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Agad Tantra Syllabus

Scorpions | वृश्चिक विष : उत्पत्ति, काटने के लक्षण, चिकित्सा

आयुर्वेद अनुसार वृश्चिक विष (Scorpions) को कीट विष के अंतर्गत माना है। आचार्य सुश्रुत ने इसे पित्त दोष प्रकोपक कहा है।

वृश्चिक की उत्पत्ति –

“त्रिविधा वृश्चिकाः प्रोक्ता मन्दमध्यमहाविषाः ।।” (सु.क.8/५६)

बिच्छू तीन प्रकार के कहे गए है-

  1. मन्द विष वृश्चिक
  2. मध्य विष वृश्चिक
  3. महा विष वृश्चिक

गोशकृत्कोथजा मन्दा मध्याः काष्ठेष्टिकोद्भवाः। सर्पकोथोद्भवास्तीक्ष्णा ये चान्ये विषसंभवाः ॥” (सु.क. ८/५७)

  • मन्द विष – गाय के गोबर के सड़ने से उत्पन्न होने वाले।
  • मध्य विष – काठ व ईंट के सड़ने से उत्पन्न होने वाले।
  • तीव्र विष – सर्प के मृत शरीर से उत्पन्न होने वाले।

वृश्चिक संख्या :-

  1. मन्द विष- 12 प्रकार
  2. मध्य विष – 3 प्रकार
  3. तीव्र विष – 15 प्रकार

1. मन्द विष वृश्चिक –

  • नाम:
    • 1. कृष्ण
    • 2. श्याव
    • 3. कर्बुर
    • 4. पाण्डुवर्ण
    • 5. गोमूत्राभ
    • 6. कर्कश
    • 7. मेचक
    • 8. पीत
    • 9. धूम्रवर्ण
    • 10. रोमश
    • 11. शाद्वलाभ (हरी दूब के वर्ण का)
    • 12. लाल वृश्चिक ।
  • उदर वर्ण:
    • श्वेत।
  • पुच्छ पर्व:
    • बहुपर्वान्ति (इनकी पूंछ पर बहुत से जोड़ होते हैं।)
  • दंश लक्षण:
    • हाथ, पैर आदि में दंश होने पर वेदना उर्ध्वगामी।
    • कम्पन, गात्रस्तम्भ
    • काले रक्त की प्रवृति होती हैं।
    • दाह, स्वेद
    • दंशस्थान पर शोथ, ज्वर
  • चित्किसा:
    • कोल्हू के ताजे तैल से परिषेक करें।
    • विदारीगण सिद्ध तैल से सुहाता हुआ गरम सेक करें।
    • शिरीषादि विषहर द्रव्यों से बनाई उत्कारिका से स्वेदन करें।
    • विषघ्न द्रव्यों से उपनाह बांधे।
    • दालचीनी, इलायची, तेजपत्ता, नागकेशर से मिले हुए गुड़ के शर्बत को बहुत ठण्डा करके पीने को दें।
    • गुड़वाले दूध को ठण्डा करके पीने के लिए देना चाहिए।
    • मोर, मुर्गों के पंख, सेंधानमक, तेल, घी इनका धुंआ बिच्छु के विष को शीघ्र नष्ट करता है।

2. मध्य विष वृश्चिक –

  • नाम:
    • लाल
    • पीत
    • कपिल वर्ण।
  • उदर वर्ण:
    • कृष्ण वर्ण
  • पुच्छपर्व:
    • त्रिपर्व
  • दंश लक्षण:
    • जिह्वा में शोफ
    • भोजन का अवरोध
    • तीव्र मूर्च्छा

3. तीक्ष्ण विष वृश्चिक –

  • नाम:
    • शवेत
    • चित्र
    • श्यामल
    • रक्तशवेत
    • रक्तोदर
    • नीलोदर
    • पीतरक्त
    • नीलपीत
    • रक्तनील
    • निलश्वेत
    • रक्तबभ्रु
    • पूंछ पर्वरहित
    • एक पर्व
    • दो पर्व।
  • उदर वर्ण:
  • पुच्छपर्व:
    • अपर्वा
    • द्विपर्वा
  • दंश लक्षण:
    • सर्पविष वेग लक्षण
    • छालों की उत्तपति
    • भ्रान्ति
    • दाह, ज्वर
    • रोमकूपों या नाक, मुख से काले वर्ण का रक्त वेग से निकलने लगता है।
    • अतः रोग शीघ्र ही प्राण त्याग देता है।

मध्य व तीक्ष्ण वृश्चिक दष्ट चिकित्सा:-

  • दंश के चारों ओर स्वेदन करके तथा उस स्थान पर प्रच्छान लगाकर – हल्दी, सेंधानमक तथा उस स्थान पर त्रिकटु, शिरीष के फल, पुष्पों का चूर्ण कर प्रतिसारण या घर्षण कर रगड़े ।
  • तुलसी के पत्तों को बिजौरा नींबू के रस तथा गोमूत्र सों पीसकर लेप करें।
  • स्वेदन के लिए सूखे गोबर से सुहाता हुआ गर्म सेक दें।
  • पीने के लिए घी को मधु के साथ या प्रचुर मात्रा में शर्करा मिश्रित दूध दें।

आचार्य चरक अनुसार:-

बिच्छू के काटने का लक्षण:

Sting of scorpions
Sting of a Scorpion

दहत्यग्निरिवादौ तु भिनत्तीवोध् र्वमाशु च । वृश्चिकस्य विषं याति दंशे पश्चातु तिष्ठति ।।” (च.चि. 23/151)

