तैल वर्ग
आयुर्वेद में अन्य द्रव्यों की तरह तैलप्रधान वानस्पति के द्रव्यों के तैल का भी विशेष उपयोग बताया गया है। व्याधिनाशक अनेक प्रकार के सिद्ध तैल तैयार किये जाते है तथा दैनिक जीवन में आहार उपयोगी तेल का आहार मे प्रयोग भी किया जाता है। प्रयोग में लाये जानेवाले तेल के ज्ञान की आवश्यकता का दृष्टिगत रखते हुये तेलों को एक वर्ग में रखा गया है।
तेल वर्ग | गुण व कर्म |
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तिल तेल | तिल का तेल भारी बलदायक व कोमल करनेवाला, स्थिरता कारक दस्तावर विशद सर तथा पाऊ में मधुर । करेला कड़वा वात तथा कफनाशक उष्णीय शीतल स्पर्श वाला मिल प्रदाता। बुद्धिदायक व्रण प्रमेह कर्णरोग योनिशूल मरुत करृलनाशक मर्दन करने के त्वचा केश तथा नेत्रों के लिये हितकारी और खाने से त्वचा केश तथ वोके लिये हानिकारक है। अग्नि से जला स्थान से हटा मायल आदि पर बस्तिकर्म में ,पीने में ,कर्ण व नेत्रों में डालने से रोकने में और अवगाहन में तिल का तेल उत्तम है। |
सरसों | सरसों का तेल अग्नि प्रदीपक बीर्ग में तष पित्त तथा रुधिर को दूषित करने वाले और कफ मेद वात मरतक के रोग कर्ण रोग खुजली व कृमिनाशक है। काली तथा लाल राईक लगी । यही गुण है। |
तुवरी | तेल के गुण तुवरी का तैल गर्म हल्का जरीत अग्निकारक व विष कृमि रक्त विकार खुजली कोढ रोग मे दीप सूजन को नष्ट करनेवाला है। |
अलसी | तेल के गुण अलसी का तेल अग्नि गुण का रिमाका व पित्त को बढ़ाने वाले पाक में चरपरा बलवर्धक वातनाशक हानिकारक मधुर रसयुक्त ग्राही चर्म दोषनाशक होता है पान सदन में वस्तिकर्म में नासा व कर्ण में डालने के लिये वात की शाति तथा अनुपान के लिये अलसी का तेल प्रयोग में लाना चाहिये। |
कुसुम | कुसुम का तेल भारी विदाही नेत्रों के लिये हानिकारक बलवर्धक रक्तपित व कथकारक है। |
पोस्त | पोस्त के बीजों का तेल पुष्प बलव्ध भारी,वात तथा कफनाशक शीतल पाक व रस में मधुर है। |
एरण्ड | तेल तीक्ष्ण गर्म त्वचा के लिये हितकारी बुद्धि कांति व बन्दूक दुर्गत पर में कद दस्तावर विषमज्वर हदयरोग उदो रा रक्तविकार सूजन आम और बीपी आदि का तक है। सर्व तेलों के गुण जो तरल पदार्थ से मवा उस पदाथो के गुणो को वह धारण करता है। |
3 replies on “Tail Vargha ( तैल वर्ग )”
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[…] तिल तेल, मधु, गोघृत, वसा, मज्जा, गृहधूम, त्रिफला की रसक्रिया – इनको एकत्र मथानी से मथकर पीने से उरःक्षत और रक्तष्टीवन में लाभ। […]