स्वरूप :-
- जो तपस्चर्या, तेज, यश व स्वस्थ शरीर से निधान है
- ग्रहों व देवताओं के सेनापति
- महादेव, अग्नि, गंगा, उमा व कृतिका के पुत्र है
- लाल माला, लाल वस्त्र, लाल चंदन व लाल शरीर धारी।
पर्याय :-
- कुमार
- कार्तिकेय
- गुह
उत्पति :-
इनकी उत्पति भगवान शिव द्वारा की गई थी
ग्रह का दूध पर प्रभाव :-
त्रिदोष जन्य लक्षण दूध में उपस्थित होते है
लक्षण :-
- नेत्र :–
- शोथ युक्त
- नेत्र की पलक स्तम्भ रहती है
- कम्पन होती है
- लाल नेत्र
- एक नेत्र से बराबर स्त्राव होता है
- ऊपर की ओर देखना
- दोनों नेत्र सुर्ख हो जाते है
- शरीर से रक्त की गंध आती हैं
- वासा की भी गंध आती है
- कम्पन होना
- स्त्न्य द्वेष, मुख वक्रता होता है
- अल्प राेधन
- सख्त मल त्याग करता है
- जोर से हाथो को भींचे होए
- मुठ्ठी बंद किए
- बार बार सर हिलाना
- कंधा का गिरा होना
- ऊपर की ओर देखना
- भयभीत
- एक अंग में चेष्टा होता है
- स्तम्भ अंग
- स्वेद आना
अरिष्ट लक्षण :-
- जब माता स्वपन में गंध, लाल रंग के पुष्प व वस्त्र धारण करती है
- बालक स्वपन में मोर, मुर्गे, बकरे पर सवारी करे व रक्त चंदन द्वारा उसका शरीर अर्चित करता हो
- बालक स्वपन में पताका जमीन पर विध्वंश होता देखे व शय्या को रक्त से मिला दिखे
चिकित्सा :-
- वात नाशक चिकित्सा करनी चाहिए
- वात नाशक द्रुम पत्र क्वाथ से स्नान
- सोम लता, अर्जुन, बंदा, श्रीफल, शमी, इनारुन की जड़ सब बच्चे के गले में बांधे
- लाल फूलों की माला, लाल ध्वजा, लाल चंदन, भोजन, घंटा, मुर्गा बालक से उतारकर कोहरहे पर रखे और मुर्गे की बलि दे।
- नये चावल व नय जोह का पानी से बच्चे को गायत्री मंत्र से अभमंत्रित करके चोहरहें पर रात को स्नान करवाए और चावल व जोह की अग्नि में आहुति दे।
- देवदार्वादि घृत दूध के अनुपान के साथ
- रात्रि के समय निम्न मंत्र का होम करना चाहिए ( मधु और घी का )
- अग्नये कृत्तिकाभ्यश्च स्वाहा स्वाहेति चान्ततः।नमः स्कन्दाय देवाय ग्रह आधिपत्य नमः॥ शिरसात्वाभि वन्दे प्रतिगृूहीष्व मे बलिम् । नीरजो निर्विकारश्च शिशुभवतु सर्वदा ॥
- तीन रात्रि तक गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित करके चौराहे पर स्नान करना चाहिए।
रक्षा पाठ :-
वैद्य को बालक की रक्षा के लिए व पाप का नाश करके बालक को टीक करने के लिए प्रति दिन निम्न पाठ पढ़ना चाहिए :-
तपसां तेजसां चैव यशसां वपुषां तथा। प्रधानं योऽव्ययो देवः स ते स्कन्दः प्रसीदतु ॥४६॥ ग्रहः सेनापतिर्देवो देवसेनापतिर्विभुः । देवसेनारिपुहरः पातु त्वां भगवान्गुहः ॥४७॥ देवदेवस्य महतः पावकस्य च यः सुतः । गङ्गोमाकृत्तिकानां च स ते शर्म प्रयच्छतु ॥४८।। रक्तमाल्यास्वरधरो रक्तचन्दनभूषितः । रक्तदिव्यवपुर्देवः पातु त्वां क्रौञ्जसूदनः ॥४९॥ ( भाव प्रकाश मध्य 71 बाल रोग )
अर्थ :- तप, तेज, यश तथा शारीरिक स्वास्थ्य के भंडार रूप देव सवामी कार्तिकेय तुम्हारे ऊपर प्रसन्न हों, ग्रहों और देवताओं के सेनापति, सेनापति नाम वाले और देवताओं की सेना के शत्रुओं को विनष्ट करने वाले स्वामही कार्तिकेय तुम्हारी रक्षा करे। जो महादेव जी के, अग्नि के, गंगा के, पार्वती के तथा कृत्तिका के पुत्र है, ऐसे स्वामी कार्तिकेय तुम्हारा कल्याण करें। लाल फूल और वस्त्रों को धारण करने वाले, लाल चन्दन से सुशोभित और दिव्य लाल शरीर वाले स्वामी कार्तिकेय तुम्हारी रक्षा करें।
Can be compared to cavernous sinus thrombosis or facial paralysis in allopathy,
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