  • दूषीविष बिच्छू जिस स्थान में काटता है उस स्थान में सर्वप्रथम -> अग्नि से जले हुए के समान दाह उत्पन्न होता है। बाद मे भेदनवत् पीढा होती है। विष का वेग शीघ्र ही ऊपर की ओर चढ़ जाता है।
  • और चिकित्सा आदि के द्वारा विष का वेग नष्ट हो जाता है फिर भी जिस स्थान में बिच्छु काटता है उस स्थान से विष का वेग कुछ समय के लिए बना रहता है।

असाध्य बिच्छू के काटने का लक्षण:

दष्टोऽसाध्यस्तु हृगघ्राणरसनोपहतो नरः। मांंसैः पतद्भिरत्यर्थं वेदनार्तो जहात्यसून् ।।” (च.चि-23/152)

  • असाध्य प्राणहर बिच्छु यदि मनुष्य को काटता है तो मनुष्य का हृदय, नासिका, जीभ अपने- अपने कार्य को नहीं कर पाते हैं।
  • जिस स्थान में बिच्छू काटता है उस स्थान से मांस कट-कट कर गिरने लगता है।
  • कटे हुए स्थान में इतनी अधिक वेदना होती है, जिसके कारण मनुष्य के प्राण नष्ट हो जाते हैं।

वृश्चिक विष की चिकित्सा :

कपोतविण्मातुलुङ्ग शिरीषकुमुमाद्रसः। शङि्खन्यार्क पयः शुण्ठी करन्जो मधु वार्श्र्चिके (च चि -23/208)

  • बिच्छू के काटने पर कबूतर का बीट, बिजौरा नींबू, शिरीष के फूल का रस, शंखिनी, मदार का दूध, सोंठ, करंज की गुद्दी इनकी समान भाग चूर्ण को मधु मिलाकर काटे हुये स्थान पर लेप करने से बीछू का विष दूर होता है।

आचार्य वाग्भट्ट के अनुसार सामान्य चिकित्सा:- (अ.हृ.उ.37/42)

  • सब चिकित्सा निष्फल होने पर दंश स्थान पर वत्सनाभ विष का लेप करें।
  • हाथी के पुरीष पर उत्पन्न मशरूम और गन्धतृण बहुबार के जल से पीसकर गुटिका बनाये। इसके लेप से बिच्छू विष नष्ट होता है।
  • मनुष्य के बाल, पीली सरसों और पुराना गुड़ का धूम देेना सब प्रकार के विषैले दंश की श्रेष्ठ औषधि है, ऐसा आचार्य काश्यप ने कहा है।

Scorpions

Scorpions
Hottentotta tamulus, the Indian red scorpion.

Nomenclature:-

KingdomAnimalia
PhylumArthropoda
ClassArachnida
OrderScorpiones
  • Scorpions are poisonous insects with a crab like body with 8 legs.
  • It carries:
    • a cephalothorax
    • an abdomen and a 6 segmented tail which terminates in a bulbous enlargement called telson.
  • The telson contains the stinger and venom apparatus.
  • It has 2 claws which help to grasp its prey.
  • Scorpions feed at night and remain hidden during the day in crevices, burrows or under wood, rocks or loose barks.
  • Scorpions sting human being only when disturbed.
  • Around 100 species of scorpions are found in India.
Body Parts of scorpions
Body Parts of a Scorpion

Physical Properties :-

  • The Venom is clear, colourless, proteinous toxalbumin.
  • The venom usually carries hemotoxic and neurotoxic actions.

Action:-

  • It is a potent autonomic stimulator resulting in the release of massive amounts of catecholamines from the adrenal glands and nerves ending into the circulation.
  • It also has some direct effect on myocardium .
  • Due to depletion of catecholamines hypotension, bradycardia occur.

Sign & Symptoms:-

  • Local irritation is characterised by redness, pain radiating from the site.
  • The victim may not be able to localise the pain due to its radiation along the dermatomes involves.
  • There may be headache; nausea, chest discomfort, profuse perspiration , hypersalivation, cold extremities and sometimes priapism.
  • Hypertension may occur within 6 hours of sting while pulmonary oedema takes longer time.
  • Neurologic manifestations may persist for upto 1 week or so.
  • Haemolytic factors can mimic viperine snake bite .
  • Diagnosis is by locating only one deep punctured wound.
  • Neurotoxic factor can mimic strychnine poisoning victim present with nausea, vomiting, restlessness, fever followed by convulsion; paraslysis, coma and death.
  • While mortality in adults is negligible, children may sccumble from pulmonary oedema.

Treatment of Scorpion bite:-

  • The limb is immobilized and a pressure bandage is applied near the site of sting.
  • Local anaesthetics can also be helpful to reduce the pain.
  • Stings of non lethal species require at moet ice packs, analgesics or antihistamines.
  • Intravenous administration of calcium gluconate may reduce swelling.
  • Hypertension and pulmonary edema respond to nifedipine, nitroprusside, hydralazine or prazosine and bradyarrhythmias can be controlled with atropine.
  • Giving barbiturates can control the convulsions.
  • Simultaneously, correction of fluid loss due to sweating , vomiting ,needs to be taken care of by administring intravenous fluids.

Post – Mortem Findings :-

  • Affected site is swollen, sting may not be found at the site.
  • Pulmonary edema and myocardial infarction may be seen.

Medico Legal Aspects :-

  • Poisoning is usually accidental.