AFTER READING 20 TYPES OF COUGH, READ PRAMEH.
पूर्वकासक्षयः कासो रक्तकासश्च चिप्पिका।
वातकासः पैत्तकासः क्षतकासश्च शुक्तिका॥
आमकासः पाण्डुकास: कृष्णकासस्तथैव च।
श्लेष्मकासो दधिकासः कासश्च श्लेष्मजिह्वकः॥
कण्ठजिह्वोपजिह्वौ च हन्ति जिह्वककासकः।
ऊर्ध्वकासः श्लेष्मभङ्गः श्लेष्मकुष्ठश्च संज्ञितः।
इत्येते विंशतिः कासा: वक्ष्यामि विधिवत्क्रमात्॥ (माधव निदान)
कास भेद | लक्षण | चिकित्सा |
पूर्व कास | जन्म प्रभृति वीर्या, सतत कास पीडन, सुबह और अन्नरॉज्ञा होने पर कास होना | कासकर्तरीरस |
क्षय कास | पंडूता, शुक्श देह, हिक्का, देह शोष, शूल, कंप, ज्वर, अग्नि मंद, शुक्र विनाश, अरोचक, कफ निर्मित पीड़ा युक्त मास की गाठ, बार-बार थूकना, कास, तव्चा की विवर्णता | |
रक्त कास | रक्त युक्त कफ स्त्राव, हृदय दाह, कांति हीन, उष्णता, अति रूक्षता, बल क्षय | वृषादि कषाय |
चिप्पिका | मुख दुर्गन्ध, कांति हीन, अरुचि, देह गुरूता, कुष्ठ, अग्नि मंद | सर्वाङ्गसुंदर रस, मरिच को हरीतकि के जल के साथ, मंडुर प्रयोग |
वात कास | शूल शंख, शिर, उदर, पार्श्व, मुख शुष्कता, क्षीण बल ओज, स्वर, निरंतर वेग के साथ खांसी आना, कफ नहीं निगल पाते | रुद्र प्रपटी रस |
पित्त कास | उरो विदाह, ज्वर, मुख शोष, मुख का तिक्त रस, अधिक प्यास, पित्त के साथ वमन, पांडु, शरीर में जलन होना, शिर का कंप होना, भ्रम, स्वेद, क्षीणता | विजय भैरव रस, त्रिनेत्र रस |
क्षत कास | गुरूता, अति व्ययव्य, चोट लगने की वजह से, पहले सुखी खांसी फिर बाद में रक्त आने लगता है, कंठ , chest में अत्यंत पीड़ा, सुई चुबने के समान पीड़ा, स्वर भेद, ज्वर, श्वास, पर्व भेद, तृष्णा, मुख स्वाद तिक्त होना | तालेश्वर रस |
शुक्तिका | शुक्ति कास, कंठ – श्लेष्म संस्थिति, अग्नि मंद, शरीर में दर्द | सूर्य रस, रस परपटी |
आम कास | अति शीत, शिर शूल, क्षीणता, तृष्णा | चंद्रामृत रस |
पांडु कास | शरीर में पांडु, पंडुर शाया, रात को शेल्सिम् कफ बढ़ता है व दिन में कफ का नाश होता है | कास संहार भैरव रस |
कृष्ण कास | रात को कफ का प्रकोप होता है, नींद नहीं आती, रात को दुख होता है | रसेन्द्र गुटिका |
श्लेशम कास | कंठ हमेशा रोग युक्त होता है, दिन और रात दोनों में कास का प्रयोग होता है | बोलबद्ध रस, कास हर चूर्ण |
दधी | दिन में नींद आती है, रात को कफ का प्रकोप होता है | सविधुन्न रस |
श्लेषम जिह्वा | शरीर पर कंडू, तिक्त श्लेष्म, दर्द के साथ बोलना, कर्ण में सुनने में कठिनाई | शिलतालक रस, वीज्यांती क्वाथ, त्रिशूली क्वाथ |
कंठ जिह्वा | जिह्वा पर गरला, कंठ पर श्लेष्मा, वमन, मूर्च्छा, परिभ्रम, निद्रा भंग | भृंगराज गुटिका, दंति धूम पान |
उप जिह्वा | जिह्वा के ऊपर व जिह्वा के नीचे अन्न क्षीणता, रात्रि में कफ का प्रकोप होता है | नीलकंठ रस |
जिह्वा कास | कस्केसरिवतिका | |
उर्ध्व कास | वायु व कफ का प्रकोप होता है | अंकोलादी चूर्ण |
श्लेष्मभङ्ग | कंठ में श्लेष्म से भरा रहना, आखे पीली होना, कान से कम सुनाई देना, भ्रम, मूर्च्छा, थकावट | स्वर्ण भूपति रस, निदिग्धिकादि चूर्ण |
श्लेष्मकचष्ठ | अंग दर्द, अनाकर, पांडु, शरीर पर खुजली, अंग वीकयता | सस्याग्नि रस, क्षुद्रादि लेह, महा क्षुद्रादि लेह, |
कपालजिह्विका (असाध्य ) | शूल, ज्वर, रोम हर्ष, प्रति श्वास, पांडु नेत्र | — |
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