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Ras Shastra

Swarn ( स्वर्ण ) – Gold : Dhatu Vargha

नाम:-

संस्कृतसुवर्णम्
हिंदीसोना
EnglishGold
symbolAu

पर्याय:-

स्वर्ण, हिरण्य, कल्याण, अग्निवर्ण, हेम, कनक , कौन्त, हाटक, चामीकर, चाम्पेय।

सुवर्ण उत्तपति:-

  1. जल के साथ अग्नि के मैथुन से जो अग्नि का वीर्यरक्षण हुआ, उसी से सुवर्ण कि उत्तपति हुई।
  2. शिव के स्खलित वीर्य का पान अग्नि देव ने किया, किन्तु असह्य होने के कारण पुनः उसका वमन कर दिया।वमन किया हुआ यही वीर्य सुवर्ण हो गया।

Gold is a Nobel metal.

प्राप्ति स्थान:-

  • सुवर्ण प्रकृति में मुक्त अवस्था एवं यौगिक अवस्था दोनों रूप में प्राप्त होता है।
  • विशेष रूप से यह मैसूर के कोलार गोल्ड-फील्ड से प्राप्त होता है।
  • मद्रास के अनन्तपुर की खान एवं बिहार में सुवर्ण रेखा की नदियों की रेत से इसके कण प्राप्त किये जाते है।
  • भारत के अलावा यह दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, वर्मा अमेरिका, मैक्सिको, चीन तथा रूस आदि देशों में पाया जाता है।

सुवर्ण के खनिज:-

(1) स्वतंत्र रूप (Native Gold)

(A) Auriferous quartz veins

(B) Allurial sands or gravels

(2) यौगिक रूप में :(Combined form of tellurides)

  • (A) कैलेवराइट (Calaverite) Au Te
  • , (B) सिल्वेनाइट (Sylvanite) (Au, Ag) Te,
  • (C) कालगूरलाइट (Kalgoorlite) (Au, Ag, Hg.) Te,
  • (D) पाइराइट्स or सल्फाइड ओर के साथ
  • (E) ऑरिफेरस पाइराइट खनिज से

सुवर्ण भेद:-

रस शास्त्र में स्वर्ण के 5 भेद माने हैं:-

  1. प्राकृत स्वर्ण
  2. सहज स्वर्ण
  3. अग्निसम्भवस्वर्ण
  4. खनिज स्वर्ण
  5. रस्विद्ध स्वर्ण

ग्राह्य स्वर्ण के लक्षण :-

  • आग पर तपाने पर रक्तवर्ण होने वाला,
  • काटने पर चमकने वाला,
  • कसौटी पर घिसने पर केशर के सदृश वर्ण वाला,
  • गुरु, स्निग्ध, मृद एवं स्वच्छ, पत्ररहित, पीतवर्ण की आभावाला तथा
  • षोडश वर्ण वाला स्वर्ण देहसिद्धि एवं लौह सिद्धि में प्रशस्त होता है।

अग्राह्य स्वर्ण के लक्षण –

  • श्वेताभ, वृक्ष, कठिन, विवर्ण, मलयुक्त,
  • गर्म करने पर श्वेत एवं कृष्णवर्ण का होने वाला,
  • कसौटी पर घिसने पर श्वेत रेखा खींचने वाला और
  • हल्के सोने को रस रसायन कर्म में त्याज्य माना गया है।

स्वर्ण शोधन प्रयोजन :-

  • कुछ विद्वानों के अनुसार स्वर्ण का शोधन नहीं करना चाहिए।
  • क्योंकि स्वर्ण को शुद्ध लौह माना है।
  • जबकि अन्य विद्वानों के अनुसार स्वर्ण का शोधन आवश्यक माना गया है।
  • क्योंकि अशुद्ध स्वर्ण का सेवन करने पर सख, वीर्य एवं बल का नाश होता है और अनेक रोगों की उत्पत्ति हो जाती है अत:स्वर्ण का शोधन करना चाहिये।

स्वर्ण का सामान्य शोधन:-

Same as Dhatu samanya shodhan.

स्वर्ण का विशेष शोधन:-

वल्मीकमिट्टी, गृहधूम, स्वर्णगैरिक, ईंट का कर्ण और सैंधवलवण सभी समान भाग लेकर

नींबू स्वरस एवं काञ्जी से घोटकर बनाये लेप को स्वर्ण के कण्टकवेधी पत्र पर लेप करके तीन दिन रखें।

इसके पश्चात् शराव सम्पुट में रखकर लघुपुट की अग्नि दें।

स्वयं शीत हो जाने पर स्वच्छ जल से पत्रों को धोने पर स्वर्ण पूर्ण रूप से शुद्ध हो जाता है।

स्वर्ण मारण:-

  • शुद्ध स्वर्ण के कण्टकवेधी पत्रों पर नींबू स्वरस से मर्दित भस्म (रससिन्दूर) का लेप कर सुखाएं।
  • इसके पश्चात् शराव सम्पुट में रखकर कुक्कुट पुट की अग्नि में पाक करें।
  • इस प्रकार दस पुट देने पर स्वर्ण की भस्म बन जाती है।

अपक्व स्वर्ण भस्म से हानि :-

  • शुद्ध और अपक्व स्वर्ण भस्म का सेवन करने पर मनुष्य के बलवीर्य का नाश होता है।
  • और मनुष्य के शरीर में विविध रोगों को उत्पन्न करके शरीर को कष्ट पहुंचाता है।
  • अन्त में रोगी की मृत्यु भी हो सकती है ।

