Categories
Ras Shastra

Rajat ( रजत ) – Silver / Argentinum : Dhatu Vargha

नाम:-

संस्कृतरौप्य
हिंदीचाँदी
EnglishSilver(Ag)
LatinArgentinum

Atomic number= 47

Atomic mass= 107. 88

पर्याय:-

रुचिर, तार, सौध, शुभ्रक, चन्द्रहास, चन्दरलौह, चन्द्रमा।

Rajat

उत्पत्ति :-

  • आयुर्वेद प्रकाश – त्रिपुरासुर वध के लिए क्रोधवशात् खुले शिव के तृतीय नेत्र के अश्रु बिन्दु से रजत (Rajat) की उत्पत्ति बताया है।
  • पौराणिक मान्यता अनुसार चन्द्रमा के शुक्र से रजत (Rajat) की उत्पत्ति हुई है।

रजत प्राप्ति स्थान:-

  • रजत (Rajat) मुक्तावस्था एवं युक्तावस्था दोनों रूपों में मिलती है।
  • यह मैक्सिको, कनाडा, रूस, पेरु, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, जापान, जर्मनी, स्वीडन आदि देशों से प्राप्त होती है।
  • भारत में जावर (राजस्थान), दुर्ग, होशंगाबाद, कांगडा, कोलार (कर्नाटक) आदि स्थानों से प्राप्त होती है।

रजत के खनिज:-

(1) मुक्त रजत (Native Silver) Ag 100%

(2) युक्तावस्थाः- यौगिक रजत

  • Argentite (Is, Ag. 87.1%)
  • Cerargyrite (AgCl; Ag. 75.3%)
  • Polybasite (Ag, Sb, S; Ag75.6%)
  • Proustite (Ag, As S,; Ag 65.4%)
  • Pyrargyrite (Ag, SbS; Ag 59.9%)
  • Tellurides
  • Stromeyarite
  • Argentiferous tetrahedral (Ag, Pb, CUS)
  • Stephanite (Ag, Sbs)
  • Pearcite

रजत के भेद:-

भेदश्रेष्ठताउत्पत्ति
1.सहज (Native silver) सर्वश्रेष्ठकैलाश पर्वत
2.खनिज (Ore silver)श्रेष्ठरहिमालय पर्वत
3. कृत्रिम (Rasaviddha silver)श्रेष्ठरसवेध से नाग वंग आदि द्वारा मानी गयी है।

ग्राह्य रजत लक्षण-

  • जो रजत कठिन,
  • स्वच्छ,
  • भारी, स्निग्ध,
  • गर्म करने या काटने पर मृदु एवं श्वेत वर्ण,
  • चन्द्रमा सदृश स्वच्छ वर्ण,
  • शंख सदृश शुभ्र एवं चिकना और स्फोट रहित हो, वह रजत श्रेष्ठ होता है।

अग्राह्य रजत लक्षण:-

  • जो रजत तपाने पर लाल, पीत एवं कृष्णवर्ण,
  • रूक्ष, लघु, छिद्रयुक्त,
  • मोटे अङ्गवाली एवं खुरदरी हो,
  • इन आठ गुणों में से किसी भी एक गुण से युक्त होने पर अग्राह्य होती है।

रजत शोधन प्रयोजन :-

  • शुद्ध एवं अपक्व रजत (Rajat) के सेवन से आयु, शुक्र एवं बल का नाश एवं शरीर में सन्ताप, मलबद्धता एवं रोगों उत्पन्न होते हैं।
  • अतः रजत का शास्त्रोक्त विधि से शोधन करके मारण करना चाहिये।

रजत का शोधन :

सामान्य शोधनः-

रजत का कंटकवेधी पत्र बनाकर तिलतैल, तक्र, गमन कांजी और कुलत्थ क्वाथ में क्रमश: सात-सात बार प्रतप्त करके बुझाने पर रजत (Rajat) शुद्ध हो जाती है।

विशेष शोधन:-

रजत का कंटकवेधी पत्र बनाकर अच्छी प्रकार से रक्त प्रतप्त करके अगस्त्यपत्र स्वरस में तीन बार बुझाने पर रजत शुद्ध हो जाती है।

रजत मारण-

1) शुद्ध स्वर्णमाक्षिक को बिजौरा नींबू रस में घोटकर उस पिष्टी का चांदी के पत्रों पर लेप करें।

फिर इन पत्रों को शराव सम्पुट में बन्द कर 30 पुट देने पर रजत की श्रेष्ठ भस्म बन जाती है।

(2) शुद्ध रजत का कंटकवेधी पत्र लेकर उसके समान भाग पारद गन्धक की समगुण कज्जली लें।

कज्जली को घृतकुमारी स्वरस में घोटकर लेप बनाकर रजत पत्र पर कज्जली का लेप करके सुखाये

फिर शराव सम्पुट में रखकर 20 ऊपलों की अग्नि में पाक करें। इस विधि से 2 पुट में ही रजत की भस्म बन जाती है।

रजत भस्म का वर्ण:-

कृष्णवर्ण

रजत भस्म गुण :-

  • रस – कषाय, अम्ल
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – मधुर
  • गुण – स्निग्ध, गुरु एवं सर
  • वात-कफ दोषशामक, जाठराग्नि प्रदीपक, बल्य, आयु एवं मेधा वर्धक होता है।

रजत भस्म का विशिष्ट गुण-

  • रजत (Rajat) भस्म कोष्ठगत बढी हुई वात का शमन करती है।
  • रस-रक्तादि धातुओं में संचित पित्त और जब्र के ऊपरी भाग में प्रकृषित कफ को शान्त करती है।
  • अत्यन्तक्षीण बुद्धि स्मृति एवं साहसहीन व्यक्तियों के लिए तथा शिरोभ्रम से दुःखी मनुष्यों के लिए यह श्रेष्ठ औषधि है।
  • निरन्तर अध्ययन अध्यापन कार्य करने वाले युवा पुरुषों तथा बालकों के लिए यह अति उपयोगी औषधि है।

रजत भस्म मात्रा:-

1 /4 से 1 रत्ती तक रोगी के बल एवं काल का विचार करके प्रयोग करना चाहिए।

रजत वर्क के गुण:-

  • रस – कषाय और अम्ल
  • गुण – सर
  • वीर्य – शीत
  • विपाक – मधुर
  • यह बल्य, स्निग्ध, रुचिकारक, लेखन, शुक्रमेह हर, आयुष्य, वयःस्थापक, वृष्य, मेधावर्द्धक एवं विशेषतः वात-पित्त शामक होती है।

रजत धारण से लाभ :-

यह चन्द्र ग्रह का प्रतिनिधि धातु होने से धारण करने पर चन्द्रग्रह के दुष्प्रभाव को नष्ट करती है।

प्रमुख योग:-

  1. सर्वज्वरहर लौह
  2. विषमज्वरान्तक लौह
  3. मकरध्वज वटी
  4. जहरमोहरा वटी
  5. त्रैलोक्यचिंतामणि रस

5 replies on “Rajat ( रजत ) – Silver / Argentinum : Dhatu Vargha”

Leave a Reply