स्वर्ण प्राशन (Swarn Prashan) का अर्थ है – स्वर्ण को चटाना। यह कर्म नवजात शिशु में किया जाता है। स्वर्ण को जल के साथ खूब घिसकर चटाया जाता है।
स्वर्ण बल्य, जीवनीय तथा ओजोवर्धक या रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला है परन्तु केवल एक दिन इसका प्रयोग करने से शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता नहीं बढ़ती। आचार्य काश्यप ने यहाँ तक छः मास स्वर्ण प्राशन कराने का विधान बतलाया है।
बालक के उत्पन्न होते ही जातकर्म संस्कार में स्वर्ण प्राशन (Swarn prashan) करना चाहिए व यह बालक के जन्म के बाद 3-4 दिन तक देने का विधान मिलता है। इस संस्कार में पानी में स्वर्ण को खूब घिसकर मधु व घृत अलग अलग मात्रा में दे। यह बुद्धि, अग्नि, बल, आयु कारक है, कल्याण कारक, पुण्य कारक, बृष्य, वर्णय, मेधा युक्त होता है, व व्याधियों से आक्रांत नहीं होता, 6 महीने में ही सुनने वाला हो जाता है, उसकी समरण शक्ति भी बड़ जाती है।
आचार्य सुश्रुत अनुसार-
अथ कुमारं शीताभिरद्भिराश्वास्य जातकर्मणि कृते मधुसर्पिरनन्तचूर्णमङ्गुल्याऽनामिकया लेहयेत्, ततो बलातैलेनाभ्यज्य क्षीरवृक्षकषायेण सर्वगन्धोदकेन वा रूप्य- हेमप्रतप्तेन वा, वारिणा स्नापयेदेनं कपित्थपत्रकषायेण वा कोष्णेन यथादोषं यथाविभवं च ।। (सु. शा. १०/१५)
- नालछेदन के पश्चात् ठंडे जल से बालक को आश्वासित करके, जातकर्म करने के पश्चात्, घी और मधु से मिश्रित थोड़ा सुवर्ण भस्म अनामिका से चटाएं।
- बला तैल से अभ्यंग कराके, क्षीरवृक्षों की त्वचा से बनाए हुए क्वाथ से अथवा सर्वगन्धों के जल से, अथवा चांदी या स्वर्ण को तपाकर उसे बुझा कर गरम किए गए जल से अथवा कैंथ के पत्तों के कषाय से यथाकाल, यथादोष और यथावैभव बालक को स्नान कराएं।
☑️ डॉ० अम्बिका दत्त शास्त्री के अनुसार यदि पुत्री हो तो बिना मन्त्र के चटाना चाहिए और पुत्र हो तो निम्नलिखित मन्त्रों से चटाना चाहिए।
प्राशन मन्त्र-
प्रते ददामि मधुनो घृतस्य वेदों सवित्रा प्रसूतं मद्योनाम्। आयुष्मान् गुप्तो देवदाभिः शतं जीव शरदो लोके अस्मिन्।
आचार्य वाग्भट-
प्रथमे दिवसे तस्मात्रिकालं मधुसर्पिणी। अनन्तामिश्रिते मन्त्रपाविते प्राशयेच्छिशुम्॥ द्वितीये लक्ष्मणा सिद्धं तृतीये च घृतं ततः । प्राङनिधिद्धस्तन्यास्य तत्याणितलसम्मितम् ॥ स्तन्य अनुपात द्वौ काली नवनीत प्रयोजयेत्। (अ.ह.उ. 1/12-14)
आचार्य वाग्भट ने सुश्रुत के कथन का ही अनुमोदन किया है अर्थात् शिशु को मन्त्र से पूरित कर जन्म के प्रथम दिन अनन्ता मिश्रित मधु व घृत को चटाना चाहिए तथा द्वितीय व तृतीय दिन लक्ष्मणा से सिद्ध घृत चटाना चाहिए तत्पश्चात् शिशु के पाणितल के प्रमाण के बराबर नवनीत को दिन में दो बार प्रयोग करना चाहिए।
अथर्ववेद-
सुवर्ण प्राशन कर्म को मेधाजनन कर्म के नाम से वर्णित किया है। पिता नवजात शिशु को सुवर्ण की सलाई से अथवा सुवर्ण की अंगूठी युक्त अनामिका अंगुली द्वारा शहद और घृत को किसी सुवर्ण आदि पात्र में असमानमात्रा में मिलाकर अथवा मात्र घृत को निम्नलिखित मन्त्र पढ़ता हुआ शिशु को चटाएं-
ॐ भूस्त्वयि दधामि। ॐ भूवस्त्वयि दधामि। ॐ स्वस्त्वयि दधामि। ॐ भूर्भवः स्वः सर्वं त्वयि दधामि।।
आचार्य चरक मतानुसार-
आचार्य चरक के अनुसार जन्म प्रथम दिन ही शिशु को मधु-घृत चटाकर माता का स्तनपान कराना चाहिए।
“मधु सर्पिणी मन्त्रोपमान्त्रिते यथाम्नायं प्रथमं प्राशितुं दद्यात्। स्तनमत उर्ध्वमेतेनैव विधिना दक्षिणं पातुं पुरस्तात् प्रयच्छेत्॥ (च.शा.8/46)
सर्वप्रथम शिशु को मन्त्रों से अभिमन्त्रित कर मधु व घृत को असमान मात्रा में चटाना चाहिए फिर इन्हीं मन्त्रों से अभिमन्त्रित करके माता के पहले दाहिने स्तन पर शिशु के मुख को लगाये या शिशु को स्तनपान करावें।
स्तनपान कराने के पूर्व मधु व घृत देने से शिशु को सम्पूर्ण आवश्यक आहार तत्व यथा ग्लूकोज, वसा आदि मिल जाते हैं।
अष्टाङ्ग संग्रह के अनुसार-
तस्मात् प्रथमेऽहन्यनन्तामिश्रिते मधुसर्पिषी मन्त्रपूते त्रिकालं प्राशयेत् । द्वितीये लक्ष्मणासिद्धं सर्पिस्तृतीयं च। ततः प्राङनिवारितस्तन्यस्य स्वपाणितलसम्मितं सर्पिद्विकालं दापयेदनन्तरं च स्तन्यमिष्टतः ।
नवजात शिशु को प्रथम दिन अनन्ता से मिश्रित मधु तथा घृत मन्त्र से अभिमन्त्रित करके तीन बार चटाना चाहिए व दूसरे तथा तीसरे दिन लक्ष्मणा से सिद्ध घृत चटाना चाहिए।
प्रथम तीन दिन जिस शिशु को स्तन्यपान नहीं कराया गया है। उस शिशु को उसके हथेली के बराबर घी की प्रातः व मध्यान्ह में दो चार चटावें तत्पश्चात् इच्छानुसार स्तनपान करावें।
Swarna prashan has been named as Gold drops Immunity booster and it is practiced by many Ayurvedic doctors all over India. It is a time tested natural remedy and people’s belief in natural remedies, helps it grow at a larger scale.
Also see, Lehan karma to know about Paediatric immunity boosting procedure.