हारीत संहिता में नक्षत्र के अनुसार रोग की मर्यादा बताई है कि रोग अगर इस नक्षत्र में होता है तो वह कितने दिन तक चलेगा, यह ही आचार्य रत्न प्रभा ने अपनी चक्रदत्त की टीका में भी बताया है ( 1/292 ) व उसके साथ साथ अष्टांग संग्रह निदान (1/21-33 ) में भी यही वर्णन है उसके साथ साथ गोर करने वाली बात है कि दोनों ही आचार्यों ने हारीत के वचनों को बताया है। और यह ही वर्णन रावण की रावण संहिता में मिलता है, परन्तु यह चरक में नहीं मिलता और चिकित्सा की दृष्टि से काम आने वाला होने के कारण आज हम इसे बाटेंगे।
यहां बताई गई मर्यादा यह ही अगर उस नक्षत्र के कोनसा भाग में रोग होगा तो वह कितने दिन चलेगा।
नक्षत्र | रोग | प्रथम भाग की मर्यादा | द्वितीय भाग की मर्यादा | तृतीय भाग की मर्यादा |
कृतिका | तीव्र ज्वर, पित्तज रोग | 10 | 10 | 5 |
रोहिणी | 9 | 18 | 5 | |
मृगसिरा | 5 | 9 | 12 या मृत्यु | |
आर्द्रा | 15 | 12 | मृत्यु | |
पुनर्वसु | ज्वर | 45 | 7 | 25 |
पुष्य | 7 | 20 | 21 | |
आश्लेषा | ज्वर | 90 | मृत्यु | मृत्यु |
मघा | 7 | 10 | 20 | |
पूर्वा फाल्गुनी | 5 | 12 | 30 | |
उत्तरा फाल्गुनी | 14 | 7 | 9 | |
हस्त | 7 | 4 | 5 | |
चित्रा | ज्वर | मृत्यु | 90 | 13 |
स्वाती | 17 | 21 | मृत्यु | |
विशाखा | 48 | 12 | 12 | |
अनुराधा | 7 | 15 | 64 | |
ज्येष्ठा | 45 | 16 | 16 | |
मूल | 90 | 16 | 15 | |
पूर्व आषाढ | 15 | 15 | 3 | |
उत्तरा आषाढ | 12 | 12 | 20 | |
श्रवण | 7 | 20 | 16 | |
धनिष्ठा | 20 | 60 | 30 | |
पूर्वा भाद्रपद | 45 | 180 | 16 | |
उत्तरा भाद्रपद | 15 | 30 | 28 | |
रेवती | 8 | 16 | 3 | |
अश्विनी | 1 | 5 | 7 | |
भरणी | 7 | मृत्यु | 90 |
इस प्रकार भगवान आत्रेय ने शिष्य हारीत को नक्षत्रों की पीड़ा मर्यादा बताई ओर कहा इसका विचार करके वैद्य को चिकित्सा प्रक्रिया करनी चाहिए। मृत्यु योग्य की चिकित्सा न करे।
उपर्युक्त वर्णन से कुछ भिन्न अष्टांग संग्रह में वर्णन मिलता है वहा पर 3 भागो में विभाजित न करके केवल कम दिन व ज्यादा से ज्यादा दिन की मर्यादा बताया गया है परन्तु वहा भी हारीत के वचन कहे गए है व बहुत मिलते है।
One reply on “Max. Time of disease according to Nakshtra ( नक्षत्र व रोग मर्यादा )”
[…] विभिन्न भागों में रोग मर्यादा जानने के लिए यहां दबाए। […]