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Ritucharya for Vasant Ritu (वसंत ऋतुचर्या) : Spring Season

वसंत ऋतु आदनकाल की ऋतु है। इस ऋतु में गर्मी पड़ना शुरू होती है और इस ऋतु में सूर्य की गर्मी की वजह से पहले का सिंचित कफ पिघलने लगा जाता है और इसी वजह से इस मौसम में कफ के रोग अधिक देखे जाते है जैसे कास, जुखाम आदि।

पर्याय:- पुष्प समय, सुरभि (शब्द रत्नावली) ऋतुराज

आदान काल में रूक्षता, रस और दौर्बल्य सारणी:- मध्यरूक्षता ,कषायरस एवं मध्यदौर्बल्य।

भारतीय मास:- चेत्र-वैशाख

अंग्रेजी महीना:- मार्च-अप्रैल

सूर्य बल:- पूर्णतर

चन्द्र बल:- क्षीणतर

रस की वृद्धि:- कषाय

प्राणी बल:- मध्य बल

प्रकुपित दोष:- कफ

वसंते निचितः श्लेष्मा दिनकृदभाभिरीरितः। कायाग्रिं बाधते रोगांस्ततः प्रकुरूते बहुन॥ तस्माद् वसन्ते कर्माणि
वमनादी न कारयेत्।

वसंत में पञ्चकर्म-विधान :-

हेमन्त काल में संचित हुआ कफ वसन्त काल के आने पर सूर्य की किरणों से पिघल कर (स्रोतों द्वारा शरीर में फैलकर) जठराग्नि को मन्द कर देता है और अनेक प्रकार के ज्वर
आदि रोगों को उत्पन्न करता है। इसलिए वसंत ऋतु में कफशोधनार्थ वमन आदि पंचकर्म करने चाहिए।।

गुर्वम्लस्निग्धमधुरं दिवास्वप्नं च वरज्यते।

वसंत ऋतु में भारी पदार्थ, अम्ल पदार्थ, स्निग्ध और मधुर पदार्थ का आहार नहीं ग्रहण करना चाहिए तथा
दिन में सोना भी नहीं चाहिये।

वसन्त ऋतु का आहार-विहार :-

व्यायाम उबटन लगाना, धूमपान, कवल धारण,
अंजन लगाना, गुनगुने जल से हाथ पैर धोना, या स्नान करना। चंदन और अगर का लेप लगाना चाहिए।
आहार में जॉ का आटा, शरभ ( हरिण भेद ) का मांस खरगोश, काला हिरन, लावा, बटेर, और सफेद तीतर का
मांस खाए। सिधू माध्विक का पान उत्तम है। कुसुमित वन उपवन का अनुभव करना चाहिए।

ऋतु लक्षण :-

दक्षिण दिशा से वायु बहती है। वृक्षों में नये पत्ते तथा नई छाल आती है। कोयल और भ्रमरों के आलाप व्याप्त हो जाते है।

हितकर आहार :-

कफ दोष के शमन या शोधनार्थ आहार।

आहार गुण :-

रस= तीक्ष्ण, कटु, कषाय
गुण= रुक्ष, लघु, उष्ण
शूक धान्य= पुराण यव, पुराण गोधूम।
शमी धान्य= मुंग, कुलत्थ, नीवर, कोद्रव (कोदो)
मांस वर्ग= जांगल पशु पक्षियों का मांस सेवन, विष्किर मांस (बिखेर कर खाने वाले), शरभ, खरगोश, हरिन, लावा,
बटेर सफ़द तीतर।
शाक वर्ग= तिक्त रस शाक, परवल पत्र, बैगन (वार्ताक), करेले के शाक।
मद्य वर्ग= मध्वासव, द्राक्षारिष्ट, सीधु, अरिष्ट इक्षुवर्ग= मधु (क्षौद्र)

हितकर विहार :-

कफदोष को शीघ्र निकालने के उपाय, शोधन कर्म- तीक्ष्ण वमन, निरुहन बस्ति आयात (दण्ड- बैठक), धूमपान।

व्यायाम :-

नियुद्ध (बाहु युद्ध), अध्व और शिलानिर्घात (पत्थर फैकना) रूपी व्यायाम करना चाहिये।

लेप :-

चन्दन लेप (चरक)
केसर, कस्तूरी, अगरु आदि उष्ण द्रव्य लेप (सुश्रुत)
कपूर, अगरु, चन्दन, कुंकुम- अनुलेप (वाग्भट)

अहितकर आहार :-

रस=अम्ल, मधुर, लवण
गुण=स्निग्ध, गुरु, (उदाहरण – घृतपान)
अहितकर विहार= दिवाशयन।

By Bhawna Tourani

Belonging to Ajmer, Rajasthan. Currently persuading B.A.M.S. 3rd Prof. From Gaur Brahman Ayurvedic College. My Strong point is in Ayurvedic Portion so will help you in that. While Studying Ayurveda for last 2 years i developed hobby about learning about Ayurvedic medicines, also good at reading.

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