स्वर्ण भस्म मात्रा-

  • रसरत्नसमुच्चयकार ने दो गुञ्जा की मात्रा में लेने का निर्देश किया है।
  • रसतरंगिणीकार ने 1/8से 1/4 रत्ती तक रोग एवं रोगी के बल एवं काल का विचार करके लेने का निर्देश किया है।

स्वर्ण भस्म गुण:-

  • रस कषाय, तिक्त, मधुर,।
  • गुण- स्निग्ध,
  • वीर्य – शीत
  • विपाक- मधुर
  • बृहंण एवं विषदोषहर।
  • बल्य, हृद्य, गुरु ,लेखन, उन्माद, व्रण हर।

स्वर्ण भस्म अनुपान:-

त्रिकटु चूर्ण + घृत से।

स्वर्ण भस्म का आमयिक प्रयोग:-

  • स्वर्ण भस्म मत्स्यपित के साथ दाह नाशक ,
  • भृंगराज स्वरस के साथ वृष्य,
  • दुग्ध के साथ बल्य,
  • पुनर्नवा के साथ नेत्र्य,
  • घृत के साथ रसायन,
  • वचा से स्मृतिवर्द्धक,
  • कुंकुम के साथ कान्ति वद्धक,
  • दूध के साथ राजयक्ष्मा व विषनाशक और
  • शुण्ठी, लवङ्ग एवं मरिच के अनुपात से सेवन करने पर त्रिदोषज उन्माद को नष्ट करती है।

सेवन काल में अपथ्य:-

बिल्व फल का सेवन हानिकर होता है।

शुद्ध स्वर्ण का विविध रूपों में प्रयोग :-

  • स्वर्ण को घिसकर,
  • वर्क बनाकर तथा
  • स्वर्ण लवण के रूप में भी प्रयोग किया जाता है।

घिसकर सेवन किए स्वर्ण का गुण :-

  • शुद्ध स्वर्ण को घिसकर सेवन करने पर शरीरगत अनेक प्रकार के विष प्रभाव नष्ट हो जाते है।
  • यह मधुररस, शीत वीर्य, नेत्रों के लिए लाभदायक, उत्तम गर्भस्थापक, पित्त रोग शामक तथा हृदय की दुर्बलता दूर करने में श्रेष्ठ औषधि है।
  • स्वर्ण को अन्य औषधियों के साथ मिलाकर प्रयोग करने पर विविध गुणों को प्रदान करता है।

तवक (वर्क) कल्पना :-

  • मुस्लिम एवं यूनानी चिकित्सा के सम्पर्क से (16वीं शताब्दी के बाद के रसग्रन्थों में) एक नई कल्पना तवक (वर्क) नाम से प्रसिद्ध हई।
  • तवक कल्पना सिर्फ सोना और चाँदी दो धातुओं से ही बनायी जाती थी।
  • जिसका उपयोग यूनानी चिकित्सा सोना, चांदी भस्म के बदले में करते थे।
  • जिसे 18वीं शताब्दी रसाचार्यों भी उद्धृत किया है।

स्वर्ण वर्क के पर्याय:-

सुवर्णमण्डल, मण्डल, स्वर्ण त्रक, सुवर्णा पटल, स्वर्णदल

स्वर्ण वर्क के गुण :-

  • शर्करा के साथ स्वर्ण वर्क का मर्दन करके भिन्न-भित्र रोगनाशक औषधियों के साथ प्रयोग करने पर उन-उन रोगों को नष्ट करता है।
  • स्वर्ण मण्डल (वर्क) आयुवर्द्धक, अग्निमांद्यहर, आक्षेपनाशक, नेव्य, उतम वीर्यवर्द्धक,
  • अम्लपित्तहर, हृदय, मधुर विपाक एवं शीतवीर्य होता है।

स्वर्ण लवण गुण :-

  • यह मधुर, कषाय एवं तिक्त रसयुक्त, वृष्य, त्रिदोषनाशक, जल में घुलनशील होता है।
  • यह रजावरोधनाशक, मधुमेह, पुरातन तिरंगा, अपस्मार, भयंकर श्वास रोग, नपुंसकता तथा उन्माद रोगों को नष्ट करता है।’

स्वर्ण लवण मात्रा :-

रोगी के बल एवं काल का विचार करके 1/50 रत्ती(2.5 mg) से 1/20 रत्ती (6mg) तक देना चाहिये।

स्वर्ण धारण करने से लाभ:-

  • स्वर्ण का धारण करने पर बृहस्पति ग्रह का दचष्प्रभाव नष्ट हो जाता है।
  • यह मंगलकारक, आयुष्य, कीर्ति, बुद्धिविद्यावर्द्धक एव स्वर्ण धारण से प्रज्ञा, वीर्य, उत्तम स्वर एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता है।

प्रमुख योग:-

  1. मकरध्वज रस
  2. सिध्मकरध्वज
  3. जयमंगल रस
  4. योगेन्द्र रस
  5. बसन्तमालती रस

5 replies on “Swarn ( स्वर्ण ) – Gold : Dhatu Vargha”

[…] सोने या चांदी के साथ धमन करने पर पारद इकिभूट हो जाए, जिसका क्षय न हो, देखने में ठोस हो, भारी एवं गुटिकर हो, अधिक समय तक चमकदार न हो आघात करने पर चुरा हो जाये, धमन करने पर द्रवित हो जाए। […]

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