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Vatadi dosha Ke Sthan / वातादि दोषों के स्थान

वात के स्थान (vaat ke sthan):-

वस्तिः पुरीषाधानं कटिः, सक्थिनी पादावस्थीनि च वातस्थानानि।
तत्रापि पक्वाशयो विशेषेण वातस्थानम्।।
(च० सू० 20/7)
तत्र समासेन वातः श्रोणि गुड संश्रयः ।।
( Su. Sa. Su 21/7)
पक्वाशयः कटिसक्यिश्रोत्रास्थिस्पर्शनेन्द्रियम्।
स्थानं वातस्य, तत्रापि पक्वाधान विशेषतः ।।
(As. Hr. Su. 12/1)

चरक संहितासुश्रुत संहिताअष्टांग हृदय
वस्तिगुदपक्वाशय
पुरिषाधानश्रोणिकटि
कटि(pelvic region)सक्थि
सक्थिनी(जँघा)श्रोत्र(कर्ण)
पाद(पैर)अस्थि
अस्थिनि(अस्थि)स्पर्शेन्दिय(त्वचा)
■पक्वाशय विशेष स्थान■पक्वाशय
पित्त का स्थान (Pitt ke sthan):-

स्वेदो रसो लसीका रुधिरमामाशयश्च पित्तस्थानानि। तत्राप्यामाशयो विशेषेण पित्तस्थानम्।।
(च० सू० 20/7)
तत् (श्रोणि गुद) उपर्यघो नाभेः पक्वाशयः ।
पक्वाशय मध्य पित्ताशय ।।
(Su. Sa. Su 21/5)
नाभिरामाशयः स्वेदो लसीका रुधिरं रसः।
दक स्पर्शन च पित्तस्य नाभिरत्र विशषतः।।
(As. Hr. Su. 12/1)

चरक संहितासुश्रुत संहिताअष्टांग हृदय
स्वेदश्रोणि और गुद के ऊपरनाभि
रस तथा नाभि के नीचे पक्वाशयआमाश्य
लसीका(lymph)पक्वाशय और आमाश्य के मध्य स्वेद
रक्तलसीका
आमाश्यरक्त
■आमाश्य विशेष स्थान रस
त्वचा
चक्षु
कफ के स्थान (Kaff ke sthan):-

उरः शिरो ग्रीवा पर्वाण्यामाशयो मेंदश्च श्लेष्मणः स्थानानि। तत्राप्यूरो विशेषेण श्लेष्मणः स्थानं।।
(च० सू 20/7)
आमाशयः श्लेष्मणः ।
(Su. Sa. Su 21/5)
उरः कण्ठः शिरः क्लोम पर्वाण्यामाशयो रसः ।
मेदो घ्राणं च जिह्वा च कफस्य सुतरामुरः।।
(As. Hr. Su 12/3)

चरक संहितासुश्रुत संहिताअष्टांग हृदय
उरःआमाश्यवक्ष
सिरकंठ(ग्रीवा)
ग्रीवाशिर
पर्व(joints)क्लोम (pores)
आमाश्यपर्व
मेदआमाश्य
■उर विशेष स्थानरस
मेद
नासिका
जिह्वा

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