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Vatsnabh / वत्सनाभ – Aconitum ferox Comparative review

वैज्ञानिक नाम :- Aconitum ferox
कुल नाम :- Ranunculaceae

पर्याय:-

हिंदी= बछनाग, मीठा विष, मीठा तेलिया
तैलगु= वसनूभि
बंगाली= काठ विष, मीठा विष
मराठी= वचनाग

Comparative review of Synonyms:-

Synonymsभाव प्रकाशDhanvantriराज
वत्सनाभ***
अमृत*
विष*
उग्र*
महौषहा*
गरल*
मरखा*
नाग*
स्तोकक*
प्रासहारक*

Classical Mentions :-

Bhavparkash :- धात्वादि वर्ग
Dhanvantri :- मिश्रकादि वर्ग
Raj :- पिप्पल्यादि वर्ग

बाह्य – स्वरूप:

क्षुप बहुवर्षीय।
मूल- कन्द युक्त 1-3 इंच लम्बी, एक इंच तक मोटी गाजर की आकृति के समान, बाह्य रंग घूसर और अन्तः वर्ण श्वेताभ स्निग्ध तथा कुछ चमकीला
कांड – सीधा, सरल
पत्रक – सिंदुवार के समान परस्पर अभिमुख
पुष्प – रक्ताभ, श्वेत तथा पीले
फल – गोल चिकने

वत्सनाभ स्वरूप :-

सिंधु वन के पत्र के समान जिसके पत्र हो, बछड़े की नाभि के समान आकृति वाला,जिसके आस – पास अन्य किसी वृक्ष की उत्पति न हो। (Dhanvantri Nighamtu)

Vatsnabh

Chemical constituents:

Aconite, pseudo aconitin.

गुण – कर्म:

विधिपूर्वक शुद्ध किया; वत्सनाभ प्राणदाई रसायन, योगवाही, त्रिदोषहर, बृंहण तथा वीर्यवर्धक है।

Comparative review Guna:-

Gunaराज
मधुर*
उष्ण*
वातकफनाशक*
पित्तवर्धक*

Habitat:

Vatsnabh is found in Himalayas, extending from Sikkim to north-western Himalayas; 10,000-15,000 feet in height.

औषधीय प्रयोग:

  • कास श्वास= ताम्बूल पत्र पर 65-125 मि.ग्राम वत्सनाभ(Vatsnabh) डालकर, पकाए हुए अलसी के तेल को ज़रा सा चुपड़ कर सुबह शाम खिलाने से खांसी और दमे में लाभ मिलता है।
  • टॉन्सिल= वत्सनाभ को पीसकर गले पर लेप करने से टॉन्सिल आदि गले के रोगों में लाभ मिलता है।
  • मधुमेह= 10 ग्राम शुद्ध वत्सनाभ में 70 ग्राम अखरोट मिलाकर उसमें से 65 मिलीग्राम -125 मिलीग्राम तक की मात्रा देने से भयातिसार, मधुमेह, पक्षाघात, और कुष्ठ रोग का नाश होता है। यह दिन में तीन बार दें।
  • मूत्रकृच्छ= शुद्ध वत्सनाभ को आधे चावल भर की मात्रा में देने से मूत्रकृच्छ मिटता है।
  • मूत्राघात= जिसको बार बार मूत्र की शंका न रुकती हो उसको आधे चावल के वत्सनाभ का सेवन करना चाहिए। गृध्रसी, गठिया व धनुर्वात में भी इसको अति अल्प मात्रा में देने से लाभ होता है।
  • नाड़ी दौर्बल्यता= नाड़ी दुर्बलता में वत्सनाभ की 15-16 मिलीग्राम की मात्रा का सेवन करने से नाड़ी की गति सामान्य हो जाती है।
Vatsnabh
वत्सनाभ मूल
ज्वर =
  1. दालचीनी, गंधक, सुहागा और अन्य सुगंधित द्रव्यों के साथ आधा भाग चावल की मात्रा में देने से बार – बार आने वाला ज्वर छूट जाता है।
  2. वत्सनाभ(Vatsnabh) की अति अल्प मात्रा न्यूमोनिया में लाभकर है।
  3. कुनैन, कपूर और शुद्ध वत्सनाभ को समान भाग लेकर 65 मिलीग्राम की मात्रा में सुबह शाम देने से अभिष्यंद युक्त ज्वर मिटता है।
  • पीड़ा= वत्सनाभ का तेल सर्वांग की पीड़ा को मिटाता है। गठिया व छोटे जोड़ों की सूजन पर इसका लेप करना चाहिए।
  • जौ कूट किए हुए 25 ग्राम वत्सनाभ को अलसी के तेल में पकाकर इस तेल की मालिश करने से गठिया और सर्वांग की पीड़ा मिटती है।
  • कुष्ठ रोग= तीन मास तक इसके नियमित सेवन से कुष्ठ रोग समूल नष्ट हो जाता है।
  • रसायन= वत्सनाभ में समान भाग सुहागा मिलाकर 15-16 मिलीग्राम की मात्रा में खाने से मनुष्य दीर्घायु, तेजवान, जोशीला होता है। उसकी हृदय की गति व्यवस्थित रहती है। बुखार, मंदाग्नि, गठिया,
  • फोड़े= फुंसी आदि बीमारियों से बचा रहता है।
  • बिच्छू का विष= वत्सनाभ(Vatsnabh) को घिसकर दंशित स्थान पर लेप करने से बिच्छू का विष उतर जाता है।

Comparative review Karma:-

Karmaराज
सन्निपातज रोग*
संतरपनकारक*

दोष:

वत्सनाभ(Vatsnabh) का अशुद्ध रूप विष है। इसकी अधिक मात्रा लेने से मृत्यु तक हो सकती है।

निवारण:

  1. वमन के बाद गाय के घी में सुहागा मिलाकर पिलाएं या अर्जुन की छाल का चूर्ण गोघृत या मधु के साथ दें।
  2. कस्तूरी पानी में घिसकर चटाएं।

तदेव युक्तियुक्तं तु प्राणदायि रसायनम्।

योगवाहि, त्रिदोषघ्नं बृंहणं वीर्यवर्धनम्।। (भावप्रकाश)

वत्सनाभ को युक्ति पूर्वक उपयोग करने से यह प्राण दायक व रसायन होता है। यह योहवाही व त्रिदोष हर, बृंहण व वीर्यवर्धक है।

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