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Ras Shastra Syllabus

Abhrak ( अभ्रक ) : Mica According to B.A.M.S. Syllabus

अभ्रक (Abhrak) के नाम :-

संस्कृतअभरकम्
EnglishMica
Hindiअभ्रक

विशिष्ट गुरुत्व = 3 काठिन्य (Hardness) = 2.5 – 3 Synonyms :- बहुपत्र, वज्र, गगन (र .त.), गौरीतेज (र.र.स) प्राप्ति स्थान (Habitat) = राजस्थान के भीलवाड़ा जिलों में, बिहार, झारखंड आदि ।

अभ्रक के ग्राह्यी लक्षण :-

“स्निग्धं पृथुदलं वर्णसंयुक्तं भारतोऽधिकम्।
सुखनिर्मोच्यपत्रं च तदभ्रमं शस्तमीरितम्।। “(र. र. स.
2/11)

जो अभ्रक (Abhrak) चिकना, मोटे दलवाला, उत्तम वर्ण से युक्त, भारयुक्त, आसानी से जिसका पत्र पृथक हो जाये, वह अभ्रक प्रशस्त होता है।

स्वरूप :- यह टेढ़े-मेढ़े विभिन्न आकार के बड़े बड़े ढेलों के रूप में खान से मिट्टी पत्थर मिश्रित प्राप्त होता है। इसके पत्र पारदर्शक होते है।

अशुद्ध अभ्रक के दोष :-

अशुद्ध या चंद्रिका युक्त अभ्रक का सेवन करने पर शरीर में हृत्पार्श्वपीड़ा, शोथ, क्षय, पाण्डुरोग, कुष्ठादि अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते है। अतः धान्याभ्रक निर्माण, भस्म एवं सत्त्वपातन बनाने के लिए शुद्ध अभ्रक का ही प्रयोग करना चाहिये।

अभ्रक के चार भेद / Types of Abhrak :-
  1. पिनाक
  2. नाग
  3. मण्डूक
  4. वज्र

श्वेत, रक्त, कृष्ण और पीतवर्ण भेद से, पुनःपुनः 4-4 भेद होकर कुल अभ्रक के 16 भेद होते है।

भेद के लक्षण :-
अभ्रक भेदअग्नि में तप्त करने परसेवन करने से
1)पिनाक अभ्रक इसके सूक्ष्म पत्र आसानी से अलग-अलग हो जाते है।मलावरोध होकर मृत्यु हो जाती है।
2)नाग अभ्रकसर्प की तरह फुत्कार शब्द उतपन्न होता है।मण्डलादि कुष्ठ रोग
3)मण्डूक अभ्रकमेंढक की तरह अग्नि से चतकखर और उछलकर बाहर आजाता है।अश्मरी रोग उतपन्न ,शल्य क्रिया साध्य।
4)वज्र अभ्रकसभी विकृतियों से रहित निश्चल बना रहता है।रोगनाशक और सर्वश्रेष्ठ यही होता है।
वर्ण भेद से अभ्रक का महत्व :-
  • श्वेत वर्ण अभ्रक= श्वेतकर्म के लिये उपयोगी अर्थात रजत आदि श्वेत उच्च धातु का निर्माण या श्वित्र रोग को नष्ट करना है।
  • रक्त वर्ण अभ्रक= रक्तकर्म में उपयोगी हैअर्थात रक्तकणों की शरीर में वृद्धि करना है।
  • पीत वर्ण का अभ्रक= पीत कर्म के लिये श्रेष्ठ है अर्थात् धातुओं में पीत वर्ण उतपन्न करना ।
  • कृष्ण वर्ण का अभ्रक= सर्वश्रेष्ठ तथा अन्य अभ्रको से करोड़ों गुना अधिक गुणवाला होता है।
अभ्रक शोधन :-

कृष्ण वर्ण अभ्रक को अग्नि में प्रतप्त करके; कांजी, गोमूत्र, त्रिफला क्वाथ, गोदुग्ध एवं बदरी पत्र या छाल का क्वाथ, इनमें से किसी भी एक द्रव्य में 7 बार बुझाने से अभ्रक शुद्ध हो जाता है।

धान्याभ्रक निर्माण :-

शुद्ध अभ्रक 1भाग एवं शालि धान्य 1/4 भाग को लेकर

कम्बल या बोरे के टुकड़े में पोट्टली की तरह बाँधकर जल या काञ्जी में तीन रात्रि पर्यन्त डुबाकर रखें।

