Categories
Ras Shastra

Vartloha ( वर्तलौह ) : Bronze – Dhatu Vargha

नाम :-

संस्कृतवर्तलौहम्
हिन्दीभरित
EnglishBronze

पर्याय :-

  • पञ्चलौह
  • वर्त
  • भर्त
  • पञ्चरस
  • वर्तुल

History :-

Advertisements
  • इसका वर्णन 13 वीं शताब्दी से मिलता है।
  • चिकित्सा में विशेष महत्व नहीं है।

परिचय :-

श्वेतवर्ण का धातु है।

शोधन :-

तैल तक्रादि से शोधित वर्तलौह (Vartloha) को तपा कर अजामूत्र (बकरी) में बुझाने से शुद्ध हो जाता है।

वर्तलौह मारण :-

शुद्ध गंधक और शुद्ध हरताल समान भाग में लेकर

अर्कक्षीर के साथ मर्दन कर पिष्टी बनायें

पिष्टी को वर्तलौह (Vartloha) के पत्रों पर लेपकर शराव सम्पुट कर गजपुट की अग्नि में पाक करें

पाँच पुट देने पर वर्तलौह की भस्म हो जाती है।

Advertisements

वर्तलौह के गुण :-

  • रस – कटु
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – अम्ल
  • कफ पित्त नाशक, रुचिवर्द्धक
  • त्वचा के लिए हितकर, कृमिघ्न,
  • नेत्र के लिए हितकर और मल शोधक होता है।
  • इस पात्र में पकाये गये सम्पूर्ण प्रकार के भोज्यपदार्थ (अम्ल को छोड़कर) जाठराग्नि को प्रदीप्त करने वाले अति पाचक एवं हितकर है।

मात्रा :-

1/2 से 1 रत्ती

अनुपान :-

मधु

Leave a Reply