उपरत्न वर्ग के पाषाणों में – रत्न की अपेक्षा काठिन्य, चमक और पारदर्शकता कम होती है। इसलिए इन्हें उपरत्न (Upratn) कहा जाता है। मूल्य भी कम होता है। संख्या :- आनन्दकन्दकार 9 उपरत्न माने आयुर्वेदप्रकाश 15 बृहद् योगतरंगिणीकार 4 रसतरंगिणीकार 6 प्रचलित परम्परा अनुसार रसतरंगिणीकार का मत अधिक प्रचलित है- वैक्रान्त सूर्यकान्त चन्द्रकान्त राजावर्त पैरोजक […]
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दर्शन शब्द की उत्पत्ति :- दृश् धातु में ल्युट् प्रत्यय लगाने पर ‘दर्शन‘ (Darshan) शब्द बनता है। शब्द अर्थ दृश् देखना ल्युट् भाव, कारण दर्शन देखने की क्रिया या भाव दृष्टा देखने वाला आयुर्वेद में ‘दृष्टा’ आत्मा को कहा है, क्योंकि वह ही साक्षी रूप में सब कार्य को देखता है। जैसे दृष्टा होते हुए […]