निरुक्ति:-
“वलीपलितखालित्य कार्श्याबल्यजरामयान्। निवार्य दधते देहं नृणां तद्धातवो मताः।।” (आ. प्र. 3/2)
अर्थात जिसके सेवन से
- शरीर में बली (झुर्रियां)
- पलित (बालों का सफेद होना),
- खालित्य (गंजापन),
- कृशता,
- निर्बलता,
- वृद्धावस्था और रोग नष्ट हो अथवा
- इन रोगों का नाश करके आरोग्यपूर्वक शरीर को धारण करें, उसे धातु कहते हैं।
Nowadays , लौह एवं धातु दोनों शब्द एक दूसरे के पर्याय बन गए हैं।
- लौह शब्द ‘लुह्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है खींचकर निकालना ।
अर्थात दूसरा अर्थ है कि जो शरीर के दोषों एवं रोगों को खींचकर बाहर निकाले उसे लौह कहते हैं।
आयुर्वेदिक गुणों के अतिरिक्त धातुओं में निम्न विशेषताएं। होती हैं:-
- धातुओं में चमकीली सतह होती है।
- धातुओं का विशिष्ट गुरुत्व अधिक होता है।
- धातुएँ ताप व विद्युत के सुचालक होते हैं।
- धातुओं को ठोकने पीटने पर फैलकर इनके तार बनाये जा सकते हैं।
- धातुओं को ऑक्सीजन की उपस्थिति में जलाने से निर्मित द्रव्य को पानी में घोलने पर क्षार स्वभावी द्रव्य बन जाते हैं।
- धातुएँ रासायनिक विधि के बिना मद्यसार, तैल, ग्लिसरीन इत्यादि में नहीं घुलते है।
धातुओं का इतिहास एवं वर्गीकरण :-
अथर्वेद :- स्वर्ण को ‘हरित’ :: सत्व चांदी को ‘रजत’ ::रज लौह को ‘श्याममयलौह ‘:: तम ताम्र को ‘लोहितमयलौह’ । |
यजुर्वेद :- 6 धातुओं का उल्लेख १.स्वर्ण २.रजत ३. ताम्र ४.लौह ५.सीसा ६.त्रपु(वंग) |
याज्ञवल्क्य स्मृति :- 6 धातुओं को माना है |
मनुस्मृति :- 8 धातुओं का वर्णन १ .स्वर्ण २. रजत ३.ताम्र ४.लौह ५.कांस्य ६.रीति ७.नाग ८.वंग। |
रसार्णव:- 6 धातु १.स्वर्ण २.रजत ३.ताम्र ४.तीक्ष्णलौह ५.वंग ६.सीस |
गोरक्षसंहिता :- ६ लौहोंं १.स्वर्ण २.रजत ३.ताम्र ४.तीक्ष्ण लौह ५.नाग ६.वंग का उनके रंगों के साथ वर्णन किया है। |
आनंदकन्दकार :- 12लोहों १.सुुवर्ण २.रजत ३.ताम्र ४.कांतलौह ५.तीक्ष्ण्लौह ६.मुंण्ड लोह ७.अभ्र्कसत्व ८.नाग ९.वंग १०.कांस्य ११.पितल १२.वर्तलौह |
आचार्यशार्ंग्धरमिश्र:- ७ धातु १.स्वर्ण २.रजत ३.पितल ४.ताम्र ५.नाग ६.वंग ७.तीक्ष्ण लौह |
रसोपनिषदकार:- 7 धातु १.नाग २.वंग ३.ताम्र ४.सुवर्ण ५.रजत ६.तीक्ष्ण ७.अभ्र्कसत्व |
भावप्रकाश:- 7 धातु १.सुवर्ण २.रजत ३.ताम्र ४.लौह ५.सीस ६.वंग ७.यशद |
आयुर्वेदवेदप्रकाश एवं रसतरंगिणी:- १.स्वर्ण २.रजत ३.ताम्र ४.लौह ५.नाग ६.वंग ७.यशद |
लौह धातुओं की औषधीय उपयोगिता :
धातुओं का शोधन मारण करके भस्म रूप में प्रयोग होता है।
सभी प्रकार के भस्मीभूत लौह पारद या शारीरिक रस में शीघ्र मिल जाते हैं।
इनके युक्तिपूर्वक प्रयोग से बड़े-बड़े रोग दूर हो जाते हैं और लम्बे समय तक सेवन करने पर शरीर को सशक्त बनाकर रोगोत्पत्ति एवं वृद्धावस्था को रोक देते हैं।
लौह वर्गीकरण-
(1)शुद्धलौह:-
- जिस धातु में कोई अन्य द्रव्य आदि मिश्रित न हो अर्थात् केवल उस एक धातु के ही परमाणु होते हैं। उन्हें शुद्धलौह कहते हैं।
- इनको अग्नि पर तपाने पर और भी सुन्दर और सुदृढ़ हो जाते हैं।
- यथाः- स्वर्ण, रजत, ताम्र एवं लौह।
(2) पूतिलौह :-
- जो धातुएं अग्नि पर तपाने पर शीघ्र पिघल जाते हैं और तपाते समय इनमें से पूतिगन्ध (दुर्गन्ध) निकलती है।
- उन्हें पूतिलौह कहते हैं खुली हवा के प्रभाव से उनकी सतह मैली हो जाती है।
- यथाः- नाग, वङ्ग एवं यशद।
(3) मिश्र लौह-
- दो या अधिक धातुओं को एकत्र मिलाकर बनाये गये নিण रूप धातु को मिश्र लौह कहते हैं।
- यथा-
(अ) पित्तल में 2 भाग ताम्र और एक भाग यशद।
(ब) कांस्य में 4 भाग ताम्र और एक भाग वङ्ग।
(स) वर्त लौह में कांस्य, ताम्र, पित्तल, लौह और नाग समान भाग।।