है, ग्लानि तथा अरुचि हो जाती है, उसे नींद नहीं आती।
कंठ वेदनाबालक पिए हुए दूध को निकाल देता है, स्लेशमा वर्धक पदार्थ से उसे विष्टमभ, हल्का ज्वर, अरुचि, ग्लानि।
अधि जिहविका रोगइसमें मुख से लाला स्त्राव होता है, अरुचि, ग्लानि, कपोल पर शोथ व पीड़ा होती है, मुख खुला रहता है।
ग्रह रोगज्वर, अरुचि, मुख से लाला स्त्राव, श्वास लेने में कष्ठ होता हैं।
कंठ शोथज्वर, कंठ पर शोथ, अरुचि, शिर शूल।
ज्वरबालक बार बार अंगो को सुकोड़ता है, उबासी लेता है, बार बार खासी, सहसा पीला, सफेद रहता है, माथा गर्म रहता है, अरुचि होती है, पैर ठंडे होजाते है।
अतिसारशरीर पीला या सफेद होता है, मुख पर ग्लानि रहती है, नींद नहीं आती, वायु के कर्म कम होते है।
उदर शूलबालक स्तन पान छोड़ देता है, रोता है, मुख ऊपर करते सोते है, पेट पर स्तंभन होता है, सर्दी लगती है, मुख से पसीना आता है।
श्वास रोगछाती से गरम गरम सांस लेता है।
हिक्काकृश व्यक्ति में एक दम वायु का डाकर आए तो हिक्का की संभावना होती है।
तृष्णाअत्यधिक स्तन पान करने के बाद भी यदि तृप्त नहीं होता तोह रोता रहता है, होथ व तालू सुख जाते है।
आनाहआंखे फैली हुई होती है व स्तंभित होती है, जोड़ो में दर्द हो, कलम हो, मूत्र वायु, मल सभी रुक गए हो।
अपस्मारहल्का जोर से अट्टहास करता है
उन्मादप्रलाप, चित भ्रम, अरती
मूत्र कृच्छरोम हर्ष, अंग हर्ष, मूत्र त्याग के समय वेदना, होथ को दातो तले दबा लेना, हाथ से बार बार बस्ती प्रदेश को लगाना।
प्रमेहशरीर भारी होगा, बंधा हुआ सा व जड़ होता है, एक दम से मूत्र निकल जाता है, मूत्र पर मक्खियां भिनभिना, मूत्र का रंग श्वेत व घन।
अर्श रोगमल बंधा हुआ सा व पाक्कव, रक्त युक्त, बालक कमजोर होगा, गुद में वेदना, कांडू, तोंद होगा।
विसर्पशरीर पर रक्त मंडल बन जाते है, तृष्णा, दाह, ज्वर, अरती, मधुर व शीत द्रव्य सेवन की इच्छा होती है।
अश्मरीमूत्र में शकर युक्त, अधिक मात्रा में, मूत्र त्याग के समय वेदना, बालक बहुत अधिक लगातार रोता हो, दुर्बल हो।
विसुचिकाअंगो में दाह, सूची भेद सदृष्य पीड़ा, सांस लेने में कठिनाई, हृदय में शूल।
अलसकबालक थोड़ी देर भी सिर को धारण नहीं करता, बार बार जम्भाई लेता है, अधिक स्तन पान नहीं करता, गठो युक्त वमन करता है, आध्मान, अरुचि
नेत्र रोगदृष्टि में व्याकुलता, तोंद, शोथ, शूल, आसुओं का अधिक आना, लालिमा, सोते हुए दोनों आंखो में परस्पर चिपक जाना।
शुष्क कंडुबालक सोते समय आंखो को रगड़ता है, जब रोता है तोह शरीर को मर्दन करता है।
आद्र कंडुशुष्क के बाद शुरू होती है, इसमें रगड़ने पर सुख मिलता है परन्तु और बड़ जाता है और फिर स्त्राव आता है व शूल व दाह होती है।
आम दोषशरीर चिपचिपा होता है, अरुचि, निद्रा, शरीर का पांडु होना, अरति, बालक का खेल, निद्रा, भोजन से द्वेष, यदि स्नान किया हो तो बिना स्नान किया लगता है और न नहाया हो तो नहाया हुए।
पांडु रोगनाभि के चारो ओर शोथ होता है, आख, नाखून, मुख सफेद हो जाता है, अग्नि मंद, आखो के चारो ओर शोथ हो जाता है।
कामलाआंख, नाखून, मुख, मल, मूत्र पीले हो जाते है, उत्साह शून्य, अग्नि नष्ट होती है, रुधिर के प्रति आकांक्षा होती है
पीनस रोगस्तन पान करता हुए बार बार मुख से सांस ले, नासिका से स्त्राव हो, माथा गरम रहे, स्रोतों को बार बार हाथ लगाए, छिक व ख़ास करे
उरो घातबालक की छाती पर बड़े बड़े गर्म मास निकल आते है।
जंतु दंशनिरोग बालक यदि रात में न सोएं, किसी अंग पर लाल बिंदु दिखाई देती है।
कृच्छ साध्यज्वर, वमन, अतिसार आदि रोगों से पीड़ित।
अंग में पीड़ाजिस अंग में पीड़ा होती है उसे बार बार हाथ लगाते है, स्पर्श करने पर रोता है।
बस्ति में पीड़ामूत्र रुक जाता है, तृष्णा, मुर्शित हो जाता है
कोष्ठ में दोषमूत्र अवरोध, विवर्णता, वमन, आध्मान, आंत्र में सूजन

Refrence :- का. संहिता सूत्र स्थान 25, आ. हृदय उत्तर 2, सु. शा 10, योग. र. बाल चिकित्सा

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