नाम:-
संस्कृत | ताम्र |
हिंदी | तांबा |
English | copper |
Latin | cuprum |
Symbol | Cu |
पर्याय:-
ताम्र, शुल्व, म्लेच्छवक्त्र, नेपालीय, उदुम्बर, अम्बक
उत्पत्ति :-
ताम्र (Tamra) की उत्पत्ति “सूर्य” से हुई है। (रसकामधेनु)
ताम्र के खनिज:-
- प्रकृति में ताम्र (Tamra) मुक्तावस्था एवं युक्तावस्था दोनों रूपों में प्राप्त होता है।
- मुक्त ताम्र अल्पमात्रा में अमेरिका एवं साइबेरिया आदि स्थानों पर मिलता है।
- मुक्त ताम्र में कई बार अल्पांश में रजत, सोमल, विस्मिथ एवं एण्टीमनी पाया जाता है।
- इसके खनिज Sulphide, oxide और carbonate के रूप में मिलते हैं।
ताम्र के मुख्य खनिज
- चैलकोसाइट (Cu2 S2)
- कॉपर पाइराइट (Cu2.S Fe2S3)
- मैलेकाइट (CuCO3 Cu (OH)2)
- एज्यूराइट (2 Cu CO3 Cu (OH)2 )
- क्यूप्राट (Cu2O2)
- बोनाईट (Cu5FeS4)
- कॉवेलाइट (CuO),
- एर्नार्जिट (Cu3As S4)
ताम्र प्राप्ति स्थान:-
- विदेशों में उत्तरी अमेरिका, रूस, आस्ट्रेलिया, चीली, पेरू.
- साइप्रस, मेक्सिको, चीन, कनाडा, बेल्जियम, उत्तरी रोडेशिया, कांगो, जर्मनी आदि देशों में प्रचुर मात्रा में ताम्र पाया जाता है ।
- भारत में झारखंड (बिहार) के सिंहभूमि एवं
- हजारीबाग जिला तथा राजस्थान के खेतड़ी कॉपर माइन्स में मुख्य रूप से पाया जाता है।
ताम्र भेद :-
रसार्णव – | 1.रक्तवर्ण : श्रेष्ठ | 2.कृष्णवर्ण : निकृष्ट |
रसरत्नसमुच्चय- | 1.नेपालक ताम्र: श्रेष्ठ | 2. म्लेच्छ ताम्र : निकृष्ट |
ग्राह्य ताम्र लक्षण :-
- जो ताम्र स्निग्ध, मृदु, रक्तवर्ण, हथोड़ी के आघात से नहीं टूटने वाला हो।
- तथा भारी, अग्नि एवं जल संसर्ग से निर्विकार रहे, उसे श्रेष्ठ गुण युक्त ‘नेपाली ताम्र‘ कहा जाता है।
अग्राह्य ताम्र :-
- जो ताम्र श्वेत, रक्त, कृष्णवर्ण मिश्रित,
- अति वामक, कठोर, धोकर साफ करने पर कुछ देर बाद काला पड़ने वाला हो, उसे म्लेच्छ ताम्र कहते है। जो अग्राह्य होता है।
- पाण्डु, कृष्ण और रक्तवर्ण युक्त, भार में हल्का, हथौड़े के आघात से टूटने वाला खुरदरा, पत्रों से युक्त ताम्र को रस कर्म के लिए त्याज्य माना गया है।
ताम्र के आठ विष दोष :-
ताम्र (Tamra) के समान दूसरा विष नहीं है। क्योंकि विष दोष होता है, जिसको खाने पर व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है। जबकि ताम्र में एक साथ विष के समान भ्रम, मूर्च्छा, विदाह, स्वेद, क्लेद, वान्ति, अरुचि एवं चित्त संताप ये आठ विष दोष रहते हैं।
शोधन प्रयोजन:-
- अशुद्ध ताम्र (Tamra) को सेवन करने पर आयु, कान्ति, वीर्य औेर बल का नाश होता है।
- वमन, मूर्च्छा, भ्रम, उत्क्लेश, कुष्ठ एव शूल को उत्पन्न करता है।
- इसी प्रकार उत्क्लेश विरेचन, भ्रम, उन्माद, दाह, मोह आदि ताम्र से उत्पन्न होने वाले महादोष है।
- किन्तु शोधन करके लेने पर इन दोषों का निवारण हो जाता है।
- इसका रस, वीर्य, विपाक अमृत तुल्य हो जाता है। अतः ताम्र को सम्यक् रूप से शोधन करने के बाद ही प्रयोग में लेना चाहिए
शोधन:-
सामान्य शोधन:–
ताम्र को प्रतप्त करके तिलतैल, तक्र, गोमूत्र, कांजी और कुलत्थी क्वाथ में क्रमशः सात-सात बार बुझाने पर शोधन हो जाता है।
विशेष शोधनः-
● नींबू स्वरस से मर्दित सैंधव लवण का ताम्रपत्र पर लेप कर अग्नि में रक्त प्रतप्त करके निर्गुण्डी स्वरस में बुझायें। इस प्रकार आठ बार करने पर ताम्र शुद्ध हो जाता है।