इसके बाद पोट्टली को भली भाँति दृढ़ता से द्रव में ही मर्दन करें।

इस प्रकार करने पर अभ्रक का सूक्ष्म चूर्ण (कणरूप) कम्बल या बोरे के छिद्रों से बाहर निकल जाता है

फिर स्थिर होने पर सावधानी से द्रव को निथारकर पात्र के निचले भाग से धान्याभ्रक को एकत्रित करके सुखाकर रखें। इस धान्याभ्रक को भस्म बनाने में प्रयोग करें।

Shodhit abhrak
अभ्रक मरणार्थ पुट संख्या::-

अभ्रक भस्म निर्माण में सामान्य रोग नाशक करने के लिये: 20- 100 पुट

रसायन प्रयोग के लिए 100-1000 पुट तक देने का निर्देश है।

अभ्रक मारण :-

धान्याभ्र्क को कासमर्द के स्वरस से मर्दन कर चक्रिका बनाये ।

फिर सुखाकर शराव सम्पुट में बन्द कर गजपुट की अग्नि में पाक करें।

इस प्रकार 10 पुट देने से अभ्रक भस्म हो जाती है।

अभ्रक भस्म परीक्षा लक्षण :

अभ्रक भस्म निश्चन्द्र, अञ्जन सदृश, सूक्ष्म एवं अरुणवर्ण की होती है।

◆निश्चंद्र एवं अरुणवर्ण की भस्म को अमृत की उपमा दी गई है।

अमृतीकरण :- करने से भस्म में गुण की वृद्धि एवं वर्ण की हानि हो जाती है।

★लौह अभ्रक आदि द्रव्यों का मारण करने के पश्चात भी कुछ दोष अवशिष्ट रह जाते है, उनको दूर करने के लिए जो संस्कार किया जाता है, उसे अमृतीकरण कहते है।

अभ्रक भस्म अमृतीकरण :

दस भाग अभ्रक भस्म, 16 भाग त्रिफला क्वाथ और 8 भाग गोघृत को एकत्र लौहे की कड़ाही में डालकर मन्दाग्नि से पकाने पर अभ्रक भस्म का अमृतीकरण हो जाता है।

अभ्रक भस्म लोहितीकरण :

रक्तवर्ण उतपन्न करने हेतु भस्म में जो प्रक्रिया की जाती है, उसे लोहिती करण कहते है।

अभ्रक भस्म के गुण :-
  • अमृत के समान श्रेष्ठ
  • वत्पितक्षय रोगनाशक
  • बुद्धि एवं आयुवर्धक
  • कफनाशक दीपन
  • स्निग्ध , मधुर, केश्य, वर्ण्य, रुचिकर, नेत्र्य।
अशुद्ध अभ्रक भस्म सेवन से हानि :-

अशुद्व अभ्रक का सेवन करने पर कुष्ठ, क्षय, पाण्डु, शोथ, ह्रदय पार्श्व शूल उतपन्न करने वाली होती है।

अशुद्ध एवं अभ्रक भस्म सेवन दोष निवारण :-

अतसी बीज को जल में पीसकर 3 दिन तक सेवन करने पर अशुद्ध या अपक्व अभ्रक भस्म का सेवन करने से उतपन्न दोषों का विनाश हो जाता है।

अभ्रक भस्म की मात्रा= 1 -2 रत्ती

अनुपान= मधु, घृत, मक्खन, एवं रोगानुसार स्वरसादि।

अभ्रक स्तवपातन :-

अभ्रक में 1/4 टंकण मिलाकर मुसली स्वरस से मर्दन करके टिकिया बनाकर सुखाएं।

मूषा में रखकर कोष्टिका यन्त्र से तीव्र धमन करने पर अभ्रक का लौहे जैसा निर्मल सत्व निकल जाता है।

सत्व शोधन:- त्रिफला क्वाथ , वतमूल क्वाथ या कांजी में 7 बार गर्म करके बुझाने से अभ्रक सत्व शुद्ध हो जाता है।

अभ्रक सत्व भस्म के गुण :-

● शीतवीर्य, मधुरस, रुचिकारक, केश्य, त्रिदोषघ्न, उत्तम रसायन, वाजीकारक।

अभ्रक प्रमुख योग :
  1. आरोग्यवर्धिनी वटी
  2. पञ्चामृत पर्पटी
  3. गगन पर्पटी
  4. योगेन्द्र रस
  5. पूर्णचन्द्र रस
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