अर्धनारीश्वर रस प्रथम :-
गौरी शिला हिंगुलमभ्रकं च तारं च तानं च बलिं च सूतम्। विषं च नेपालमदोत्कटं च वल्लीफलं कर्परिमैलतुत्थम्। सर्वं च चूर्णं शिखिमत्स्यपित्ते सम्भावयेत्त्वग्निभवेन्द्रवारिणा। हलाहलादन्ति च मज्जतोयैः दिनेन मधू परिभावशोषयेत्। अजोत्तरस्तस्य पयोमिलित्वा यामार्धवामाङ्गज्वरं निहन्यात्। अर्धं शरीरं वपुभव्यमन्ये महाद्भुतं वैद्यविवादकाले। तथामजो दक्षिणदुग्धमिश्रे उभे च पक्षागतये ज्वरं हरेत्। कथित ह्राजनाथेन रहस्यं चित्रकारिणा॥ अर्धनारीश्वरो नाम रसः सद्यो रसायनः॥ ( बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् )
द्रव्य :- गौरी, मन: शिला, हिंगुल, अभ्रक, तार, ताम्र, गंधक, पारद, वत्सनाभ, नेपाल, मदोत्कट, कूष्मांड, कर्परि, एलवालुक, तुत्थ, मयुर पित्त, मत्स्य पित्त, चित्रक, इंद्रवारुणी, हलाहल ( विष ), दंती
विधि :- सभी द्रव्यों को एक एक दिन अलग अलग मर्दन करके मिश्रित करदे और उसके बाद में उपयोग में लेे
उपयोग विधि :- अजा दूध मिलाकर नस्य उपयोग करे या अकेले उपयोग
उपयोग :- वाम गत ज्वर, अर्ध शरीर या देह में अन्य स्थान जगत ज्वर, महान ज्वर, अजा दूध के साथ दाए, उभय, पक्ष गतवजवार
अर्धनारीश्वर रस द्वितीय :-
रसगन्धामृतं चैव नवं शुद्धं च टङ्कणम्। मर्दयेत्खरुवमध्ये तु यावत्स्यात्कज्जलप्रभम्।। नकुलारिमुखे क्षिप्त्वा मृदा संवेष्टयेद्वहिः । स्थापयेन्मृन्मये पात्रे ऊर्ध्वाधो लवणं क्षिपेत्॥ भाण्डवक्रं निरुध्याथ चतुर्यामं दृढाग्निना। स्वाङ्गशैत्यं समुध्दृत्य खल्वे कृत्वा तु कज्जलीम्॥ गुञ्जामात्रं प्रदातव्यं नस्यकर्मणि योजयेत्। वामभागे ज्वरं हन्ति तत्क्षणाल्लोककौतुकम्॥ कुर्याद्दक्षिणभागेन चारोग्यं निश्चितं भवेत्। गोप्यागोप्यतमं प्रोक्तं गोपनीयं प्रयत्नतः। अर्धनारीश्वर नाम रसोऽयं कथितो भुवि॥ ( बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् )
द्रव्य :- पारद, गंधक, वत्सनाभ, टंकण
विधि :- इनके मिश्रण का खरल में कज्जल प्रभा (कज्जली वर्ण-आभा) होने तक मर्दन करते हैं। इसको नकुलारि मुख (नागमूषा) में भरकर, मृदा से संवेष्टित (कपड़ा मिट्टी) करके शुष्क होने देते हैं। तत्पश्चात् मृण्मय (मृत्तिका) पात्र स्थापित (रख) कर, उध्धवधि लवण (ऊपर-नीचे नमक) पूरित करते हैं; इस उपकरण (भाण्ड) को वक्र निरुद्ध करके, चार याम पर्यन्त तीव्राग्नि (दृढ़ाग्नि) पर पाक करते हैं। इस उपकरण को स्वाङ्गशीत होने पर, अन्तस्थ पक्व औषध द्रव्य का बहिर्गमन करके, उसको कज्जली के रूप में मर्दन कर लेते हैं।
मात्रा :- एक गूंजा (125 mg )
विधि :- नस्य कर्म के प्रयोग
उपयोग :- वाम नास्य से ज्वर का शमन होता है व दाह नस्य से आरोग्य प्रदान होता है।