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Rog Nidan

Shool Nidan ( शूल निदान)

उत्पत्ति :-

आचार्य हारित के अनुसार जब भगवान शिवजी ने कामदेव पर क्रोधित होकर उसका विनाश करने के लिए उस पर शूल (Shool) भेजा, फिर कामदेव ने अपनी तरफ़ आते हुए शूल को देख कर भय से व्याकुल होकर भगवान विष्णु के शरीर में प्रवेश कर लिया, फिर विष्णु की हुकार से मूर्छित होकर शूल वहीं पृथ्वी पर गिर गया, इसके बाद से शूल पंच भौतिक शरीर धारियो को कष्ट देता है।

शूल के लक्षण :-

शूल (Shool) से पीड़ित पुरुष को लोहे की कील ठोकने के समान कष्ट होता है।

भेद :-

भेदनिदानलक्षणस्थानसमयशांति
वातजअधिक व्यायाम करना, अधिक रथ आदि की सवारी करना, अधिक मैथुन करना, रात्रि जागरण, शीतल जल, मटर, मूंग, अरहर आदि रूष पदार्थ सेवन, अजीर्ण में भोजन करना, चोट लगना, कषाय, तिक्त, विरूद्ध आहार विहार, सूखा मास, अधारनिय वैगो को धारण करना, शोक, उपवास, अधिक कार्य करनाबार बार आता जाता, बड़ता हो, मल व आपन वायु में रुकावट, सुई चुनने के समान पीड़ाहृदय, दोनों पसलिया, त्रिकसंधी, वस्तिभोजन पचने पर, सांय काल में, आकाश में बादल होने के बाद, शीत काल मेंस्वेद, स्नेहन, मर्दन, गर्म चीजों से
पित्तजअधिक क्षार पदार्थ का सेवन, उष्ण, तैल, सेम, खली, कुल्थी, अम्ल, कांजी, मद्य, क्रोध, आग सेकना,अधिक व्यायाम करना, धूप लेना, अधिक मैथुन करनातृष्णा, मूर्च्छा, जलन, पसीना अधिक आना, मूर्च्छा, भ्रम, चोष पीड़ानाभि प्रदेश मेंमध्य काल में, आधि रात्रि में, आहार के पचत वक्तशीत ऋतु में, शीत वीर्य पदार्थ, मधुर रस सेवन से
कफजआनूप प्राणी मांस, जलचर प्राणी मांस, दूध के पदार्थ, गन्ने का रस, खिचड़ी, तिल खाने सेजी मचलना, कास, अरुचि, लार आना, कोष्ठ बंधता, सिर में भारीपनभोजन खाते ही, सूर्योदय के समय, शिशिर व वसंत ऋतु में
सन्निपातजविष व वज्र के समान कष्ट दायकआसाध्य
आमाजपेट में गुड़गुड़ाहट, जी मचलना, वमन, भारीपन, गीलापन, आनह, मुख से कफ निकालना
द्वंद ( कफ वात)वस्ति, हृदय, पसलियां, पृष्ठ
कफ पित्तकुक्षी, हृदय, नाभि मध्य
वात पित्तदाह, ज्वर
शूल रोग में विशेष तौर से वात रोग प्रधान होता है।

आश्रय भेद से :-

आश्रयनिदानलक्षण
हृदयरस से बड़ कर कफ व पित्तवायु श्वास को रोक कर, हचछू
पार्श्ववात कफ के कारणमुख से ऊंची सास लेना, अरुचि, अनिद्रा, सुई चुनने के समान पीड़ा
वस्तिवेग रोकने के कारणनाड़ियों में शूल, मल मूत्र व आपान वायु रुक जाते है

साध्य आसाध्य :-

  • एक दोष वाला :- साध्य
  • दो दोष वाला :- कष्ट साध्य
  • त्रिदोष :- असाध्य

परिणाम शूल :-

जब वात दोष प्रकूपित होकर पित्त व कफ को घेरकर शूल (Shool) उत्पन्न करता है। भोजन के पचते समय शूल हो तो उसे परिणाम शूल कहते है। यह त्रिदोष से उत्पन्न होता हुआ भी पित्त प्रधान शूल होता है। अगर यह शूल होता है तो खाना खाते ही वमन हो जाता है।

परिणाम शूल के भेद :-

भेद लक्षणशांति
वातआध्मन, आटोप, मल मूत्र स्वाभाविक रूप से नहीं होना, बेचैनी, कापनाचिकने व उष्ण पदार्थ के सेवन से
पित्ततृष्णा, दाह, बेचैनी, पसीना अधिक आना, पित्त वर्धक आहार सेवन से शूल में वृद्धिशीत पदार्थ सेवन से
कफवमन, जी मचलना, मूर्च्छा, कष्ट कम पर बहुत देर तक होनाकड़वे, तिक्त पदार्थ सेवन से
दो दोषों वालेमिले जुले लक्षण
सन्निपातशारीरिक, मानसिक बल कम होना, मांस व पाचक अग्नि कम होनाआसाध्य

अन्न द्रव शूल :-

जो शूल (Shool) भोजन पच जाने पर, जीर्ण होने से पहले होता है, अपथ्य खाने के कारण होता है।

इस शूल में जब तक वमन द्वारा पित्त नहीं निकल जाता तब तक आराम नहीं होता। In Modern it’s co relayed with gastric ulcer.

शूल उपद्रव :-

शूल के 10 उपद्रव होते है।

शूल अरिष्ट :-

शूल के 10 अरिष्ट होते है

  • वेदना
  • तृष्णा
  • मूर्च्छा
  • आनह
  • ज्वर
  • भ्रम
  • अरुचि
  • कृष्टा
  • बल की हानि
  • गुरुत्व

23 replies on “Shool Nidan ( शूल निदान)”

[…] शूल, अफरा, वात पीड़ा, मल व आपान वायु निकलने में कठिनाई, शरीर में जकड़न, मूर्च्छा, शरीर में पीड़ा, इसमें अन्न उदर में पड़ा रहता है […]

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