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Kumar Bhritya

Mukh Mandika Graha | मुख मंडिका ग्रह : Bal Graha

पर्याय :-

  • वक्त्रमण्डिका
  • मुखमण्डित
  • मुखमण्डनिका
  • मुखमण्डिका
  • परिचारिका
  • मुखार्चिका

उत्पति :-

एक बार भगवान कार्तिकेय जब महादेव के समीप खेल रहे थे और उस समय गंधर्व, अप्सराएं व लोग शिव जी का अलंकर कर रहे थे उस समय कार्तिकेय ने माता पार्वती से कहा कि उन्हें भी शिव जी की तरह चंद्रमा रूपी आभूषण चाहिए, जब बार बार मांगने पर भी नहीं मिला तब क्रोधित होकर उस अलंकृत मुख मंडल की विकृत, मलित होकर फैक दिया। इसके कारण तीनों लोको में विशोभ हो गया व उनका ज्ञान व चित भ्रम होगया। फिर शिवजी व पार्वती माता ने अमृत से उत्पन्न हुआ चंद्रमा उसे दे दिया। इस प्रकार मुख मांडिका नामक ग्रह उत्पन्न हुआ। तब उसे कहा कि तू जा ओर अपना भोजन व उन्हें बना जो बलि हवन आदि में स्क्रीन (ग्रहस्त ) है।

यह ग्रह उसे अपना शिकार बनात है जो आहार – विहार, आकृति व कर्म विकृत होते है।

आक्रमण का काल :-

चतुर्थ दिन, चतुर्थ मास, चतुर्थ वर्ष के दिन बालक पर आक्रमण करता है।

लक्षण :-

  • शरीर मलिन रहना
  • हाथ – पैर – मुख सुंदर लगना
    • मुख चमच जैसा लगना
  • बहुत खाना खाना
  • उदर पर काले – नीले वर्ण की सीराओ से भरा रहना
  • सदैव बेचैन रहना
  • शरीर से मूत्र जैसी गंध आनी
  • ज्वर
  • अरुचि
  • अंगो में ग्लानि
  • सर्व अंग शोथ
  • ग्रीवा की नाडी तीव्र होती है

अरिष्ट लक्षण :-

  • स्वपन में किसी पक्षी द्वारा काटा जाना – शीघ्र मृत्यु
  • स्वपन में हर ताल आदि रंगो से , आकाश में पीला रंग हुआ देखता है
  • मास का सेवन व धारण करता है।

चिकित्सा :-

  • लहसुन, सरसो, बकरे का सींग, नीम के पत्ते और गंगाजल से धूप करे,
  • बच, राल, कुठ व घी की धूनी
  • कुष्ठ, राल, जोह, घृत का धूप करे
  • मंत्र का जाप, धूप देते वक्त पढ़े ूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूूू और 4 थे दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाए।
    • ॐ नमो नारायण हन हन मूंच मुंच स्वाहा।
  • नदी के दोनों किनारों की मिट्टी लेकर पुतली बनाए, सफेद कमल, चंदन, नागर पान, भोजन, 10 ध्वजा, 4 दीपक, 13 स्वस्तिक, मछली का मांस, मदिरा उत्तर दिशा में रात को बलि दे।
  • संतरे का छिलका, फूलों की माला, अंजन, पारद, मेंसिल यह सब गौशाला में अर्पण करें और खीर, हलवा की बलि दे ओर उसी जगह पर बालक को नहलाए ओर निम्न मंत्र पढ़े –
    • अलङ्कृता कामवती सुभगा कामरूपिणी । गोष्ठमध्यालया या तु पातु त्वां मुखमण्डिका।।
  • अजीर्ण न होने दे

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