मारण:-
शुद्ध पारद एवं शुद्ध गन्धक की कज्जली को नींबू स्वरस में घोटकर बनाये हुए लेप को शुद्ध ताम्रपत्र पर लेप करके सुखायें
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तत्पश्चात् ताम्रपत्रों को शराव सम्पुट में बन्दकर गजपुट में पाक करें।
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इस प्रकार तीन पुट देने पर ताम्र की भस्म हो जाती है।
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इस विधि से मारित ताम्र भस्म को दोषमुक्त करने के लिए नींबू आदि किसी भी एक अम्ल द्रव से मर्दन कर गोला बनायें।
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फिर गोले को सूरणकन्द के मध्य रखकर सूर्य के चारों ओर एक अङ्गल मोटा मिट्टी का लेप कर सुखाकर गजपुट की अग्नि में पाक करें।
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स्वांगशीत होने पर भस्म को प्राप्त करें।
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यह भस्म सर्वदोषों नाशक एवं शान्ति, भ्रान्ति, विरेचन आदि विकारों को कदापि उत्पन्न नहीं करती है।
अमृतीकरण-
लोहादि धातुओं का मारण करने के पश्चात भी उस में शेष रहे दोषों को दूर करने के लिए भस्म का जो संस्कार किया जाता है, उसे अमृतीकरण कहते हैं।
ताम्र भस्म अमृतीकरण-
- ताम्र भस्म में आधा भाग गन्धक मिलाकर पञ्चामृत से मर्दन कर टिकिया बनाकर में पाक सुखायें।
- फिर शराव सम्पुट में बन्दकर गजपुट की अग्नि करे। इस प्रकार तीन पुट देने पर ताम्र भस्म आठ दोषों से रहित हो जाती है।
ताम्र भस्म वर्ण:-
कृष्ण वर्ण
ताम्र भस्म परीक्षा:-
- वारितर
- रेखापूर्ण
- निश्चन्द्र आदि भस्म की सामान्य परीक्षा के अलावा
- ताम्र भस्म को खट्टे दही में डालकर कुछ देर रखने पर दही का रंग नीला पड़ जाने पर भस्म दोष उपयुक्त मानी जाती है।
ताम्र भस्म के गुण :-
- रस – कषाय, अम्ल, मधुर, तिक्त
- विपाक – मधुर
- वीर्य – उष्ण
- पित्त-कफ हर
- उदररोग , कुष्ठ, कृमि, ऊर्ध्वाधः शोधक,
- विषहर, स्थौल्यनाशक, दीपक,
- अर्श, क्षय, पाण्डु, नेत्र्य, लेखन, लघु, कास, श्वास, प्रतिश्याय ,अम्लपित्त ,शोथ ,शूल आदि रोगों को दूर करती है।
ताम्र भस्म मात्रा :-
1/8 – 1/2 रत्ती (1 रत्ती =125mg) तक रोगी के बलाबल एवं काल आदि का विचार करके सेवन करने के लिए देना चाहिए।
अनुपान:-
रोगानुसार विविध द्रव्यों के स्वरसादि एवं मधु के साथ
ताम्र भस्म सेवनजन्य विकार शमनोपाय:-
मुनिब्रीहि को पीसकर मिश्री के साथ अथवा धनियाँ बीज क्वाथ में मिश्री मिलाकर तीन दिन पीने पर ताम्र (Tamra) भस्म सेवनजन्य विकारों की शान्ति हो जाती है।
प्रमुख योग:-
- लक्ष्मीविलास रस
- आरोग्यवर्द्धनी वटी
- पंचामृत पर्पटी
- ताम्र पर्पटी
- हृदयार्णव रस
6 replies on “Tamra ( ताम्र ) – Copper : Dhatu Vargha”
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[…] Copper Haeme synthesis is interfered in copper deficiency. However, copper is a trace metal for man and clinical deficiency is very rare. When copper deficiency is demonstrated, 0.5-5 mg of copper sulphate/day may be given therapeutic: prophylactic dose is 0.1 mg It is present in some haematinic combinations . […]
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