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Ashmari Nidan ( अश्मरी निदान ) – भेद, लक्षण

अश्मरी (Ashmari) को आम तौर पर सामान्य भाषा में पथरी का नाम से विख्यात है, आधुनिक इसे Stone कहते हैं। इस रोग में अत्यन्त पीड़ा होने के कारण आचार्य मध्वकर ने अश्मरी की तुलना यमराज से की है और कहा है कि दोनों एक दूसरे के समान कष्टदायक होते हैं। यह भी कहा गया है, अगर अशमरी की चिकित्सा नहीं करवाई जाए तो मृत्यु दायक होती है। आज हम इसी के बारे में बात करेेंगे, इसके भेद, कारण, लक्षण आदि।

उत्पत्ति :-

जब प्रकोपक कारण से मिलकर वात दोष शुक्र के साथ बस्ति गत पित्त, कफ व मूत्र को सूखा देता है तब अश्मरी की उत्पत्ति होती है। ऐसा आम तौर पर वृक्क विकार के कारण होता है।

अश्मरी के मूल घटक :- श्लेष्मिक कला का कुछ भाग, सूखा हुआ कफ व जमा हुआ रक्त।

दोष संबंध :-

अश्मरी पर्याय कफ दोष से संबंधित कहीं जाती है परन्तु वास्तव में त्रिदोष से उत्पन्न होती है, जैसे आसमान में बिजली व वायु के कारण जल की बूंदे, ओले के रूप में पृथ्वी पर गिरते हैं; उसी प्रकार से वात, पित्त के द्वारा कफ के सुख जाने के कारण अश्मरी (Ashmari) की उत्पति होती है।

भेद :-

  1. वात
  2. पित्त
  3. कफ
  4. शुक्र

पूर्व रूप :-

  • वस्ति प्रदेश में आध्मान
  • वस्ति के आस-पास चारों ओर अत्यन्त पीडा
  • मूत्र में से बकरे की जैसी गन्ध का आना
  • ज्वर
  • अरुचि

सामान्य लक्षण :-

  • नाभि के निचले भाग व वस्ति प्रदेश में शूल
  • जब अश्मरी द्वारा मार्ग में मूत्र रुक जाता है, तो वह मूत्रमार्ग से अनेक धाराओं में बहने लगता है।
  • अश्मरी के कारण मूत्रमार्ग में क्षत (घाव) हो जाने पर रक्तमिश्रित मूत्र आता है

वातज अश्मरी के लक्षण :-

  • अत्यंत कष्ट होता है, लिंग को हाथ से पकड़ता है व नाभि को दबाता है।
  • मूत्र करते समय दांतों से होंठों को दबाता है, कापने लगता है।
  • बूंद-बूंद करके मूत्र त्याग करता है।
  • मूत्र का रंग काला लाल।
  • पीड़ा के कारण मल भी निकल जाता है।
  • अश्मरी का उपरी भाग खुरदरा, श्याम वर्ण, रूखी होती है।

पित्तज अश्मरी के लक्षण :-

  • वस्ति प्रदेश में दाह।
  • पकते हुए फोडे के समान, उसमे संताप।
  • भिलावा गुठली के समान।
  • रंग में :- लाल, काली, पीली।

कफज अश्मरी के लक्षण :-

  • वस्ति प्रदेश में सुई चुभने वाली पीड़ा, शीतलता, भारीपन जैसा लगता है।
  • अश्मरी (Ashmari) आकर में बड़ी, स्पर्श में चिकनी व मधु के समान रंग वाली।
  • यह अश्मरी आम तौर से बच्चों ने होती है।

त्रिदोषज अश्मरी के लक्षण :-

  • बालको में पाई जाती है।
  • कारण :- दिन में सोने से, शीत, गुरु, मधुर आहार खाने के कारण।
  • वस्ति स्थान छोटा होने के कारण शल्य क्रिया के द्वारा साध्य होता है, सुख पूर्वक पकड़कर निकालना आसान होता है।

शुक्र अश्मरी के लक्षण :-

बड़ी अवस्था वाले पुरुषों में शुक्र के वेग को रोकने के कारण, अंड कोश के बीच में सुख कर अश्मरी बनती है।

  • बस्ति प्रदेश में वेदना
  • मूत्र निकलने ने कठिनाई
  • अंड कोश में शोथ, व दबाने पर गायब हो जाती है व शुक्र बाहर आ जाता है।
  • यह अश्मरी आकर में बड़ी होती है

शर्करा के लक्षण :-

शुक्र अश्मरी (Ashmari) आगे चल कर शर्करा बन जाती है, यह व स्थिति है जब वात दोष अनुकूल होता है पर छोटे-छोटे होकर मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाता है। आजकल इसे Phosphate salt कहा जाता है।

  • दुर्बलता
  • अंगो में शिथिलता
  • शरीर में कृश्ता
  • उदर में शूल
  • अरुचि
  • शरीर में पीलापन
  • तृष्णा
  • हृदय प्रदेश में पीड़ा
  • वमन
  • पांडु

शर्करा के उपद्रव :-

सिकता के लक्षण :-

जब शर्करा आकर में छोटी होती है तब उसे सिकता कहते है।

असाध्य विचार :-

  • नाभि व अंड कोश में शोथ
  • मूत्र रुक जाए, पीड़ा से व्याकुल हो
  • सिकता व शर्करा युक्त अश्मरी शीघ्र ही मात डालते है

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