“तं विद्यात् दुःख संयोगो वियोगं योग संजितम्। ” (भगवद्गीता) 6/23।।
सभी प्रकार के (शारीरिक एवं मानसिक) वेदना के सम्बन्ध से विमुक्त होना ही योग कहलाता है।
◆ जब पुरुष अपने मन, बुद्धि , इन्द्रियों की चंचलता को स्थिर कर लेता है, तब वह व्यक्ति इस संसार के व्यामोह से उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के दुःख से वियोग हो जाने को भगवान् श्रीकृष्ण ने योग की संज्ञा दी है।
सूर्य नमस्कार:-
प्राणायाम करने के सारे लाभ प्राप्त होते हैं।
◆अगर कोई व्यक्ति केवल सूर्य नमस्कार का अभ्यास करता रहे तो उसे किंसी आसन या प्राणायाम करने की आवश्यकता नहीं रहती है तथा वह स्वस्थ बना रहेगा।
12 अवस्थाएं इस तरह है_
प्रथम अवस्था – प्रार्थना, आसन /नमस्कारासन/ प्राणामासन
बीज मंत्र:- ऊँ ह्याँँ मित्राय नमः (Aumhmmitraya Namha)
आसन विधि:-
★दोनों हाथ जोड़कर, आँखें बन्द करके सीधे सूर्य के तरफ मुख करके खड़े होना चाहिए।
★पैरों के दोनों अंगूठे मिले हुए होने चाहिए।
श्वास प्रश्वास विधि: – सामान्य होना चाहिए।
प्रभाव :- अनाहत चक्र पर पड़ता है।
द्वितीय अवस्था– हस्तोत्तथानासन।
बीज मंत्र :- ऊँ ह्राँ रवये नमः1(Aum Harima Raveye Namha)
आसन विधि:-
★श्वास को दीर्घ विधि (पूरक) से अन्दर लेते हुए दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर सिर एवं कटि से ऊपरी भाग को पीछे की तरफ झुकाना चाहिए।
श्वास प्रश्वास विधि:- हाथ ऊपर लेते समय दीर्घ श्वास (पूरक) करके उस पूरक स्थिति को 10-20 सेकंड तक रखना चाहिये।
प्रभाव :- विशुद्ध चक्र पर होता है।
तृतीयावस्था– पादहस्तासन
बीज मंत्र :– ऊँँ ह्र सूर्याय नमः | (Aum Hran SuryayaNamha)
आसन विधि:-
★हस्तोत्थानासन की स्थिति से कमर को सीधी करें और हाथों को सामने की ओर करे धीरे-धीरे कमर से आगे झुके घुटनों को सीधा रखते हुए आगे झुकना चाहिए।
★हाथों से पैरों के अंगूठे को पकड़ना चाहिए।
श्वास प्रश्वास विधि :-
●आगे की ओर झुकते समय श्वास को बाहर छोड़ते हुए, पैरों का अंगूठा पकड़ना चाहिए।
● इसके पश्चात् “केवल कुम्भक” अवस्था को 10-20 सैकंड बनाये रखें।
प्रभाव :- मूलाधार चक्र पर होता है।
चतुर्थावस्था-अश्वसंचलनासन।
बीज मंत्र- ऊँँ ह्रैं भानवे नमः | (Aum Harim Bhanave Namha)
आसन विधि:-
★हाथों को दोनों पाद (पैरों) के दोनों तरफ रखें व
★ श्वास को अन्दर लेते, बाँयें पैर को पीछे लम्बा कर दें, दायाँ पैर के घुटने को मोडकर दोनों हाथों को सीधे जमीन पर रखें।
श्वास प्रश्वास विधि:- यह इस अवस्था में श्वास को अन्दर लेकर कुम्भक धारण करना चाहिए।
प्रभाव :- आज्ञा चक्र पर होता है।
पंचमावस्था-पर्वतासन
बीज मंत्र- ऊँ हौं खगाय नमः Aum hroum khagaya namha
आसन विधि:-
★श्वास अंदर भरते हुए, पैरों को अश्वसंचलनासन की स्थिति से धीरे-धीरे दाँये पैर को पीछे लेकर बायें पैर के साथ रखते हुए कमर को ऊपर उठाये एवं सिर को हाथों के बीच रखते हुए नीचे झुकाना चाहिए।
श्वास प्रश्वास विधि:-
★सामान्य होना चाहिए।
प्रभाव :- विशुद्ध चक्र पर होता है।
षष्ठमावस्था– साष्टांग प्रणाम या अष्टाङ्गः मणिपादासन
बीज मंत्र – ॐ हं पूष्णे नमः (Aum hrah pusne Namha)
आसन विधि:-
★पर्वतासन की स्थिति से, सिर को सीधा करके श्वास छोड़ते हुए, दोनों हाथ, चिबुक, वक्ष और घुटनों को जमीन पर लगाए।
★ कमर से नाभि तक के अङ्ग जमीन से उठा हुआ होना चाहिये।
श्वास प्रश्वास विधि :- इस स्थिति में श्वास अन्दर की ओर लेकर कुम्भक धारण करना चाहिए। (सहित कुम्भक)
प्रभाव :- मूलाधार चक्र पर होता है।
सप्तमअवसथा -भुजंगासन/सर्पासन
बीज मंत्र- ॐ ह्रां हिरणगर्भायनमः -( Aum hram Hiranya garbhaya namaha )
आसन विधि : –
★साष्टाङ्गनमस्कार स्थिति से, श्वास अन्दर लेकर कमर को जमीन पर रखें और सिर को उपर उठाकर पीछे के तरफ ले. हाथों को सीधा आगे के ओर जमीन पर रखना चाहिये।
श्वाश प्रश्वास विधि :– श्वास को अंदर लेकर कुम्भक अवस्था में भुजंगासन स्थिति में रहना चाहिए।
अष्टमावस्था– पर्वतासन
बीज मंत्र – ऊँँ ह्री मरीचाये नमः (Aum hrim maricaye namha)
आसन विधि :-
★भुजंगासन के स्थिति से धीरे-धीरे श्वास को बाहर छोड़ते हुए पर्वतासन करना चाहिए।
प्रभाव :- विशुद्ध चक्र पर होता है।
नवम अवस्था-अश्वसंचालासन
बीज मंत्र – ऊँ ह्यू आदित्याय नमः Aum hyum adityaya namah
आसन विधि:-
★पर्वतासन स्थिति से धीरे-धीरे बाँयें पैर को आगे लाकर दोनों हाथों के बीच में रखना चाहिए।
★ यहाँ श्वास अन्दर की ओर लेना चाहिए।
प्रभाव :- मूलाधार चक्र पर होता है।
दशमावस्था-पादहस्तासन
बीज मंत्र-ऊँँ ह्रै सावित्रे नमः Aum hrim savitre namah
आसन विधि:-
★अश्व संचालनासन के स्थिति से, श्वास को बाहर छोड़ते हुए, हस्तपादासन स्थिति धारण करना चाहिये।
श्वास प्रश्वास विधि:– रेचक, केवल कुम्भक।
प्रभाव :- विशुद्ध चक्र पर होता है।
एकादशावस्था-हस्तोत्थानासन
बीज मंत्र-ऊँ ह्रो अर्काय नमः Aum hreem Arkaya namaha
आसन विधि : –
★पादहस्तासन के स्थिति, श्वास को अंदर लेकर हस्तोत्तानासन की स्थिति धारण करना चाहिए।
श्वास प्रश्वास विधि: – सहित कुम्भक।
द्वादश अवस्था- प्रार्थना आसन/नमस्कारासन प्रणामासन
बीजमंत्र – ऊँ ह भास्कराय नमःAum Hrah bhaskaraya namah
आसन विधि : –
★ हस्तोत्थनासन की स्थिति से, श्वास का बाहर छोड़कर, श्वास प्रश्वास को समान रखते हुए, नमस्कारासन धारण
श्वास प्रश्वास विधि– सामान्य।
प्रभाव :- अनाहत चक्र पर होता है।
लाभ :-
- सम्पूर्ण शरीर की मांसपेशियों में दृढ़ता लाता है।
- अग्नि प्रदीप्त करता है।
- रीढ़ की हड्डी में स्थिरता लाता है।
- जोड़ों (सन्धियों) में लचीलापन लाता है।
- मन प्रसन्न होता है।
- सम्पूर्ण शरीर का विकास होता है।
- सभी षटचक्र प्रेरित होते हैं।
One reply on “Surya Namaskar (सूर्य नमस्कार) – Sun Salutation”
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